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आनन्दपुर गुरुद्वारा सिखों से पूर्णतया सुरक्षित था। वहां प्रवेश करने से मुगल तक दहलते थे। ईंट का जवाब पत्थर से पाते थे। ऐसे अवसर की खोज में रहते थे जब वे गुरु तेगबहादुर जी को छका सकें और चंगुल में कर सकें क्योंकि मुगलों से उनकी पटती नहीं थी।श्री हरगोविन्द जी के पुत्र गुरु तेगबहादुर से दीन-दलितों को बड़ी आशाएं थीं। उन्हें विश्वास था कि वे उनके लिए कुछ करेंगे। कश्मीर के पण्डितों का एक दल उनके पास आया। शिकायत थी कि मुगल उनकी कन्याओं को बलात पकड़कर ले जाते हैं और इस प्रकार सरकारी अत्याचार हो रहा है। गुरु तगबहादुर जी मौन होकर सोच रहे थे कि क्या किया जाए?कुछ देर बाद उन्होंने कहा, किसी महापुरुष का बलिदान चाहिए। बीच में बोलकर गुरु तेग बहादुर के पुत्र गोविन्द सिंह ने कहा, आपसे बढ़कर कौन महान है?पिता ने सोचा, महानता कितनी कीमती है। बलिदान चाहती है। उनका बलिदान इसके लिए होना है। लेकिन यह भी कैसा संयोग है कि लगभग नौ साल का उनका अपना ही अबोध पुत्र उन्हें मृत्युवरण करने के लिए कह रहा है। संयम से लोकहित में लगे रहने के कारण जिस पुत्र को वे प्यार न कर सके, जिसे उन्होंने पहली बार देखा, क्या कह रहा है।इतिहास में यह तो प्रसिद्ध है कि राम ने अपने पूज्य पिता के वचनों के पालन के लिए चौदह वर्ष वन में बिता दिये, राज्य छोड़ दिया। लेकिन इतिहास में यह कितना विचित्र सत्य है कि पिता ने अपने पुत्र के कथन को आदेश मान लिया, मोह के कारण नहीं, निदान के कारण और अपने प्राण त्यागने चल दिये।कुछ थोड़े ही साथियों को लेकर गुरु तेगबहादुर अपने को गिरफ्तार कराने चल पड़े। आगरा आये। यहां उन्होंने स्वेच्छा से अपने को गिरफ्तार करा दिया।सत्याग्रही दिल्ली गये। औरंगजेब चूंकि दक्षिण गया हुआ था। इसलिए एक अधिकारी के सामने लाये गये। गुरु तेगबहादुर जी ने कश्मीर में मुगल अत्याचारों की काली करतूतों का वर्णन किया। वे जानते थे कि इस पर ध्यान नहीं दिया जायेगा। अधिकारी ने उनको चांदनी चौक दिल्ली में कत्ल करा दिया।उनका शीश धड़ से अलग पांच दिनों तक पड़ा रहा। किसी का साहस नहीं था, जो उसे आनन्दपुर पहुंचाता लेकिन इस बलिदान की चर्चा फैलती गयी।एक हरिजन ने खतरा मोल लेकर यह शीश उठा लिया और यत्नपूर्वक आनन्दपुर पहुंचा दिया। पुत्र गोविन्द सिंह ने अपने पूज्य पिता का बलिदान देखा और अन्तिम संस्कार करने से पूर्व प्रतिज्ञा की कि वे एक ऐसी जाति का निर्माण करेंगे जो कायर नहीं बल्कि वीर प्रमाणित होगी और अत्याचारों का दमन करेगी।अन्याय के विरुद्ध पिता के बलिदान की नींव पर पुत्र ने सिखों की एक वीर जाति को जन्म दिया। डॉ. राष्ट्रबन्धु
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