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उत्तर प्रदेश और बिहार में इन दिनांे बढ़ता सांप्रदायिक उपद्रव और अराजक तत्वों को राजनीतिक संरक्षण जितना चिंता का कारण बनना चाहिए उतना बनता दिखाई नहीं दे रहा है। क्या कारण है कि जब से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है और बिहार में नीतिश कुमार मंत्रिमंडल से भाजपा अलग हुई है- तब से दोनों राज्यों में सांप्रदायिक उन्माद बढ़ता जा रहा है? समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता उत्तर प्रदेश में बढ़ती मजहबी उन्माद की घटनाओं के लिए भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद् पर आरोप थोप देते हैं, वहीं नीतीश के मंत्री और प्रवक्ता दोपहर का भोजन खाने से छात्रोंं की मौतों से लेकर नेपाल सीमा से लगे क्षेत्रों में हिंसा और बोधगया में बम विस्फोट के लिए भाजपा पर आरेाप लगाने का प्रयास करते हैं। सच क्या है? दोनों ही राज्य ऐसे हैं जिनके अतीत में विस्तार से जाने के बजाय इतना भर जान लेना आवश्यक है कि आज भारत के जो भू-भाग पाकिस्तान और बंगलादेश के नाम से जाने जाते हैं, वहां मुस्लिम लीग कभी प्रभावी नहीं रही थी और यदि विभाजन के पूर्व नोआखली दंगे को छोड़ दिया जाय तो कोई बड़ा रक्तपात भी नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश और बिहार में ही मुस्लिम लीग की सबसे ज्यादा ताकत थी जहां प्रतिवर्ष दंगे होते रहते थे। गोहत्या तथा कुछ उस प्रकार के कृत्यों के कारण भी दंगे होते रहे हैं, जिसका नवीनतम उदाहरण उत्तर प्रदेश के शामली के एक मोहल्ले में पिछड़े वर्ग के एक व्यक्ति पर हमले के रूप में सामने आया। विवाद की शुरुआत अनुसूचित जाति के प्रति दुर्भावना और उनकी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ को लेकर होती रही है। आज भी जिन कस्बों में मुस्लिम आबादी की बहुलता है वहां ऐसा ही हो रहा है। आजादी के बाद, वोट बैंक राजनीत शुरू होते ही ऐसे तत्वों का मनोबल बढ़ने लगा तथा उनमें से बहुत से पाकिस्तान के हस्तक भी बन गए। अरब देशों या ढीली शासन व्यवस्था के कारण इन तत्वों को पाकिस्तान से सम्बन्ध बनाने की सहूलियत मिली। इतनी कि अब कतिपय मुस्लिम संगठन यह भी मांग करने लगे हैं कि उनके लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की जाय, जो 1947 के पूर्व इस देश में चल रही थी। आरक्षण की मांग को इस अभियान से जोड़कर जो कुछ हो रहा है उसका जाहिर स्वरूप यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में आतंकियों के प्रति सत्ता की अनुकूलता के कारण तेजी आती जा रही है। सत्ता की अनुकूलता अरब देशों की कमाई और अवैध कत्लखानों से बढ़ी सम्पन्नता ने इसमें ईंधन डालने का काम किया है।जहां उत्तर प्रदेश में सत्ता में आते ही समाजवादी पार्टी ने आतंकवादियों पर से मुकदमे समाप्त करने की पहल की वहीं भाजपा के अलग होते ही बिहार की सरकार ने उस तरफ आंखें मूंद लीं। यहां तक कि सारे देश में बम धमाकों को अन्जाम देने वाले यासीन भटकल की अपने ही राज्य की सीमा में गिरफ्तारी तक का संज्ञान लेना उसने उचित नहीं समझा। सितम्बर के पहले सप्ताह में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी की टीम आजमगढ़ से भटकल और टुंडा की निशानदेही पर इनामी आतंकवादियों को गिरफ्तार करने में मदद मांगने के लिए मुख्यमंत्री तक से मिल चुकी है, लेकिन उसे सहयोग नहीं दिया जा रहा है। लोकसभा में जब भारत के पांच सैनिकों को पाकिस्तान सेना द्वारा शहीद कर देने की चर्चा हो रही थी तो उसमें भाग लेते हुए समजावादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने जो चालीस मिनट का भाषण किया उसमें से पैंतीस मिनट वे चीन के खिलाफ बोले। बिहार और उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से मुस्लिम तुष्टीकरण किया जा रहा है उससे ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) यह मानकर चल रही हैं कि भारत के अधिकांश मुसलमान पाकिस्तान परस्त हैं इसलिए उन्हें पाकिस्तान का किसी भी तरह से विरोध नहीं करना चाहिए। बिहार के सीमावर्ती जिलों और उत्तर प्रदेश में व्यापक रूप से जो दंगे होते रहे हैं वे इसी सोच का परिणाम हैं। अखिलेश सरकार ने अयोध्या की चौरासी कोस की परिक्रमा रोकने के लिए सैकड़ों लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया था और ऐसी नाकाबंदी की मानो कोई विदेशी हमला होने वाला है। वहीं सरकार की