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जंगली भैसे को अरना कहते हैं। अरना शब्द संस्कृत के आरण्य से बना है।आदिवासी लोग नर भैसे को अरना और मादा को अरनी कहते हैं। यह पशु नेपाल की तराई के घास के जंगलों से लेकर पूर्व में असम तथा अरुणाचल के जंगलों में बहुलता से पाए जाते हैं। अरना दिन-रात किसी झील, तालाब, नदी के किनारे, ऊंची घास या घने पेड़ों के बीच सेाता रहता है। सूर्य की गर्मी इसे सहन नहीं होती। रात होने पर यह बाहर निकलता है। अरना बहुत क्रूर स्वभाव का होता है। शत्रु को देखते ही गुस्से से पागल हो जाता है। लाल-लाल आंखों से अपनी जान का परवाह किये बिना शत्रु पर टूट पड़ता है। शत्रु को परास्त कर लेने के बाद घंटों शत्रु के मृत शरीर को पैरों से कुचलता रहता है।
एक भोजपुरी लोककथा में अरनों की बहादुरी की चर्चा है। किसी जमाने में सात अरनी एक झुंड में रहती थीं। उन सबके बीच एक कटड़ा (बच्चा) था। कटड़े की दोस्ती जंगल में रहने वाले बाघ के कुछ बच्चों से थी। वे साथ रहते और साथ ही खेलते थे। बाघ के बच्चे मांसाहारी थे। उन्हें अपनी शक्ति का बड़ा घमंड था। कटड़ा शाकाहारी था लेकिन ताकत में उनसे कम नहीं था। एक दिन बाघ के बच्चों ने अपने पिता की शक्ति की बड़ी प्रशंसा की। कहा वे अरना या अरनी को तो पलक झपकते मार सकते हैं। इस पर कटड़े को बड़ा गुस्सा आया। उसने बाघ के बच्चों की खूब पिटाई की और चुनौती देते हुए कहा-
सात भैंस का सात चभाका
सात सेर घी खाऊं रे,
कहां हैं मेरे बाघ मामा
एक टक्कर लड़ जाऊं रे।
इस कथा से अरनों की शक्ति का पता चलता है। अरना के सामने शेर और हाथी जैसे भयंकर पशु को भी दुम दबाकर भागना पड़ता है। भारत का जंगली अरना साढ़े छह फीट ऊंचा और वजन 1170 कि.ग्रा. तक का होता है। सींग चार-पांच फीट तक लम्बे होते हैं। विश्व का सबसे छोटा अरना अमरीका के सेलेबस द्वीप में पाया जाता है। यह गाय के नवजात बच्चे के बराबर होता है। यह अपने नुकीले सीगों द्वारा दूसरे जन्तुओं से अपनी रक्षा करता है।
प्रथम विश्वयुद्ध के समय यूरोप में बड़ी संख्या में अरने मारे गए। इनके मांस सैनिकों के भोजन के काम में आता था। विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद कहा गया कि यूरोप से अरना समाप्त हो चुके हैं। 1923 में इस प्राणी को बचाने के लिए लन्दन में यूरोप के कई देशों के प्रतिनिधियों की एक बैठक हुई। उनके निर्णय के अनुसार चिडि़याघरों में अरनों की गिनती की गई। यूरोप के नर और अमरीका के मादा अरनों की जोड़ी बनाई गई। इन उपायों के फलस्वरूप यूरोप और अमरीका के जंगलों में इनकी संख्या में वृद्धि हुई है।
प्राचीन काल में धार्मिक समारोहों और उत्सवों में जंगली भैंसों की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। उनके साथ नट और कलाबाज करतब दिखाते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुद्रा पर भैसों के शिकार का एक दृश्य अंकित है। मनुष्य और अरना के बीच युद्ध हो रहा है। मनुष्य का एक पैर भैसे की थूथनी पर और दूसरा भूमि पर गया है। एक हाथ से सींग पकड़कर दूसरे हाथ से पीठ में भाला घोंपते दिखाया गया है।
सभी पालतू जानवर किसी जमाने में जंगली जीव थे। हमारी पालतू भैसें जंगली अरना की संतान हैं। खूटों से बंधे-बंधे इन भैसों ने अपनी शारीरिक शक्ति खोयी है। यह भी आश्चर्य की बात है कि भैंस का दूध सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में प्रयोग में लाया जाता है। अन्य देश गाय का दूध इस्तेमाल करते हैं। अनुमान है कि भारत में तेरह करोड़ से अधिक पालतू भैसें हैं। करीब पांच हजार साल पूर्व सिन्धु कालीन संस्कृति में यह पशु सर्वोपरि पूज्य पशुओं में था जो देवयोनि का जीव समझा जाता था। उस समय तृणभोजी और मांसाहारी सभी पशु महिसासुर के अधीन रहते थे। उमेश प्रसाद सिंह
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