सत्यानुभूति का आह्वान
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मानव जीवन एक उत्सव है। हम सब सत्य को आत्मसांत कर एकजूट हो जाएं तथा इस जीवन को चिरस्थाई उल्लास में परिवर्तित कर दें।’ यह आह्वान है प्रणाम भारत जागरण अभियान की प्रणेता प्रणाम ओम मीना का। अंतश्चेतना के आलोक से संपूर्ण देश और मानवता को दैदीप्यमान करने की प्रेरणा देने वाली प्रणाम मीना, आत्मचिंतक और जगकल्याण के लिए चिंतनशील रहने वाली विभूति है। समीक्ष्य पुस्तक ‘सत्य सुदर्शन’ में उनके प्रेरक विचारों को संकलित किया गया है।
संकलनकर्ता दिव्य अनुभूति ने इस पुस्तक को दो खण्डों में विभाजित किया है। हालांकि पहले खंड ‘नवयुग का सुप्रभात’ और दूसरे खंड ‘प्रणाम मीना उवाच’ में उदात्त मानव मूल्यों को स्थापित करने, उन्हें अपने भीतर आत्मसात करने का आह्वान किया गया है। लेकिन उनके उद्बोधन का मूल स्वर- ‘कर्म, प्रेम और सत्य’ के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना ही है। यह पुस्तक वास्तव में मन को दर्पण दिखाने जैसी है। जिसके द्वारा हम अपने भीतर के गुणों को पहचान सकते हैं। हम अपने भीतर पहले खंड के अपने उद्बोधनों में प्रणाम मीना, उन तमाम समस्याओं को अनावृत्त करती है, जिनकी जड़ें हमारे मन के भीतर ही मौजूद होती है। इस पुस्तक का पहला खंड हमसे हमारा परिचय करवाता है। अनेक अध्यायों से सरल उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है। यथा-‘मनका-मनका फेरता, गया न मनका फेर’ अध्याय में वे कहती है, ‘सत्य तो आजाद कराता है निर्द्वंद्व बनाता है, आत्मा से एकाकार कराता है, निर्भय करता है। यदि हमें अपने चारों ओर झूठ और भ्रष्टाचार नजर आ रहा है। तो उससे लड़ने का एक ही तरीका है-खुद सत्यमय हो जाओ, यह सोचे बिना कि इसमें हमारा क्या फायदा है?’
इसी तरह ‘आत्मानुभूति व धार्मिकता’ शीर्षक अध्याय में वे कहती है, कि ‘आनंद से किया कर्म आनंद ही बिखेरेगा। कटुता-कटुता ही लाएगी। अपनी सच्चाई को जानकर भी यदि तुम अपने पर काम करने की टालोगे तो परमेश्वर सच्चिदानंद प्रभु का दिया सौभाग्य भी तुम्हें टाल देगा।’ पुस्तक के दूसरे खण्ड के पहले अध्याय ‘सच्चिदानंद का स्वरूप’ में सत्य के मार्ग पर चलते हुए ही परमसत्ता से एकाकार की बात कही गई है। इनके लिए साधना के 5 महत्वपूर्ण धर्म-कर्म बताए गए हैं। 5 धर्म-कर्म हमें अपने आत्म से जुड़ने का सरल मार्ग प्रशस्त कराते हैं। हालांकि ये धर्म-कर्म मार्ग व्यक्ति के आत्मोत्थान और आध्यात्मिक उपलब्धियों को प्राप्त करने में तो सहायक हैं ही लेकिन इनमें से अगर हम सब अंश मात्र भी अपने कर्म-आचरण में उतार लें तो समाज, देश और संपूर्ण मानवता का कल्याण होने में क्षण भर भी नहीं लगेगा। जीवन में आस्था का महत्व और उसके प्रभाव के बारे में ‘आस्था से हो सब मंगलमय’ शीर्षक अध्याय में ‘जीवन में आस्था ही सब कुछ है।’ के भाव को बहुत सरलता से बताया गया है। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि पूर्ण आस्था का भाव बहुत गहन होता है और फिर किसी प्रकार का भय या अहित की आशंका नहीं रहती। अगर प्रभु पर सच्ची आस्था है तो चमत्कार भी हो सकता है। लेकिन ऊपरी तौर पर या दिखाने के लिए ही समर्पण को आस्था नहीं कह सकते हैं। कहने का सार यही है कि इस पुस्तक का प्रत्येक अध्याय अपने आपमें ज्ञान का भंडार है। जिसमें जीवन, आत्मा, परमात्मा, सत्य और मानवता को गहन अर्थों में व्याख्यायित किया गया है। इन्हें आत्मसात करना, न केवल आत्म कल्याण है बल्कि सभी के कल्याण का निमित्त बन सकता है।
पुस्तक का नाम – सत्य सुदर्शन
उद्बोदन – प्रणाम ओम मीना
प्रकाशक – प्रणाम प्रकाशन
ई-74, सेक्टर, 21
नोएडा-201301
उत्तर प्रदेश
पृष्ठ – 311
मूल्य – 200 रु.
