जवाहिरी की जिहादी सलाह में ‘कश्मीर’ और ‘हिन्दू’
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लादेन वध के बाद अल कायदा का मुखिया बना एयमन अल-जवाहिरी इन दिनों फिर सक्रिय हुआ दिखता है। जवाहिरी अल कायदा का वही जिहादी है जो, बताते हैं, लादेन को खास रणनीतिक सलाहें देता था। उसने लंबी चुप्पी तोड़ते हुए जिहाद के कुछ नए कायदे जारी किए हैं। उसकी इन जिहादी ‘हिदायतों’ पर भारत के विषेशज्ञों का ध्यान जाना स्वाभाविक था, क्योंकि उसने कश्मीर का तो उल्लेख किया ही है, हिन्दुओं के बारे में भी अपने लड़ाकों को ‘सलाह’ दी है। उसने मुस्लिम देशों में मुसलमानों के दूसरे फिरकों पर हमले बोलने से बचने को कहा है। जवाहिरी की एक और ‘सलाह’ पर विशेषज्ञों द्वारा गौर किया जा रहा है और वह है कि जिन देशों में पैर जमाने और अपनी उन्मादी सोच को फैलाने का मौका मिल जाए वहां जिहाद शुरू कर दो।
जिहाद के इन नए पैंतरों की खोज खबर ली है संस्था ‘एसआईटीई’ ने। इस संस्था ने उत्तर अमरीका से लेकर कश्मीर तक के अल कायदी मंसूबों की पड़ताल की है। इसके आधार पर संस्था ने एक दस्तावेज तैयार किया है, जिनसे जवाहिरी के पैंतरों का पता चला है। कॉकेशस क्षेत्र में रूसियों से उलझ रहे जिहादियों, कश्मीर में भारतीयों से जूझ रहे आतंकियों और चीन के सिंक्यांग में लड़ते मजहबी कट्टरवादियों की पैरवी करते हुए जवाहिरी ने उन्हें ‘सही’ ठहराया है। माना जाता है कि जवाहिरी अभी पाकिस्तान में छुपा है। पाकिस्तान को वह जिहादियों के लिए ‘जन्नत’ बनाने के सपने पाले है। उसका यह भी कहना है कि अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, यमन और सोमालिया में संघर्ष छिड़ेगा। उसका मानना है कि जिहाद के लिए सुरक्षित अड्डे चाहिए। अल कायदा के लड़ाकुओं का सैन्य लक्ष्य तो अमरीका और इस्रायल को कमजोर करना है। जिहादी ख्यालों का प्रचार करने के लिए जवाहिरी ने ‘दावा’ की पैरवी भी की है। जवाहिरी ने अपने लड़ाकों से कहा है कि मुस्लिम देशों में रह रहे ईसाइयों, हिन्दुओं और सिखों से मत जूझो, ऐसी जगहों पर हमले मत बोलो जहां भीड़ में मुसलमानों के भी मारे जाने का अंदेशा हो।
ँप्रतिरक्षा मामलों की सलाहकार संस्था आईएचएस जेन्स का अध्ययन बताता है कि सीरिया में बशर सरकार के खिलाफ लड़ रहे विद्रोहियों में आधे से ज्यादा कट्टरवादी इस्लामी जिहादी गुट के तत्व हैं। अध्ययन के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। विद्रोहियों की तादाद 100,000 तक पहुंच गई है। ये करीब 1000 जत्थों में बंटे हैं। विद्रोहियों में 10,000 भाड़े के विदेशी जिहादी हैं जो अल कायदा से जुड़े ताकतवर धड़ों के लिए लड़ते हैं। इनके अलावा 30,000 से 35,000 कट्टरवादी इस्लामी हैं जो जिहादियों जैसे चाल-चलन के ही हैं, पर सारा ध्यान सीरिया के संघर्ष पर ही जमाए हुए हैं। विद्रोहियों में 30,000 नरम रुख वाले हैं। ये जानकारी अमरीका को भी हो गई है और अब पश्चिमी देशों में यह चिंता होने लगी है कि ‘विद्रोहियों’ के लिए भेजे जाने वाले हथियार कहीं ‘गलत’ हाथों में पड़ जाएं। अमरीकी सुरक्षा विशेषज्ञों को लग रहा है कि अगर विद्रोहियों में भारी तादाद में अल कायदा से जुड़े तत्व हैं तो पूरा का पूरा संघर्ष वे जिहाद और तालिबानी राज कायम करने की दिशा में मोड़ देंगे, इसलिए सीरिया पर संभावित अमरीकी हमले के खिलाफ भी अमरीका में एक बड़ा जनमत बनता जा रहा है।
