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बात बहुत पुरानी है। एक राजा की विद्वान बेटी ‘विद्योत्तमा’ अपने से अधिक विद्वान युवक से ही विवाह करना चाहती थी। उसने कई विद्वानों को शास्त्रार्थ में हरा दिया। अत: वे सब जंगल से कालिदास नामक एक निपट मूर्ख युवक को पकड़ लाये। वह जिस डाल पर बैठा था, उसे ही काट रहा था। विद्वानों ने उसे अच्छे कपड़े पहनाये और शास्त्रार्थ के समय चुप रहने को कहकर राजसभा में ले आये।
सभा में विद्योत्तमा जो प्रश्न करती, मौनव्रतधारी कालिदास अपनी मूढ़बुद्घि के अनुसार संकेतों में उसका उत्तर देता, जिनकी मनमानी व्याख्या वे विद्वान करते थे। इस प्रकार कालिदास ने विद्योत्तमा को पराजित कर दिया और दोनों का विवाह हो गया।
कुछ-कुछ ऐसा ही माहौल दिल्ली में भी है, जहां एक मौनी बाबा को चुप रहने तथा बहुत जरूरी होने पर लिखित वक्तव्य पढ़ने की शर्त पर गद्दी दी गयी है। पिछले दिनों जी 20 देशों के सम्मेलन से लौटते हुए उन्होंने वायुयान में पत्रकारों को कहा कि अगले चुनाव के बाद वे राहुल बाबा के नेतृत्व में काम करना चाहते हैं। इस हवाई बयान को धरती पर रहने वाले राहुल भक्तों ने लपक लिया। हमारे मित्र शर्मा जी भी उनमें से एक हैं। अब आगे की बात सुनिये।
परसों मैं शाम को टहल कर घर लौटा ही था कि शर्मा जी आ टपके। धौंकनी की तरह चलती उनकी सांस देखकर यह तो समझ में आ गया कि वे दौड़ते हुए आये हैं, पर यह स्पष्ट नहीं हो रहा था कि वे हांफ रहे हैं या कांप रहे हैं। खैर, मैंने उन्हें सहारा देकर बैठाया। शीतल जल पीने से उनकी सांसें सामान्य हुईं, तो उन्होंने थैले में से मिठाई का डिब्बा निकालकर मेज पर रख दिया।
– यह क्या शर्मा जी, आज कोई खास बात़. ? आप दादा बने हैं या नाना, या फिर गांव में गाय ने बछिया को जन्म दिया है ?
– तुम बेकार की बात मत करो वर्मा। तुम्हारी क्षुद्र दृष्टि घर और गांव से आगे नहीं जाती। यह पूरे देश के लिए खुशी की बात है। हमारे दल में तो दीवाली जैसा माहौल है। चूंकि मनमोहन जी ने कह दिया है कि प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल बाबा उनकी पहली पसंद हैं और उन्हें राहुल बाबा के साथ काम करने में प्रसन्नता होगी।
– शर्मा जी, रुपया भले ही पाताल में चला गया हो, पर सपने आज भी नि:शुल्क देखे जा सकते हैं। बेचारे मनमोहन जी अभी तक इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि अगली बार फिर उनकी सरकार बन रही है, पर यह तो बताइये कि मनमोहन सिंह जी ने राहुल बाबा में ऐसी क्या विशेषता देखी, जो उन्हें अपनी पहली पसंद बता दिया ?
– उनकी विशेषताओं को तो गिनना ही कठिन है।
– अच्छा, तो कुछ विशेषताएं मैं गिनाता हूं, बाकी आप बता देना। पहली तो यह कि वे उस परिवार के गुल चिराग हैं, जो भारत को अपने बाप-दादों की पुश्तैनी जागीर समझता है। तोप से लेकर हवाई जहाज तक और टेलिफोन से लेकर कोयले तक, चाहे लूटें या लुटाएं, खुद खाएं या साले और जीजा को खिलाएं, इनकी मरजी।
– ये सब विरोधियों का झूठा प्रचार है।
– और शर्मा जी, जैसे इनकी माताश्री भारत वालों को इस लायक नहीं समझतीं कि उन्हें अपने अतीत और वर्तमान के बारे में कुछ बताया जा सके, वैसा ही राहुल बाबा के बारे में भी है।
– क्यों, उनका जीवन तो खुली किताब है ?
– आप ठीक कह रहे हैं शर्मा जी, पर उस किताब को पढ़ सकने वाले या वाली कौन है, ये जानने का हक मुझे या आपको नहीं है।
– लेकिन राहुल बाबा की विद्वत्ता से तो सब प्रभावित हैं।
– शर्मा जी, आपने कालिदास की कहानी सुनी है ?
– हां, सुनी तो है।
– बस, राहुल बाबा की चुप्पी ही उनकी विद्वत्ता की पहचान है। चूंकि मौनमोहन सिंह जी भी इस ‘चुपमार्ग’ के अनुयायी हैं, इसीलिए उन्होंने राहुल बाबा को अपनी पहली पसंद बताया है। कुछ समझे ?
शर्मा जी नाराज होकर उठ खड़े हुए। मैं उन्हें छोड़ने बाहर तक आया, तो सामने से चुनाव प्रचार करती हुई एक जीप निकली, जिसमें पीछे की ओर मनमोहन सिंह तथा राहुल बाबा के पोस्टर लगे थे। उस पर गाना बज रहा था- हम बने, तुम बने, इक दूजे के अब शर्मा जी का चेहरा देखने लायक था।
विजय कुमार
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