फोन – 2531818
कहने की जरूरत नहीं कि आतंकवाद-विश्वव्यापी समस्या है। पिछड़े विकासशील देशों के साथ ही विकसित देश भी इससे जूझ रहे हैं। धर्म, जाति, भाषा, अलगाव के नाम पर निर्दोष लोग इस विभीषिका के शिकार होते रहते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना उचित है कि आखिर आतंकवाद की जड़ें कहां हैं? इसे पालता और पोसता कौन है? यद्यपि आतंकवाद एक ऐसा भस्मासुर है जिसे हम स्वयं ही न केवल जन्म देते हैं, बल्कि उसे पोसते भी हैं। आज हमारे सामने प्रश्न यह है कि आतंकवाद के मुद्दे पर मीडिया की क्या भूमिका होनी चाहिए? मीडिया का दृष्टिकोण इस मुद्दे पर कैसा होना चाहिए? ऐसे ही कई गंभीर प्रश्न है, जो इस पुस्तक में उठाए गए है। हाल में प्रकाशित होकर आई पुस्तक ‘आतंकवाद और मीडिया’ सुपरिचित पत्रकार अंजनी कुमार झा ने व्यापक शोध और गहन विचार के आधार पर इस पुस्तक को तैयार किया है।
पुस्तक को 4 खंडों में विभाजित किया गया है। पहले खंड ‘खौफ के बीच धड़कता जीवन’ में लेखक ने अफगानिस्तान, ईरान में आतंकवाद के फतवे फैलने के कारणों पर संक्षप्ति प्रकाश डालते हुए अपने देश के विभिन्न इलाकों में होने वाली आतंकी गतिविधियों पर भी प्रकाश डाला है। हालांकि इस पर और भी विस्तार से बात करने की गुंजाइश की है। इसके साथ ही लेखक का मानना है कि आतंकी संगठन अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए मीडिया पर दबाब बनाने का पूरा प्रयास करते हैं लेकिन अगर संपादक अपने संवाददाता के दायित्व के प्रति विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाएं तो इसमें इस अवधारणा को विशेष बल मिलेगा कि- आतंकवादी समाचार भी अन्य समाचारों की तरह मात्र एक खबर है। पुस्तक के दूसरे खण्ड ‘एक हमला हजार सदमें’ में 26/11 को मुम्बई में हुए आतंकी हमले की जानकारी देने की साथ ही 21वीं शताब्दी में देश के अलग-अलग भागों में हुए आतंकी हमलों का विवरण दिया गया है। इसके साथ ही पाकिस्तान और अमरीका की संदिग्ध गतिविधियों, कुख्यात आतंकी और आतंकी संगठन के बारे में भी संक्षप्ति जानकारी दी गई है। पु्स्तक का सबसे विस्तृत और महत्वपूर्ण खंड है-मीडिया का दृष्टिकोण। इसके पहले हिस्से हिन्दी अंग्रेजी और उर्दू समाचार पत्रों के संदर्भ देते हुए बाटला हाउस मुठभेड़ की घटना और प्रतिक्रिया को विस्तृत रूप से दर्ज किया गया है। यहीं पर स्पष्ट हो जाता है कि किस तरह से भाषा के आधार पर बंटते ही उर्दू मीडिया अपने सरोकारों से मुंह मोड़ लेती है। इसका मुख्य उद्देश्य सही समाचार देना नहीं बल्कि अपने समुदाय में धार्मिक भावनाओं को कुरेदना बन जाता है। इस अध्याय के दूसरे हिस्से में 26/11 के मुम्बई हमलें की भी विस्तृत जानकारी और उसे विभिन्न हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू पत्रों की प्रतिक्रिया की जगह दी गई है। इसी तरह अन्य आतंकी हमलों की प्रतिक्रिया की जगह दी गई है। अन्य आतंकी हमलों पर भी मीडिया की प्रतिक्रिया को संकलित किया गया है। पुस्तक के अंतिम अध्याय ‘चुनौतियां और जोखिम’ में विभिन्न देशों में मीडियाकर्मियों की स्थिति और उनसे की जाने वाली अपेक्षाओं के बारे में लेखक ने संक्षप्ति प्रकाश डाला है। कुछ पत्रों की आतंकवादी घटनाओं पर टिप्पणी भी है। लेकिन पुस्तक का यही खंड सबसे महत्वपूर्ण बन सकता था। इसमें थोड़ा ठहरकर विचार और विश्लेषण की आवश्यकता थी। मीडिया की लक्ष्मण रेखा और उसके सरोकारों के बीच नाजुक रिश्ता होता है-यह किसी भी मीडियाकर्मी को नहीं भूलना चाहिए।
पुस्तक का नाम : आतंकवाद और मीडिया
लेखक : डा. अंजनी कुमार झा
प्रकाशक : आलेख प्रकाशन
वी-8, नवीन शाहदरा दिल्ली-110032
मूल्य : रु़ 400/-
पृष्ठ : 192
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