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ऋण लेकर घी पीना बन्द करो

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Sep 21, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 21 Sep 2013 15:55:49

आवरण कथा 'और कितना गिरोगे' में डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट के कारणों की पड़ताल की गई है। यह हमारी आर्थिक नीतियों की देन  है कि जो रुपया 1947 में डॉलर के बराबर था वह निरन्तर डॉलर से पिछड़ रहा है। देश को एक ऐसी सरकार चाहिए जो बिना किसी बाहरी दबाव के देश की परिस्थिति के अनुरूप नीतियां बनाए। वर्तमान केन्द्र सरकार तो पूरी तरह अमरीकी दबाव में काम करती है। इसलिए जो नीतियां बनाई जा रही हैं उनमें अमरीकी हित सबसे ऊपर होता है। -गणेश कुमार कंकड़बाग,पटना (बिहार)० मनमोहन सरकार से भारतीयों का ही नहीं,बल्कि विदेशियों का भी विश्वास उठ गया है। इसलिए विदेशी भारत में पूंजीनिवेश नहीं कर रहे हैं। और जिन विदेशियों ने भारत में अपना पैसा लगाया है वे लोग अपनी पूंजी निकालकर दूसरे देशों में लगा रहे हैं। इसलिए देश में विदेशी मुद्रा भण्डार कम होता जा रहा है। रुपए की कमर तोड़ने में चीनी वस्तुओं का भी योगदान है। आज भारतीय बाजार चीनी सामान से अटा पड़ा है। हमारा निर्यात कम होता जा रहा है। इस हालत में रुपया तो टूटेगा ही। -गोपाल विवेकानन्द मिशन,गांधीग्राम जिला-गोड्डा (झारखण्ड)    ० केन्द्र सरकार की गलत नीतियों से देश के हर नागरिक पर हजारों रुपए का विदेशी कर्ज है। हाल में एक और खबर आई है कि केन्द्र सरकार कुछ सरकारी योजनाओं के लिए विश्व बैंक से और कर्ज ले रही है। जब रुपया इतना कमजोर है तो फिर अंदाज लगा सकते हैं कि कर्ज की अदायगी में देश का कितना पैसा खर्च होता होगा। -सुधाकर मिश्रमहावीर एन्क्लेव,पालम नई दिल्ली-110045  ० यह बात तो सबको पता है कि इस देश के बड़े नेताओं और उद्योगपतियों ने विदेशी बैंकों में अकूत पैसा जमा कर रखा है। यदि वह पैसा भारत वापस लाया जाए तो किसी से कर्ज मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। पर ऐसा न करके सरकार कर्ज पर कर्ज लिए जा रही है। यह भारत के हित में नहीं है। -राममोहन चन्द्रवंशी अभिलाषा निवास, विट्ठल नगर,टिमरनी, जिला-हरदा (म.प्र.) ० भारत निर्माण अभियान में संप्रग सरकार 180 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इस अभियान में सरकार अपनी कथित उपलब्धियों का बखान कर रही है। देश की अर्थव्यवस्था फालतू खचोंर् की वजह से खराब हो रही है। जब देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो फिर क्यों हजारों करोड़ रुपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। जनता सब जानती है। समय आने पर वह बता भी देगी। -हरिओम जोशी चतुर्वेदी नगर, भिण्ड (म.प्र.)० जब निकम्मी सोनिया-मनमोहन सरकार अपने फालतू कायोंर् के प्रचार-प्रसार में करोड़ों रुपए बर्बाद करेगी और सरकारी खर्च चलाने के लिए भी कर्ज लेगी तो देश का क्या होगा,इसकी कल्पना शायद इस सरकार ने नहीं की है। यदि यह सरकार ईमानदारी से काम करती तो महंगाई और बेरोजगारी नहीं बढ़ती। -प्रमोद प्रभाकर वालसंगकार1-10-81,रोड न-8बीद्वारकापुरम, दिलसुख नगर हैदराबाद-500060 (आं.