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पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जो इलाका शांति-सौहार्द के लिए जाना जाता है, वहां के निवासी पिछले एक पखवाड़े से सांप्रदायिक हिंसा, तनाव, आगजनी, अलगाव जैसी त्रासदी झेल रहे हैं। लेकिन इस सबमें विडंबना यह है कि पीडि़त हिंदू केंद्र की यूपीए सरकार एवं उप्र की अखिलेश यादव सरकार की एकपक्षीय कार्रवाई की मार झेल रहा है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और दूसरे सेकुलर दल सियासी हितों की पूर्ति के लिए मुस्लिमों के दर्द को तो सहला रहे हैं, पर उन्होंने हिंदू महिलाओं, बच्चों, नौजवानों और वृद्घों के जख्मों पर मरहम लगाना उचित नहीं समझा। उत्तर प्रदेश की तिजौरी में सबसे ज्यादा राजस्व जमा कराने वाले मुजफ्फरनगर एवं शामली जनपदों में सरकारी और प्रशासनिक विफलता एवंं प्रधानमंत्री डा़ मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उप्र के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के उपेक्षा पूर्ण रवैये ने हिंदुओं के भरोसे को झकझोर दिया है। गहरे दुख और संकट की इस घड़ी में इन नेताओं ने उनकी सुध लेने पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। 15 सिंतबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मुजफ्फरनगर दौरे के दौरान दंगा पीडि़त हिंदू समुदाय के ज्यादातर लोग आप बीती सुनाने का इंतजार ही करते रह गए। इन पीडि़तों की उपेक्षा का वही रवैया अगले दिन 16 सितंबर को भी दिखाई दिया, जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी मुस्लिमों के आंसू पोंछकर और उनकी पीठ थपथपाकर लौट गए। पीडि़तों के परिजनों को उम्मीद थी कि वे उनका दर्द बांटने और उनका दुखड़ा सुनने जरूर उनके बीच आएंंगे। पर कंेंद्र और राज्य सरकार, दोनों राजधर्म का पालन करना भूल गईं। उन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारे हदें पार कर दीं। हैरत की बात है कि हिंसक वारदातों के दौरान सपा और कांग्रेस नेताओं को इलाकों में घूमने की पूरी छूट प्रशासन ने दे रखी थी। उसने तो सिर्फ मुस्लिमों के साथ हुई घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर यह धारणा बनाने का काम सुनियोजित तरीके से किया कि मुजफ्फरनगर में हिंसा के लिए न केवल हिंदू समुदाय जिम्मेदार है बल्कि मुस्लिम समुदाय को अप्रत्याशित रूप से जान-माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा है। भाजपा नेताओं का आरोप है कि उसके वरिष्ठ नेताओं को वहां जाने की इसलिए इजाजत नहीं दी गई ताकि असलियत समय रहते उजागर न हो जाए, इसलिए मीडिया में भी एक ही पक्ष की शिकायतें छायी रही। उत्तर प्रदेश के पूर्व सहकारिता मंत्री और जाट समुदाय की बालियान खाप के नेता सुधीर बालियान ने पीडि़त इलाकों का सघन दौरा कर इन पंक्तियों के लेखक से कहा कि 27 सितंबर को महापंचायत से लौटते किसानों के एक बड़े समूह पर गंगनहर की पटरी पर मुस्लिमों की हथियारबंद भीड़ ने सुनियोजित तरीके से हमला कर दर्जनों लोगों की जान ले ली और उतने ही गंभीर रूप से घायल कर दिए। घटना के बाद जौली गंगनहर से किसानों की 16 ट्रैक्टर-ट्रालियां और छह जली हुई मोटरसाइकिलें बरामद हुईं। गांव कमालपुर के रविदास मंदिर में वंचित, प्रजापति और कश्यप समाज के करीब 300 लोग शरण लिए हुए हैं। उन्हें न तो प्रशासन की ओर से कोई राहत सामग्री प्रदान की गई और न ही चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई गई। शिविर में पनाह लिए लोगों को मलाल है कि केंद्र और प्रदेश के मुखिया बसीकलां के लोगो की सुध लेने पहुंच गए, लेकिन तीन किलोमीटर की दूरी तय कर कमालपुर के रविदास मंदिर में शरणार्थी बने लोगों से मिलने का समय नहीं निकाल पाए। उनका कहना है कि उन राजनेताओं की एकपक्षीय नीति से दो समुदायों के बीच की खाई बजाए पाटने के और गहरी हो जाएगी। इस शिविर में शाहपुर, पलड़ा, बसीकलां, सिकेड़ा और कवाल गांव के लोग टिके हुए हैं। वे मुस्लिम बहुल गांवों में असुरक्षा की वजह से लौटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। शिविर में शरण लिए सुनील सपा-कांग्रेस पर मुस्लिम वोट बैंक की सियासत करने का आरोप जड़ते हैं। इसी शिविर में बसीकलां निवासी लता कहती हैं कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बसीकलां में एक पक्ष के लोगों की पीड़ा जानने तो पहुंचे, पर उन्होंने यह जानने का प्रयास नहीं किया कि उसी गांव के हिंदुओं की क्या हालत है। वे अपना गांव और घर छोड़ने को क्यों मजबूर हुए। विजयपाल, मिथलेश और संजय तो कहते हैं कि सेकुलर नेताओं ने मुस्लिमों की वाहवाही लूटने के चक्कर में हिंदुओं की जानबूझकर उपेक्षा की। जौली गंगनहर हमले में मारे गए कस्बा भोकर हेड़ी निवासी मृतक सोहनवीर की पत्नी शकुंतला देवी को इस बात का गहरा मलाल है कि उन्हें सांत्वना देने न पीएम आए और न सीएम आए। गांव रहमतपुर निवासी मृतक अजय की मां राजबाला कहती हैं कि बेटे की मौत पर किसी को उनके आंसू पोछने की फुर्सत नहीं मिली। बसेड़ा निवासी बृजपाल सिंह राणा की पत्नी जगवती और उसकी चारों बेटियां, प्रतिभा, सीमा, भावना तथा शिखा और बेटे लव को भी यही मलाल है कि शासन-प्रशासन ने उनके दुख-दर्द को बांटने की कोशिश नहीं की। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने इस बात पर गहरा रोष जताया कि हिंसक घटनाओं के लिए जाटों को बिना कारण बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के लिए सभी समुदाय और वर्ग बराबर होते हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बसीकलां, तितावी, कांधला के पीडि़तों की सुध लेना तो उचित समझा लेकिन उन्होंने पुरबालियान और जौली की सुध लेना गवारा नहीं किया। जाटों की गठवाला खाप के चौधरी बाबा हरकिशन सिंह ने कहा कि सरकार के पक्षपातपूर्ण रवैये से लोगों में भारी रोष व्याप्त है। बिजनौर से रालोद सांसद संजय चौहान का कहना है कि मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए प्रशासन पूरी तरह से जिम्मेदार है। प्रशासन ने जिस प्रकार शासन के दबाव में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया उससे स्थिति और गंभीर हो गई। उन्होंने कहा कि जितने भी नेता मृतकों के परिजनों से मिलने पहुंचे वे अपनी बिरादरी और मजहब वालों के अलावा दूसरे पक्ष से मिलने नहीं गए। इससे भी दोनों संप्रदायों में और खाई बढ़ी है। सरकार द्वारा दंगा भडकाने के मुकदमेंं के एक नामजद आरोपी भाजपा विधानमंडल दल के नेता हुकम सिंह दंगे के पीछे शासन एवं प्रशासन की चूक मानते हैं। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव सरकार अपनी जिम्मेदारी से बचने को भाजपा पर झूठे आरोप मढ़ रही है, जबकि हिंसा प्रशासन के शासन के दबाव में गलती पर गलती किए जाने से फूटी। उन्होंने यह भी कहा कि पंचायत न हो इसके लिए लोगों को मनाया जा सकता था। लेकिन शासन-प्रशासन के किसी व्यक्ति ने भी बात नहीं की। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि जुमे की सभा में बात बिगड़ी। डीएम और एसएसपी अपने को सेकुलर साबित करने के लिए सभा के दौरान मंच पर चढ़ गए। प्रतिबंध के बावजूद सभा और मंच पर चढ़ने से इन दोनों की बातों से गलत संदेश गया।दंगे के एक अन्य नामजद आरोपी और सरधना के भाजपा विधायक संगीत सोम कहते हैं कि सरकार की विकास की बात ढांेग हैं। उसने वोट पाने के लिए दंगे करवाए हैं। दंगे के सबसे बड़े जिम्मेदार आजम खान है। सबसे पहले उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। उन्हांेने कहा कि राज्य सरकार अपनी गलती हमारे सिर पर थोप रही है। उन्होंने अपने ऊपर महापंचायत में भड़काऊ भाषण देने के आरोप को गलत बताया। भाजपा के थानाभवन से विधायक सुरेश राणा और बिजनौर के कुंवर भारतेंद्र सिंह, दोनों ने आरोप लगाया कि सारा मामला शासन-प्रशासन की एकपक्षीय कार्रवाई से बिगड़ा है। उन्होंने दंगे के असली अपराधियों को गिरफ्तार करने की मांग की। मुजफ्फरनगर के प्रमुख भाजपा नेता संजय अग्रवाल, जिन्हें प्रशासन ने शांति भंग की आशंका में गिरफ्तार कर कई दिनों तक जेल में बंद रखा, ने कहा कि सपा-बसपा नेताओं में मुस्लिम वोट बैंक को अपने पाले में करने की होड़ लगी है। उनका आरोप है कि दंगे बसपा के मीरापुर विधायक मौलाना जमील अहमद, बसपा सांसद कादिर राणा, कांग्रेस नेता एवं पूर्व गृह राज्यमंत्री सईदुज्जमां और सपा के प्रांतीय सचिव राशिद सिद्दीकी के भड़काऊ भाषणों के कारण हुए। उन सभी को गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए। मुजफ्फरनगर के पूर्व पालिका अध्यक्ष डा़ सुभाष चंद शर्मा ने उत्तर प्रदेश सरकार की इस बात के लिए कड़ी आलोचना की कि उसने भाजपा की वरिष्ठ महिला नेत्री एवं मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, वरिष्ठ नेता रवि शंकर प्रसाद, मेरठ से सांसद राजेंद्र अग्रवाल, उप्र के पूर्व भाजपा अध्यक्ष कलराज मिश्र, उप्र पिछड़ा आयोग के पूर्व सदस्य जय प्रकाश तोमर आदि नेताओं को हिंसा प्रभावित इलाकों में जाने और पीडि़तों की सुध लेने की अनुमति नहीं दी है। इसी से पता चलता है कि सपा सरकार को सिर्फ एक वर्ग की ही चिंता है और मुस्लिम वोटों की खातिर सरकार कर्त्तव्य पालन भूल गई है।
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