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मध्यप्रदेश में चुनाव की तिथि घोषित नहीं हुई है, लेकिन नवम्बर में निर्वाचन और दिसंबर में सरकार का गठन तय है। सभी पार्टियां इसी हिसाब से अपनी तैयारियां कर रही हैं। भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को पहले ही अपना नेता घोषित कर रखा है। लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस इस मामले में काफी पीछे है। गुटीय वर्चस्व और आपस की लड़ाई के कारण कांग्रेस अभी तक अपना नेता तय नहीं कर पाई है। कांगे्रस के नेता भले ही मुख्यमंत्री के लिए एक-दूसरे का नाम ले रहे हैं, लेकिन मन-ही-मन वे स्वयं को ही इस कुर्सी का दावेदार सिद्घ करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के नेता भले ही इसे कांग्रेस के नेताओं का नाटक कहें, लेकिन वे एकजुट होने का भरसक प्रयास भी कर रहे हैं। हालांकि इस प्रयास में कांग्रेस आलाकमान ने कांग्रेस के महासचिव और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ नाइंसाफी कर दी है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की किसी भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से दिग्विजय सिंह को दूर रखा गया है। कांग्रेस की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ, अजय सिंह, सुरेश पचौरी और कांतिलाल भूरिया ने चुनावी कमान संभाल रखी है।
राजनीति के जानकारों के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान ने जानबूझकर दिग्विजय सिंह को पर्दे के पीछे रखा है। जानकार बताते हैं कि चूंकि वर्ष 2003 का चुनाव भाजपा ने दिग्विजय सिंह से ही जीता था। तब भाजपा के विरोध और प्रचार का नारा था ह्यह्यमिस्टर बंटाधारह्णह्ण, यह संबोधन दिग्विजय सिंह के लिए ही था। कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकारों ने यह अनुमान लगाया है कि इस बार भाजपा के प्रचार का केन्द्र ह्यदिग्विजय का कुशासन बनाम शिवराज का सुशासनह्ण होगा। कांग्रेस को लगता है कि दिग्विजय सिंह की नाकामियां, उनका कुशासन और सड़क, पानी और बिजली की उपेक्षा लोगों को अभी याद होंगी। अगर दिग्विजय सिंह को आगे रखा तो संभव है प्रदेश की दुर्दशा की यादें ताजा हो जायें। भाजपा के नेताओं को पता है कि दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे रहें या सामने वे अपना खेल खेलेंगे ही। इसलिए भाजपा चुनावी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।
चुनावी तैयारियों को देखकर साफ लगता है कि शिवराज आगे-आगे चल रहे हैं और महाराज पीछे-पीछे। सत्ता में रहते हुए भी भाजपा आक्रामक है, लेकिन कांग्रेस विपक्ष में है, फिर भी सुरक्षात्मक। भाजपा ने अपने प्रचार की रणनीति इस प्रकार बनाई है ताकि वह केन्द्र सरकार के भ्रष्टाचार, महंगाई और घोटालों को उजागर करे, साथ ही शिवराज सरकार की उपलब्धियों को भी जनता के सामने रख सके। देखा जाए तो पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं हुई जो भाजपा को परेशान करने वाली सिद्घ हुई। लेकिन शिवराज की लोकप्रियता और छवि ने सबको पछाड़ दिया। शिवराज सिंह चौहान ने अपने लगभग 8 वर्षों के कार्यकाल में विभिन्न वर्गों के लिए कई योजनाएं लागू की है एवं विभिन्न वर्गों के लिए आयोजित पंचायतों ने जहां एक ओर मुख्यमंत्री को सीधे संवाद का मौका दिया वहीं उपेक्षित समूहों को अपनी बात रखने का स्थान और अवसर मिला हैं। कांग्रेस मुख्यमंत्री को भले ही घोषणावीर कहकर आलोचना करती हो, लेकिन शिवराज सरकार ने अधिकांश घोषणाओं को लागू कर आम जनता में भरोसा और विश्वास पैदा किया है। शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश के सर्व समाज को खुश करने की कवायद की है।
उल्लेखनीय है कि पहले जहां भाजपा ने सभी उप चुनावों में जीत दर्ज की थी, वहीं हाल में अधिकांश उप चुनावों में कांग्रेस को सफलता मिली है। इस जीत-हार की व्याख्या मध्यप्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री अरविंद मेनन इस तरह करते हैं- हम उप चुनाव में हारे नहीं, बल्कि कांग्रेस से उसकी सीट नहीं ले सके। अर्थात् कांग्रेस जिन उप चुनावों में जीती है वहां वह पहले से ही काबिज थी। भाजपा ने अपनी कोई सीट नहीं गवांई। लेकिन मध्यप्रदेश में अगर चुनावी आंकड़ों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट है कि वर्ष 2003 में जिस तरह की जीत भाजपा को और जिस प्रकार की हार कांग्रेस को मिली थी, 2008 में उसमें काफी परिवर्तन आ गया। 