प्र.)अनाज सबके लिए सस्ता हो खाद्य सुरक्षा विधेयक के अनुसार गरीब लोगों को तीन रु़ किलो चावल,दो रु. किलो गेहूं और एक रु़ किलो मोटे अनाज दिया जाएगा। आजकल बाजार में अच्छा चावल 50 रु़ किलो और गेहूं 25 रु़ किलो है। एक रपट के अनुसार साल में सरकारी गोदामों में करीब 70 हजार टन अनाज सड़ जाता है। सरकारी गोदामों में पड़े हजारों टन अनाज चूहे खा जाते हैं। प्रश्न है कि सबके लिए अनाज सस्ता क्यों नहीं किया जाता है? यदि ऐसा किया जाएगा तो हर आदमी को लाभ होगा,फिर खाद्य सुरक्षा विधेयक की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। -आचार्य मायाराम पतंग   एफ-63,पंचशील गार्डन नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032 ० यह सरकार अपनी सत्ता बचाने के लिए विदेशी कर्ज लेकर गरीब लोगों को सस्ता अनाज देने पर आमदा है। गरीबों को सस्ता अनाज मिलना चाहिए,इसमें भला किसी को कोई आपत्ति क्यों होगी? किन्तु जिस तरह यह काम किया जा रहा है उससे तो देश की अर्थव्यवस्था ही चौपट हो जाएगी। गोदामों में सड़ते हुए अनाज को देखकर सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार कहा था कि गोदामों में रखा गया अनाज गरीबों को बांट दिया जाए। इस पर सरकार ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय सरकारी काम में दखल न दे। -देशबंधुआर जेड-127,सन्तोष पार्कउत्तम नगर, नई दिल्ली-110059सहारनपुर में जिहादी यह समाचार पढ़ कर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में वन्देमातरम् और भारत माता की जय बोलने वाले विद्यालयीन बच्चों पर जिहादी तत्वों ने हमला किया। यह सब मुस्लिम तुष्टीकरण का दुष्परिणाम है। ऐसा तो जिहादियों के गढ़ कश्मीर घाटी में होता था। वहां 15 अगस्त और 26 जनवरी को तिरंगा जलाया जाता है और देश विरोधी नारे लगाए जाते हैं। अब ऐसी घटनाएं अन्य राज्यों में भी होने लगी हैं जो बहुत ही खतरनाक है। -मनोहर मंजुल पिपल्या-बुजुर्ग पश्चिम निमाड़-451225 (म.प्र.)०  सहारनपुर में जिहादी हावी होते जा रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस मना रहे बच्चों पर हमला होना कोई छोटी बात नहीं है। यह घटना बताती है कि सहारनपुर की स्थिति कैसी होती जा रही है।  कट्टरपंथियों की वजह से सहारनपुर की कई कालोनियां हिन्दू-विहीन हो चुकी हैं। उन कालोनियों के मन्दिर वीरान पड़े हैं। हिन्दुओं को इतना प्रताडि़त किया जाता है कि वे लोग मुस्लिमों के हाथों घर बेचने को मजबूर हैं। -आचार्य राजेन्द्र अटल22,न्यू आवास विकास दिल्ली रोड, सहारनपुर(उ.प्र.) मांस निर्यात बन्द करोयह लेख 'अहिंसक भारत मांस से मुद्रा कम रहा है' पढ़कर चिन्ता हो रही है कि इस देश को चला कौन रहा है?क्या विदेशी पैसे के लिए हम अपना सब कुछ खत्म कर लेंगे? शर्म आनी चाहिए उन लोगों को जो भारत से मांस निर्यात की अनुमति देते हैं। यदि पशुधन को इसी गति से काटा जाएगा तो हमारे यहां के छोटे-छोटे किसान खेती कैसे करेंगे? मांस निर्यात बन्द होना चाहिए। -हरिहर सिंह चौहान जंवरीबाग नसिया इन्दौर-452001(म.प्र.) 

