अलगाववादियों को पैसा और सुरक्षा क्यों?
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अलगाववादियों को पैसा और सुरक्षा क्यों?

by
Oct 5, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Oct 2013 15:26:42

आवरण कथा 'सहन नहीं सौहार्द' में कश्मीरी अलगाववादियों की अच्छी खबर ली गई है। ये अलगाववादी पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर घाटी में शान्ति नहीं आने देते हैं। इन अलगाववादियों का कहना है कि भारत ने कश्मीर पर जबरन कब्जा कर रखा है। इसलिए ये लोग वहां तैनात सुरक्षा-कर्मियों को 'भारतीय कुत्ता' तक कहते हैं और वापस जाने की मांग करते हैं। कश्मीर घाटी में जो हो रहा है उसके लिए हमारी केन्द्र सरकार ही जिम्मेदार है। सब कुछ जानते हुए भी यह सरकार अलगाववादियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती है।
-प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
1-10-81,रोड न-8 बी द्वारकापुरम, दिलसुख नगर
हैदराबाद-500060( आं.प्र.)
० एक रोगी को जब तक कड़वी दवा नहीं दी जाती है तब तक उसका रोग ठीक नहीं होता है। इसी तरह जब तक अलगाववादियों के साथ कड़ाई नहीं दिखाई जाएगी तब तक उन्हें सौहार्द पसन्द नहीं आएगा। एक तरफ अलगाववादियों के साथ कड़ाई की जाए और दूसरी तरफ राष्ट्रभक्तों को हर दृष्टि से मजबूत किया जाए। पुराने अखाड़ों और व्यायामशालाओं को दुरूस्त कर युवकों को वहां भेजा जाए। हमारे युवा शारीरिक रूप से मजबूत बनें तभी यह देश अलगाववादियों से मुक्त होगा।
-बी.आर.ठाकुर
सी-115,संगम नगर
इन्दौर(म.प्र.)
० कुछ दिन पहले एक समाचार चैनल में भारत और पाकिस्तान के सम्बंधों पर बहस हो रही थी। बहस में इस्लामाबाद से एक जनाब कह गए कि कश्मीर तो भारत का अंग है ही नहीं। ऐसे ही पाकिस्तानी कश्मीरी अलगाववादियों को खाद-पानी देते हैं। कश्मीरी अलगाववादी भारत सरकार से ही पैसा और सुरक्षा लेते हैं। अलगाववादियों की सुरक्षा में सैकड़ों पुलिस वाले लगे हैं। यह बात समझ में नहीं आती है कि अलगाववादियों को सरकार सुरक्षा और पैसा क्यों देती है?
-गणेश कुमार
कंकड़बाग,पटना (बिहार)
० देश में बड़े-बड़े संगीतकार और कलाकार हैं। जब भी किसी बात को लेकर संगीत या कलाकारों का विरोध किया जाता है तो ये लोग तुरन्त बयान देने लगते हैं कलाकारों का विरोध ठीक नहीं है। विरोध करने वालों को न जाने ये लोग क्या-क्या कहने लगते हैं। क्या इन लोगों की नजर में जुबिन मेहता कलाकार नहीं हैं? यदि हैं तो फिर इन लोगों ने इस बार कश्मीरी अलगाववादियों का विरोध क्यों नहीं किया? इनकी चुप्पी आश्चर्य करने वाली है।
-विकास कुमार
शिवाजी नगर,वडा
जिला-थाणे (महाराष्ट्र)
० कश्मीर भारत का  एक अभिन्न अंग है। जो लोग यह कहते हैं कि कश्मीर भारत का अंग नहीं है उन्हें देश से बाहर किया जाना चाहिए। जुबिन मेहता के कार्यक्रम को बाधित करने वालों से सख्ती से निपटना चाहिए। यही लोग कश्मीर में शान्ति बहाल नहीं होने दे रहे हैं। आखिर ऐसे राष्ट्र विरोधियों को कब तक बर्दाश्त किया जाएगा?आज कश्मीर का इस्लामीकरण हो रहा है। नगरों और कस्बों के नाम बदलकर इस्लामी नाम रखे जा रहे हैं। यह सब कौन और क्यों कर रहा है,यह किसी से छिपा नहीं है।
-हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया
इन्दौर-452001(म.प्र.)  