नाक के नीचे लखनऊ में लक्ष्मण टीले वाली मस्जिद से शुक्रवार की नमाज के बाद निषेधाज्ञा का उल्लंघन कर जो हजार से अधिक मुस्लिम गौतमबुद्घ और भगवान महावीर की मूर्तियां तोड़ते हुए, हजरतगंज बाजार में तोड़फोड़ करते विधानभवन तक पहुंच गए उन पर नियंत्रण करने से पुलिस को न केवल रोक दिया गया बल्कि कोई मुकदमा तक कायम नहीं हुआ। नमाज स्थल से विधानभवन की दूरी चार किलोमीटर से भी ज्यादा है। ग्राम सभा की भूमि पर मस्जिद की दीवार खड़ी करने के प्रयास को रोकने पर एक महिला आईएएस अधिकारी को निलंबित कर दिया गया और दो सौ साल पुराने मदरसे को हड़पने वाले नगर विकास मंत्री आजम खान को सरकारी अनुदानों से मालामाल कर दिया गया। उनके खिलाफ बोलने के कारण कंवल भारती जैसे लेखक को जेल में डाल दिया गया। रामपुर इस समय राज्य सरकार में मंत्री आजम खान के खौफ से त्राहि-त्राहि कर रहा है। शायद हम में से बहुत कम लोगों को इस बात का संज्ञान होगा कि तालिबान के नाम से जो संगठन आतंक मचाए हुए है उसका गठन सबसे पहले सहारनपुर के गंगोह कस्बे में हुआ था। दंगों की सबसे अधिक घटनाएं मेरठ मंडल में हुई हैं। मुजफ्फरनगर जल रहा है और उसकी आंच से आसपास के इलाके भी प्रभावित हो रहे हैं। सवाल है, जब-जब सपा सत्ता में आती है तब तब ऐसा क्यों होता है? उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिले दंगे के लिए कुख्यात रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधान सभा के बजट सत्र में मुख्यमंत्री ने तीस से अधिक दंगे होने को स्वीकार किया था। उसके बाद सिलसिला कम होने के बजाय बढ़ता जा रहा है। डेढ़ साल में सौ से भी अधिक ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा जिला बचा हो जहां इस दौरान दंगे न हुए हों। ये वही जिले हैं जिनको 1906 में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना के समय मोहम्मद अली जौहर ने मुस्लिम बहुल क्षेत्र बनाने के लिए चिन्हित किया था और पहले गोलमेज सम्मेलन के पूर्ण ब्रिटिश गृह सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि 'मैं धमकी नहीं चेतावनी दे रहा हूं कि यदि ऐसा न हुआ तो खून की नदियां बह जायेंगी।' उत्तर प्रदेश में तो नित्य पुलिस थाने जलाने, पुलिसकर्मियों की हत्या तक कर देने की वारदातें हो रही हैं और इन सबमें समाजवादी विधायक या नेता की प्रमुख भूमिका रहती है। शासनतंत्र उन्मादी व्यवस्था का शिकार हो गया है। उसके एक मंत्री आजम खान बड़ी कुटिलता के साथ मोहम्मद अली जौहर के अरमानों को पूरा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय संपदा पर मुसलमानों का पहला हक कहकर जिस वोट बैंक की राजनीति को उभारा था उसे मुलायम सिंह पहले से अंजाम देते आये हैं। वे आजम खान के हठ या मौलवियों के दबाव में वोट पुख्ता करने के लिए जिस जोड़-तोड़ में दिन रात एक कर रहे हैं उसने सुरसा के मुंह के समान आकार बढ़ाना शुरू कर दिया है। बिहार में तो नीतीश ने इसी एजेंडे के तहत भाजपा से नाता तोड़ा है। क्या इन दोनों राज्यों में विभाजन के पूर्व की स्थिति लौट रही है? आतंकवादियों को संरक्षण देने में दोनों राज्यों की सत्ता का जो रवैया है उससे तो यही संकेत मिलता है। तो क्या अगले चुनाव में मुलायम सिंह की फिर वही हालत होगी जो ऐसा ही रवैया अपनाने के कारण एक बार हो चुकी है? उधर जनता दल (यू) में जो छटपटाहट है उसको देखते हुए लोकसभा चुनाव के पूर्व ही यदि सरकार का पतन हो जाय तो आश्चर्य नहीं होगा। इन राजनीतिक दलों का क्या होगा, यह चिंता का विषय नहीं है। चिंता का विषय यह है कि मुस्लिम समुदाय को अपने राजनीतिक लाभ के लिए जिस प्रकार ये दल मुख्यधारा से अंग्रेजी शासन की नीति पर चलकर अलग कर रहे हैं वह भारत को आंतरिक अराजकता की ओर ले जायेगा, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा। यूं तो सारा देश मजहबी अराजकता से पभावित है, लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश में ज्वालामुखी से लावा फूटने का सिलसिला बंद नहीं हो रहा है। मुजफ्फरनगर में तो विस्फोटक स्थिति हो गई थी। यदि जनता ने सावधानी नहीं बरती तो टुंडा या भटकल जैसे लोगों के पकड़े जाने के बावजूद षड्यंत्रकारी इस ज्वालामुखी का मुहाना खोल देंगे। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते बिहार और उत्तर प्रदेश भयावह संकट में फंसे हुए हैं। राजनाथ सिंह 'सूर्य'
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