सजा काफी नहीं, समाज में बदलाव चाहिए
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एक महिला के प्रति अपराध की अति घिनौनी घटना जो दिसंबर 2012 में दिल्ली में हुई, उसने देश की आत्मा को झकझोर कर रख दिया और संसद से लेकर देश के तंग गली-बाजारों तक विरोध के स्वर उठे। परिणाम स्वरूप नौ महीने के समय में ही दिल्ली की अदालत ने चारों आरोपियों को फांसी की सजा सुना दी। समाचार यह है कि जहां सजा पाने वाले और उनका परिवार बिलख-बिलख कर रोये, वहीं अदालत में उपस्थित लोगों ने तालियां बजा-बजाकर इस निर्णय का स्वागत किया। फांसी की सजा पाए इन अपराधियों को अभी उच्चतम न्यायालय तक अपील करने का अधिकार प्राप्त है। उसका परिणाम कुछ भी हो सकता है। पर भारत देश के सामने, विशेषकर बुद्घिजीवियों के समक्ष एक सवाल है कि क्या ऐसे घृणित अपराधों में फांसी देना ही एकमात्र उपाय है? क्या इन चारों को फांसी देने से भविष्य में बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी आएगी? क्या अपराधी अपराध करने से पहले दो बार सोचेगा और डरेगा? क्या महिलाएं सुरक्षित रह पाएंगी? क्या घरों के अंदर महिलाओं के साथ हो रहे यौन अपराध रुक जाएंगे? ऐसे अनेक प्रश्न सुरसा के मुंह की तरह सामने खुले हैं।
संसद में कुछ संशोधन हुए, बलात्कारियों के लिए सख्त कानून बन गए, पर उसके बाद देश भर से ऐसे शर्मनाक समाचारों की एक बाढ़ सी आ गई। यह अलग बात है कि जो आपराधिक घटना मीड़िया में सुर्खियों का स्थान ले लेती है, उस पर चर्चा ज्यादा हो जाती है, जैसे एक फोटो पत्रकार के साथ घटित अपराध की मुंबई तथा देश में चर्चा हुई। बलात्कारियों को फांसी का दंड भी अब अदालत ने दे दिया है, पर उसके बाद भी दिल्ली से ही दुखद समाचार है कि एक पार्क में खेलती छोटी सी बच्ची को वासना के भूखे लोगों ने शिकार बनाया। महिलाएं सुरक्षित कहां हैं? बिहार का समाचार है कि समस्तीपुर जिले के थाना परिसर में रात को नशे में धुत एक सुरक्षाकर्मी ने ही महिला कांस्टेबल के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया। वह अपनी हिम्मत और भाग्य से बच गई।
महिलाओं के विरुद्घ यौन आक्रमण और उनके शारीरिक शोषण की खबरें समाज के हर वर्ग से मिलती हैं। किसी को नशा पागल बना देता है और किसी को वासना की भूख। कुछ परिवारों के अंदर बेटियों और बहुओं के साथ जो बीतता है वह घर की चारदीवारी में ही अधिकतर बंद रह जाता है। अब सवाल यह है कि कुछ अपराधियों को फांसी देकर, कुछ को आजीवन सलाखों के पीछे बंद करके तथा देश के कानून को बहुत सख्त करके क्या इस समाज में यह बलात्कार जैसा अपराध नियंत्रित हो जाएगा?
मैं यह नहीं मानती कि कानून की कठोरता समाज को पूरी तरह संवार सकती है, यद्यपि कानून का डर होना ही चाहिए और अपराधियों को दंडित किया ही जाना चाहिए। सवाल अब यह है कि आखिर कितने अपराधी बलात्कारियों को फांसी पर चढ़ाएंगे और कितने दोषियों को जीवन भर के लिए जेलों में बंद करेंगे? आवश्यक यह है कि ऐसा वातावरण व ऐसी सोच पैदा की जाए, जिससे समाज में अपराध करने की प्रवृत्ति ही नियंत्रित हो जाए। आज जैसा समाज का वातावरण है उससे यह आशा धुंधली हो गई है। विज्ञापनों में, मीडिया में, इंटरनेट द्वारा तथा अन्य साधनों से महिलाओं का जो रूप समाज के सामने रखा जा रहा है वह कामुकता फैलाने वाला है। अर्द्घनग्नता के जिस दौर में आज सामाजिक जीवन प्रवेश कर रहा है, वह कोई दिशा नहीं दे सकता अपितु किशोर एवं बाल मनों को विकृत कर रहा है। एक जिज्ञासा, उत्सुकता और फिर वह सब कुछ पा लेने की ललक जब इन बच्चों और युवकों के मन में उठती है फिर भारतीय दंड संहिता की कोई भी धारा उनको रोक नहीं पाती।