हिन्दी की उड़ान
यह जानकर बहुत खुशी हुई कि हमारी हिन्दी सरकारी उपेक्षा के बाद भी वैश्विक गगन में तेजी से उड़ रही है। भारत में रहने वाले विदेशी हिन्दी सीख रहे हैं यह भी हमारे लिए गर्व की बात है। आज हिन्दी की पढ़ाई 50 देशों के सैकड़ों शिक्षण संस्थानों में हो रही है। दु:ख तो तब होता है जब हिन्दी और संस्कृत के प्रति सरकारी उपेक्षाओं से जुड़े समाचार पढ़ने को मिलते हैं।
-मनीष कुमार
तिलकामांझी,भागलपुर(बिहार)
० हिन्दी एक ओर तो वैश्विक भाषा बन रही है,वहीं भारत में उसकी उपेक्षा भी खूब होने लगी है। अंग्रेजी को ज्ञान-विज्ञान की भाषा कहकर कुछ लोग कुतर्क कर रहे हैं। प्रतिभा और विद्या किसी भाषा की गुलाम नहीं होती है। अंग्रेजों के भारत आने से हजारों साल पूर्व भारत ने विज्ञान,गणित,चिकित्सा एवं खगोल शास्त्र आदि के क्षेत्र में पूर्णता प्राप्त कर ली थी। पाइथागोरस से पहले बोधायन और डाल्टन से पहले कणाद ने गणित व परमाणु के सिद्घान्त का प्रतिपादन किया था। यह सब उस समय की मातृभाषा में ही हुआ था। फिर इस समय हिंदी की उपेक्षा का षड्यन्त्र क्यों ?
-रमेश कुमार मिश्र
ग्राम-कांदीपुर, पत्रा -कटघरमूसा
जिला-अम्बेदकर नगर(उ.प्र.)
जिहादियों को बढ़ावा
यह लेख '11 सितम्बर को वाशिंगटन में मुस्लिम मार्च' पढ़कर बड़ा दु:ख हुआ। इस लेख से यह भी पता चला कि अमरीका में ऐसे तत्व बढ़ रहे हैं जो 11 सितम्बर की दु:खदायक घटना की आड़ में जिहादियों को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे तत्वों को अमरीका से बाहर करने की जरूरत है। ऐसे ही लोगों ने कुछ वर्ष पहले यह मांग की थी कि 11 सितम्बर को  जिस जगह आतंकी हमला हुआ था उस जगह मस्जिद बनाने की अनुमति दी जाए।
-गोपाल
विवेकानन्द मिशन,गांधीग्राम
जिला-गोड्डा(झारखण्ड)  
दंगे और नेता
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर के कवाल गांव में सचिन और गौरव नामक दो भाइयों की मुस्लिमों ने बड़ी बर्बरता से हत्या इसलिए कर दी कि वे दोनों अपनी बहन के साथ छेड़छाड़ करने का विरोध कर रहे थे। इन दोनों के हत्यारों को पुलिस ने पकड़ भी लिया था,किन्तु किसी ऊपरी आदेश पर उन लोगों को छोड़ दिया गया। इसके बाद जो हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा। दंगाइयों ने 55 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
-मनोहर मंजुल
पिपल्या बुजुर्ग, जिला-पश्चिम निमाड़ (म.प्र.)
० सचिन और गौरव की जिस बर्बरता से हत्या की गई वह इस बात का परिचायक है कि देश में जिहादी मानसिकता बहुत तेजी से बढ़ रही है। हिन्दू समाज में अभी भी दयालु का भाव बहुत अधिक है। इसलिए वह छोटी-छोटी बातों पर जल्दी उग्र नहीं होता है। पर जब पानी सिर के ऊपर से बहने लगता है तब वह अपनी रक्षा के लिए उठ खड़ा होता है। जिहादी मानसिकता के प्रति हमें सजग रहना पड़ेगा।
-उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप
सीधी-486661(म.प्र.)