भारत-अमरीका में नजदीकी को उतावला पेंटागन
16 से 18 सितम्बर के बीच नई दिल्ली की अपनी सरकारी यात्राा से लौटने के बाद से अमरीका के उप रक्षा मंत्री एशटन कार्टर भारत के ‘महत्व’ को लेकर मीठी मीठी बातें करने लगे हैं। वाशिंगटन लौटते ही उन्होंने बयान दागा कि दुनिया के मंच पर एक दूसरे का साथ देना तो भारत और अमरीका के नसीब में बदा है। कारण? कार्टर इसका कारण गिनाते हैं कि दोनों के मूल्य साझा हैं और बहुत से मुद्दों पर नजरिया भी एक सा है। कार्टर की बात में दम इसलिए देखा जाना चाहिए क्योंकि नई दिल्ली में उतरने से पहले उनका हवाई जहाज अफगानिस्तान और पाकिस्तान में उतर चुका था। अफगानिस्तान में 2014 के बाद के समीकरणों में भारत की अहम भूमिका को कार्टर भी जानते हैं। अफगानिस्तान के भी हित में भारत से नजदीकी बनाए रखना जरूरी है। इस लिहाज से अमरीकी उप रक्षा मंत्री कुछ सोचकर ही बोले होंगे। दिल्ली में वे विदेश और रक्षा प्रतिष्ठान के आला अधिकारियों से मिले थे। बताते हैं, लगे हाथ उन्होंने अमरीका में होने वाली ओबामा-मनमोहन बातचीत पर सलाह भी कर ली, भारत-अमरीका के बीच बहुआयामी रक्षा संबंधों को गहराने के तरीके भी ढूंढे।
मालदीव ने फिर जताया नाशीद पर भरोसा
नाशीद एक बार फिर मालदीव के राष्ट्रपति बनने की राह पर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव के पहले दौर में उन्होंने अपने सामने खड़े तमाम प्रतिद्वंद्वियों को भारी अंतर से पछाड़ दिया। 2000 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में हुए पहले दौर के चुनाव में नाशीद को 45 प्रतिशत मत मिले जो जीत के लिए अहम 50 प्रतिशत के आंकड़े से तो दूर हैं पर नाशीद की लोकप्रियता के बारे में काफी कुछ कहते हैं। लेकिन अड़चन एक और भी है। पहले दौर के नतीजों पर सवाल खड़ा कर देने के चलते अब फैसला वहां के सर्वोच्च न्यायालय के हाथ में है और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक सुनवाई जारी है। जम्हूरी पार्टी के उम्मीदवार गासिम इब्राहिम ने मतदाता सूचियों में गड़बड़ी होने के आरोप लगाते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत में अपील की थी कि पहले दौर के चुनाव को निरस्त कर दिया जाए। गासिम इसमें किनारे तक आ कर हार गए थे। चुनाव आयोग ने किसी भी गड़बड़ी की संभावना से इनकार किया है। पहले दौर में दूसरे नंबर पर रहे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के भाई अब्दुल्ला यामीन से नाशीद दूसरे दौर के चुनाव में भिड़ेंगे जो 28 सितम्बर को होना तय है। राजधानी माले में नाशीद की वापसी को लेकर उत्साह है। भारत माले में चल रही राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखे है। इस पड़ोसी देश में शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न होने पर भारत ने अपनी बधाई भेजी, साथ ही कहा कि वहां के सभी राजनीतिक दल लोगों की इच्छा का सम्मान करें। भारत के लिए मालदीव का रणनीतिक महत्व है। इसलिए वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में माले के साथ संबंधों पर बहुत बल दिया जाता था। लेकिन यूपीए की विदेश नीति में पड़ोसी देशों के साथ गर्मजोशी में कमी देखने में आई है।
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