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श्राद्ध का पक्ष चल रहा है। पुरानी पीढ़ी के लोग अपने पितरों को तर्पण कर रहे हैं, किन्तु नई पीढ़ी के बच्चे इस सम्बंध में अनेक तरह के सवाल उठाते हैं। अत: यहां श्राद्ध से जुड़े कुछ प्रसंगों को दिया जा रहा है। 1 श्राद्घ क्या है?श्राद्घ प्रथा वैदिक काल के बाद शुरू हुई और इसके मूल में उपरोक्त श्लोक की भावना है। उचित समय पर शास्त्रसम्मत विधि द्वारा पितरों के लिए श्रद्घा भाव से मंत्रों के साथ जो (दान-दक्षिणा आदि) दिया जाए, वही श्राद्घ कहलाता है।2 श्राद्घ के मुख्य देवता कौन हैं?वसु, रुद्र तथा आदित्य, ये श्राद्घ के देवता हैं।3 श्राद्घ किसका किया जाता है और क्यों?हर मनुष्य के तीन पूर्वज-पिता, दादा और परदादा क्रमश: वसु, रुद्र और आदित्य के समान माने जाते हैं। श्राद्घ के वक्त वे ही सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि समझे जाते हैं। समझा जाता है कि वे श्राद्घ कराने वालों के शरीर में प्रवेश करते हैं। और ठीक ढंग से किए श्राद्घ से तृप्त होकर वे अपने वंशधर को सपरिवार सुख, समृद्घि और स्वास्थ्य का वरदान देते हैं।4 श्राद्घ कितनी तरह के होते हैं?नित्य, नैमित्तिक और काम्य। नित्य श्राद्घ, श्राद्घ के दिनों में मृतक के निधन की तिथि पर, नैमित्तिक किसी विशेष पारिवारिक मौके (जैसे पुत्र जन्म) पर और काम्य विशेष मनौती के लिए कृत्तिका या रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है। 5 श्राद्घ कौन-कौन कर सकता है?आमतौर पर पुत्र ही अपने पूर्वजों का श्राद्घ करते पाए जाते हैं। लेकिन शास्त्रानुसार ऐसा हर व्यक्ति जिसने मृतक की संपत्ति विरासत में पाई है, उसका स्नेहवश श्राद्घ कर सकता है। यहां तक कि विद्या की विरासत से लाभान्वित होने वाला छात्र भी अपने दिवंगत गुरु का श्राद्घ कर सकता है। पुत्र की अनुपस्थिति में पौत्र या प्रपौत्र श्राद्घ करते हैं। निस्संतान पत्नी को पति द्वारा, पिता द्वारा पुत्र को और बड़े भाई द्वारा छोटे भाई को पिण्ड नहीं दिया जा सकता। किन्तु कम उम्र का ऐसा बच्चा, जिसका उपनयन न हुआ हो, पिता को जल देकर नवश्राद्घ कर सकता है। शेष कार्य (पिण्डदान, अग्निहोम) उसकी ओर से कुल पुरोहित करता है।6 श्राद्घ के लिए उचित और वर्जित पदार्थ क्या है?श्राद्घ के लिए उचित द्रव्य हैं- तिल, चावल, जौ, जल, मूल (जड़युक्त सब्जी) और फल। तीन चीजें शुद्घि कारक हैं- पुत्री का पुत्र, तिल और नेपाली कम्बल! श्राद्घ करने में तीन बातें प्रशंसनीय हैं – सफाई, क्रोधहीनता और चौन (शीघ्रता) का न होना। श्राद्घ में अत्यन्त महत्वपूर्ण बातें हैं- अपरान्ह का समय, कुशा, श्राद्घस्थली की स्वच्छता, उदारता से भोजनादि की व्यवस्था और अच्छे ब्राह्मणों की उपस्थिति।कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्घ में नहीं लगते, इस प्रकार हैं- मसूर, राजमा, कोदों, चना, कपित्थ, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन और समुद्र जल से बना नमक। भैंस, हरिणी, ऊँटनी, भेड़ और एक खुर वाले पशुओं का दूध भी वर्जित है। पर भैंस का घी वर्जित नहीं। 7 श्राद्घ में कुश तथा तिल का क्या महत्व है?दर्भ या कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना गया है। माना यह भी जाता है कि कुश और तिल दोनों विष्णु के शरीर से निकले हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, तीनों देवता ब्रह्मा-विष्णु-महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्रभाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाग देवताओं का, मध्य मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना जाता है।तिल पितरों को प्रिय और दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाले माने जाते हैं। 8 गरीब व्यक्ति श्राद्घ कम खर्चे में कैसे करे?विष्णु पुराण के अनुसार गरीब लोग केवल मोटा अन्न, जंगली साग-पात-फल और न्यूनतम दक्षिणा, वह भी न हो तो सात या आठ तिल अंजलि में जल के साथ लेकर ब्राह्मण को दे दें। या किसी गाय को दिनभर घास खिला दें। अन्यथा हाथ उठाकर दिक्पालों और सूर्य से याचना करें कि मैंने हाथ वायु में फैला दिए हैं, मेरे पितर मेरी भक्ति से संतुष्ट हों।9 पिण्ड क्या हैं? उनका अर्थ क्या है?श्राद्घ के दौरान पके हुए चावल दूध और तिल मिश्रित जो पिण्ड बनाते हैं, उसे सपिण्डीकरण कहते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है, कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढि़यों के समन्वित गुणसूत्र मौजूद होते हैं। चावल के पिण्ड जो पिता, दादा और परदादा तथा पितामह के शरीरों का प्रतीक हैं, आपस में मिलाकर फिर अलग बाँटते हैं। यह प्रतीकात्मक अनुष्ठान जिन-जिन लोगों के गुणसूत्र (जीन्स) श्राद्घ करने वाले की अपनी देह में हैं, उनकी तृप्ति के लिए होता है। इस पिण्ड को गाय-कौओं को देने से पहले पिण्डदान करने वाला सूंघता भी है। अपने यहां सूंघना यानी आधा भोजन करना माना गया है। इस तरह श्राद्घ करने वाला पिण्डदान के पहले अपने पितरों की उपस्थिति को खुद अपने भीतर भी ग्रहण करता है।10 इस पूरे अनुष्ठान का अर्थ क्या है?अपने दिवंगत बुजुगोंर् को हम दो तरह से याद करते हैं- स्थूल शरीर के रूप में और भावनात्मक रूप से! स्थूल शरीर तो मरने के बाद अग्नि या जलप्रवाह को भेंट कर देते हैं, इसलिए श्राद्घ करते समय हम पितरों की स्मृति उनके ह्यभावना शरीरह्ण की पूजा करते हैं ताकि वे तृप्त हों, और हमें सपरिवार अपना स्नेहपूर्ण आशीर्वाद दें। लोपामुद्रा
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