2003 में जहां 67.41 प्रतिशत मतदान हुआ था और भाजपा को 173, कांग्रेस को 38 तथा अन्य को 19 सीटें मिली थी। इस चुनाव में जहां भाजपा को 42़5 प्रतिशत मत मिला, वहीं कांग्रेस को 31़7 प्रतिशत, शेष मत अन्य दलों को मिले। कांगे्रस और भाजपा के बीच मतों का यह अन्तर असामान्य था। शेष मत निर्दलीय, बसपा, सपा, गोगपा अन्य दलों में विभाजित हो गए थे। किन्तु 2008 के चुनाव में आंकड़ों में भारी फर्क हो गया। तब तक भाजपा शासन को 5 वर्ष पूरे हो चुके थे। इस चुनाव में कुल 69़52 प्रतिशत मतदान हुआ। भाजपा को 143 और कांग्रेस को 71 सीटें मिली। भाजपा को 37़64 प्रतिशत और कांग्रेस को 32़39 प्रतिशत मत मिले। इस वर्ष बसपा, भारतीय जनशक्ति, सपा और निर्दलीयों की बीच शेष वोटों का बंटवारा हुआ।
इस साल होने वाले चुनाव में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं युवा और नये मतदाता। चुनाव आयोग से लेकर स्वयंसेवी संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी मतदाता जागरूकता के लिए बढ़-चढ़कर प्रयास किया है। इसका असर विधानसभा और बाद में लोकसभा चुनाव पर होना लाजिमी है। उल्लेखनीय है कि इस विधानसभा चुनाव के लिए कुल 4़65 करोड़ मतदाता हैं। इनमें 87़94 लाख मतदाता 18 से 23 साल आयु वाले हैं। लगभग 35 प्रतिशत मतदाता युवा हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार जिस दल को इन युवा मतदाताओं का समर्थन मिलेगा उसे ही सफलता मिलेगी। और वही सरकार बनायेगा। प्रदेश में शिवराज और सिंधिया दोनों ही युवा मतदाताओं पर अपनी दावेदारी कर रहे हैं। देखना यह है कि 54 वर्षीय शिवराज युवाओं को अपने पक्ष में रख पाते हैं या 42 वर्षीय ज्योतिरादित्य युवाओं से जुड़ पाते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए खुद को साबित करने का मौका है। प्रदेश में पिछले दस वर्षों से कांग्रेस सत्ता से दूर है। कांग्रेस पार्टी आलाकमान ने बहुत सोच-समझकर सिंधिया पर दांव खेला है। सिंधिया के लिये यह अहम लेकिन कठिन और चुनौती भरी जिम्मेदारी है। हालांकि सिंधिया के पास अपने को सिद्घ करने के लिए बहुत कम समय है, लेकिन दिग्विजय सिंह, भूरिया और अजय सिंह को छोड़कर अधिकांश नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का पक्ष ले रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ और सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कई अवसरों पर सिधिंया के पक्ष में बयान दिया है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इन सिंधिया समर्थक नेताओं से इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर यह कहा है कि कांग्रेस पार्टी की जीत की स्थिति में विधायक दल द्वारा ही अपना नेता चुना जायेगा। दिग्विजय सिंह ने सिंधिया को अस्वीकार नहीं किया तो स्वीकार भी नहीं किया है। अपनी पार्टी में आंतरिक विरोध और सर्वानुमति न बनने के कारण सिंधिया ने यह कहा है कि प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री कोई भी बने, उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी।
यद्यपि कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए विधानसभा का यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। कांग्रेस इस चुनाव में पिछड़ गई तो वह संगठनात्मक रूप से बहुत कमजोर हो जायेगी। भाजपा बहुत ही सधे हुए अंदाज में अपनी तैयारियों को अमलीजामा पहना रही है। कांग्रेस भी भाजपा की हर तैयारी का जवाब देने की भरसक कोशिश कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा कहते हैं कि शिवराज सिंह चौहान का व्यक्तित्व और उनकी छवि सब पर भारी है। वे जननेता हैं। प्रदेश की जनता में लोकप्रिय और विश्वसनीय। ह्यशिवराज सिंह चौहान जहां-जहां जन आशीर्वाद के लिए पहुच रहे हैं, उनको देखने, मिलने और सुनने के लिए जन-सैलाब उमड़ रहा है। जनता की आंखों में अपने लाडले मुख्यमंत्री के लिए प्यार है। भाजपा नेताओं के दावे अपनी जगह सही हो सकते हैं, लेकिन सत्ता-विरोधी भावनाएं, विधायकों के प्रति स्थानीय असंतोष और ज्योतिरादित्य सिंधिया के रूप में कांग्रेस का नया और युवा चेहरा सबसे बड़ी चुनौती है, जबकि कांग्रेस के लिए शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता और पार्टी की गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती।
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