ताजा समाचार है कि होशियारपुर के जिला व सत्र न्यायाधीश की अदालत ने 60 वर्षीय उस व्यक्ति को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है जिसने दो वर्ष पूर्व एक 90 वर्षीय वृद्घा से दुष्कर्म किया था। पंजाब के मोगा जिले में कुछ वर्ष पहले एक युवक ने 95 वर्षीय महिला के शरीर को भी नोंच डाला था। इसलिए आज की आवश्यकता यह है कि स्कूल शिक्षा को नैतिकता पूर्ण किया जाए। नैतिकता का नाम लेते ही जिन्हें पंथनिरपेक्षता याद आने लगती है वही वास्तव में समाज और बच्चों के अपराधी हैं। टूटते परिवार भी नई पीढ़ी के गुमराह होने का एक बड़ा कारण हैं। हमें वापस संयुक्त परिवारों की तरफ मुड़ना ही होगा जहां बड़े बुजुर्गों की छत्रछाया में बच्चे संस्कार और संरक्षण दोनों ही प्राप्त करते थे। महिलाओं का विज्ञापनों और फैशन मेलों के नाम पर शोषण करने वालों को भी रोकना होगा। क्या भारत सरकार को यह दिखाई नहीं देता कि महिलाओं की अशिष्ट छवि प्रस्तुत करने के लिए जो कानून है उसकी धज्जियां सरेबाजार और सरेआम टीवी चैनलों से लेकर समाचार पत्रों तक उड़ाई जाती हैं। कंप्यूटर के बंद डिब्बे में इंटरनेट के नाम पर जो नग्नता परोसी जा रही है क्या वह वासना भड़काने के लिए आग में घी का काम नहीं कर रही? बहुत सी फिल्में हैं जिनमें वे सभी दृश्य दिखाए जा रहे हैं जिस तरह का व्यवहार सरेआम घर में, परिवार में सड़क पर करना मना है। उन महिलाओं को भी संभलना होगा जो छोटे रास्ते से सत्ता, उन्नति अथवा धन पाने के लिए सत्तापतियों का आश्रय लेती हैं।
देश के प्रबुद्घ सामाजिक कार्यकर्ताओं को एक रास्ता तय करना होगा जिस रास्ते पर वे देश के राजनेता चलें तथा देश में ऐसा सुंदर वातावरण पैदा कर दें, जिसमें कन्या पूजन की बात तो हो, साथ ही बहन-बेटी के रिश्तों का आदर हो। केवल नारी शरीर का अर्द्घनग्न अश्लील चित्रण करके कामुकता बढ़ाने का अवसर किसी को न मिले। दंड उनको देना चाहिए जो महिलाओं को अशिष्ट रूप मे प्रस्तुत करके उनका अपमान करते हैं। लक्ष्मीकांता चावला
कांग्रेस की जनविरोधी नीतियों के चलते आज महंगाई आसमान छू रही है। आम जनता को एक समय के भोजन के लिए भी भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में आम आदमी रोजमर्रा की चीजें खरीदे तो कैसे?
इस बात को खुद सरकारी आंकड़े मानते हैं कि इस साल महंगाई ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए। खुद वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि गत अगस्त माह में खाने-पीने की चीजों की कीमतें 18.8 फीसदी बढ़ी हैं, जो कि दिसम्बर 2010 के बाद सर्वाधिक है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर 6.10 फीसदी बढ़ी है जो कि पिछले छह महीने में सबसे ज्यादा है। इस साल सबसे ज्यादा बढोतरी सब्जियों और ईधन की कीमतों में हुई। इस साल प्याज ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए, पिछले साल की तुलना में जहां प्याज में 245 फीसदी की बढ़ोतरी हुई वही सब्जियों के दाम में 78 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। ल्ल प्रतिनिधि
भारत जागो दौड़ में दिखा जोश
खेतड़ी के पोलो ग्राउण्ड परिसर में 11 सितम्बर की सुबह 10 बजे से भारत जागो दौड़ एवं युवा संगम समारोह का आयोजन किया गया। इसमें खेतड़ी के रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी आत्मनिष्ठानन्द महाराज एवं बुधगिरि मढ़ी फतेहपुर के संत दिनेश गिरि महाराज विशेष रूप से पधारे थे।
समारोह के मुख्य अतिथि थे जनरल (से. नि.) मान्धाता सिंह (प्रदेशाध्यक्ष, पूर्व सैनिक सेवा परिषद्, राजस्थान) एवं मुख्य वक्ता थे श्री इन्द्रेश कुमार (सदस्य, अखिल भारतीय कार्यकारी मण्डल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)। भारत जागो दौड़ में राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त खिलाड़ियों, जैसे-देवेन्द्र झाझड़िया, सुरेश मिश्रा, इरफान पठान, रघुवीर सिंह पाटोदा, विशालसिंह, प्रहलाद सिंह, दर्शन सिंह जोड़िया, चन्दगीराम तथा एवरेस्ट विजेता गौरव शर्मा ने भाग लिया। समारोह में अनेक सेवानिवृत्त सेनाधिकारी एवं पूर्व सैनिक भी सम्मिलित हुए। ल्ल प्रतिनिधि
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