मानवता के हित में काफिर और जिहाद की पुनर्व्याख्या हो
केन्या की राजधानी नैरोबी में एक शापिंग मॉल में 21 सितम्बर को दिल दहला देने वाला आतंकी हमला हुआ। पहले गैर-मुस्लिम जनता की पहचान की गई। उन्हें मॉल में रोक लिया गया। बाकी को सुरक्षित बाहर निकाला गया। फिर रोके गए गैर-मुस्लिम समुदाय पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी की गई। अनेक बेकसूर निहत्थे लोग मारे गए। इसमें आधी संख्या महिलाओं और बच्चों की थी जिसमें कई भारतीय  भी शामिल थे। भारत में इसके विरोध में न कहीं मोमबत्ती जलाई गई और न ही कोई विरोध प्रदर्शन हुआ। इस घटना के 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि पेशावर(पाकिस्तान) के एक प्राचीन चर्च में भीषण धमाका हुआ। रविवार की ईश-आराधना में शामिल ईसाई समुदाय के 60 से अधिक व्यक्ति मारे गए। यह जघन्य हत्या  भी मजहब  के नाम पर की गई। मुजफ्फरनगर का दंगा इस कड़ी की शुरुआत मानी जा सकती है,क्योंकि इस दंगे में ए के 47 जैसे आधुनिकतम हथियारों का उपयोग हुआ था। इसमें भी बड़ी संख्या में बेकसूर बेरहमी से मारे गए। दंगा कराने वाला मंत्रिपरिषद में दहाड़ रहा है और निर्दोष जमानत के लिए अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। राजनीतिक विरोधियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
इन तीनों स्थानों पर न तो नरेन्द्र मोदी की सरकार है और न भाजपा की। फिर भी आतंकवादी हमले हुए, दंगे हुए। भारत का सेकुलर मीडिया गुजरात के दंगों पर पिछले 11 सालों से छाती पीट रहा है, लेकिन इन दंगों के लिए दोषी को भी दोषी कहने के मुद्दे पर मुंह सिल लेता है। यह सोचने का विषय है कि भारत समेत पूरी दुनिया में गैर-मुस्लिमों पर ऐसे हमले क्यों हो रहे हैं? वह कौन सी मानसिकता है जो इन हमलावरों को प्रोत्साहित और पुरस्कृत करती है?
शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व और मजहबी सहिष्णुता का अभाव ही इसका मूल कारण है। एक हिन्दू स्वभाव और संस्कार से ही शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व और सर्वधर्म समभाव में विश्वास करता है। वह हर धार्मिक अनुष्ठान में इसकी घोषणा भी करता है –
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिदु:खभाग्भवेत।
ओम शान्ति:। ओम शान्ति:।    ओम शान्ति:।  (गरुड़ पुराण, उत्तरखंड ़)
सभी सुखी हों, सभी निरापद हों, सभी शुभ देखें, शुभ सोचें। कोई कभी भी दु:ख को प्राप्त न हो।
ईसाई समुदाय भी आतंकवाद में शामिल नहीं है। इस्लाम की पुस्तकों में वर्णित ह्यकाफिरह्ण और ह्यजिहादह्ण शब्दों की गलत व्याख्या ही कथित इस्लामी आतंकवादियों को दूसरों पर जुल्म ढाने का लाइसेंस देती है। आज का पूरा विश्व जिस युग में प्रवेश कर गया है, वहां असहिष्णुता और घृणा का कोई स्थान हो ही नहीं सकता। विश्व-शान्ति के लिए सहिष्णुता, सर्वधर्म समभाव और शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व के भाव और संस्कार परम आवश्यक हो गए हैं। हम पुन: मध्य युग की ओर नहीं लौट सकते। लौटना संभव भी नहीं है। ऐसे में मुस्लिम विद्वानों और मजहबी नेताओं  पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। उनसे अपेक्षा है कि ह्यकाफिरह्ण और ह्यजिहादह्ण की आज के परिवेश में मानवता के हित में उचित व्याख्या कर पूरे विश्व में शान्ति स्थापित करने के पुनीत कार्य में अपना अमूल्य योगदान दें।
-बिपिन किशोर सिन्हा
लेन-8सी,प्लाट न-78,महामनापुरी एक्स, पो-बी एच यू,वाराणसी (उ.प्र.)

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