दुनिया में छा जाने का अवसरभारत सरकार इस समय पूरी तरह बदहवास नजर आ रही है, न तो वह महंगाई रोक पा रही है, न ही बेरोजगारों को रोजगार दे पा रही है। औद्योगिक उत्पादन लगभग ठप हो गया है। पेट्रोल, डीजल के दाम रुक नहीं रहे हैं और रुपया सरकार के काबू से बाहर हो गया लगता है । इसी घबराहट में सरकार के वाणिज्य मंत्री सोना गिरवी रखने की सलाह दे रहे हैं और पेट्रोलियम मंत्री रात्रि में पेट्रोल पम्प बन्द करने का सुझाव दे रहे हैं । जब जनता इन सुझावों का विरोध करती है तो मंत्री कहते हैं कि ये सलाह भी हमें जनता ने ही भेजी थी ।  आर्थिक क्षेत्र के जानकार कह रहे हैं कि देश 1991 के पूर्व की स्थिति में पहंुच गया है। जबकि प्रधानमंत्री देश को भरोसा दे रहे हैं कि देश के हालात 1991 की स्थिति से बेहतर हैं और काबू में हैं।दुनिया का इतिहास बताता है कि यदि सरकार समझदारी से काम ले तो रुपये की कमजोरी भारत की ताकत भी साबित हो सकती है ।  उदाहरण के लिए जापान ने 1960 में कमजोर येन की ताकत चमकाई और 1970 के दशक में अपने निर्यात में चार गुना वृद्घि कर दुनिया के बाजार में अपना सिक्का जमाया । चीन ने भी 1980 के मध्य कमजोर युवान का दाव चला और एक दशक में ही दुनिया के बाजार को अपने माल से भर दिया । आज सारी दुनिया का बाजार चीन के उत्पादन से भरा पड़ा है ।  यानी चीन ने कमजोर युवान को अपनी ताकत बनाते हुए जहां उत्पादन बढ़ाया, वहीं चीन में लगातार रोजगार के अवसर भी बढ़े।किन्तु भारत सरकार गत दशकों से आयात आधारित नीति बनाकर बैठी है जिससे भारत का औद्योगिक उत्पादन लगभग ठप पड़ा है, वहीं नौजवानों के सामने रोजगार का संकट खड़ा है।  अभी तक सरकार दावा करती थी कि हमारा सकल घरेलू उत्पाद (जी़डी़पी़ ) बढ़ रहा है। गत वर्षो में जहां जी़डी़पी़  8 प्रतिशत के लगभग था, वहीं अब वृद्धि का तिलिस्म भी टूट गया है और इस वर्ष की प्रथम तिमाही में जी़डी़पी़  4़4 प्रतिशत रह गया ।  इस समय यदि सरकार गम्भीरता पूर्वक विचार करे तो पायेगी कि इस दर्दनाक आर्थिक दुष्चक्र के बीच भी एक रोशनी की पतली रेखा दिखाई दे रही है, क्योंकि रुपये की कमजोरी ने भारत में एक बड़े बदलाव की शुरुआत कर दी है । भारत अब निर्यात आधारित वृद्धि अपनाने पर मजबूर हो गया है । भारत का कोई भी अर्थशास्त्ऱी निर्यात बढ़ाने के लिए शायद ही रुपये के अवमूल्यन का सुझाव देता जो बाजार ने अपने आप कर दिया । गत जुलाई मास में जहां आयात 6 प्रतिशत गिरने के संकेत हैं, वहीं निर्यात 11 प्रतिशत बढ़ा है। इस बर्ष की प्रथम तिमाही में इलैक्ट्रीकल एवं इलैक्ट्रोनिक सामान के निर्यात में भी 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है ।  यदि इस संकेत को समझकर सरकार रुपये को थामने की बजाय अपनी बदहवासी छोड़कर अपने उत्पादन नीति पर पुनर्विचार करे और इसे निर्यात आधारित बनाए। इससे जहां रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं, वहीं विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा में अपना माल सस्ता होने के कारण दुनिया के बाजार में छा जाने का एक सुनहरा अवसर मिल सकता है।निर्यात की दुनिया में घरेलू मुद्रा की कमजोरी सबसे बड़ी ताकत होती है । बाजार में हमारा माल सस्ता है। निर्यात में बढ़त का पैमाना केवल डॉलर ही नहीं होता । यह इसपर भी निर्भर करता है कि प्रतिस्पर्धी देशों में किसकी मुद्रा कितनी कमजोर है ।  गत 6 सालों में युवान के मुकाबले रुपया 74 प्रतिशत टूटा है वहीं डॉलर के मुकावले मात्र 38 प्रतिशत रुपया टूटा है ।  इस कारण आज कमजोर रुपये के साथ भारत अब चीन पर भी भारी है क्योंकि इस कारण आज बाजार में चीन के मुकावले हमारा निर्यात सस्ता है । एक अध्ययन के अनुसार 2007 के बाद से उत्पादन निर्यात में भारत की बढ़त चीन से ज्यादा है ।  इसलिए अब भारत को निर्यात बाजार में अपनी चमक दिखाने का मौका है। इस समय पैतरा बदल कर कमजोर रुपये के सहारे दुनिया में छा जाने का अवसर है ।  यदि हम अपना निर्यात बढ़ाने में सफल होते हैं तो देश में डॉलर की आवक अपने आप बढ़ जायेगी जिससे हमारा विदेशी मुद्रा भंडार भी मजबूत होगा, रुपये पर दबाव घटेगा, निर्यात उत्पादन में नया निवेश होगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे ।-पवन कुमारतिलक गली, पहाड़गंज नई दिल्ली-110055 

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