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गुजरात पुलिस के निलम्बित पुलिस अधिकारी डी़ जी. वंजारा ने अपने 'त्याग पत्र' में जो लिखा, वह सब जगह चर्चा का विषय बना हुआ है। वंजारा 2007 से जेल में हैं। उन पर आतंकवादियों को 'मुठभेड़' में मारने का आरोप है। आतंकवादियों को 'मारने' के आरोप में वंजारा समेत कुल 32 पुलिस अधिकारी सीखचों के पीछे हैं। इनमें से छह आई़पी़एस. स्तर के भी हैं । अपने 'त्याग पत्र' में वंजारा ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और उस समय के गृह राज्यमंत्री अमित शाह पर आरोप लगाया है कि 'जिस समय राज्य को आतंकवादियों से बचाने और राज्य को कश्मीर बनने देने से रोकने का समय था , उस समय इन्होंने पुलिस और उनके (वंजारा)जैसे अधिकारियों का उपयोग किया और अब जब वे दुर्दान्त आतंकवादियों को मारने के कारण जेल के सींखचों में बन्द हैं तो राज्य सरकार और खासकर मोदी व अमित शाह ने उनकी सुध नहीं ली'। चिट्ठी लम्बी है । कुल मिला कर दस पृष्ठ की । चिट्ठी को लेकर विवाद की दिशाएं भी उतनी ही ज्यादा हैं ।सोनिया कांग्रेस का कहना है कि वंजारा के इस त्यागपत्र के बाद राज्य के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी त्याग पत्र दे देना चाहिये। कुल मिला कर चिट्ठी में ऐसा क्या है, जिसके कारण मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देना चाहिये? इसके बारे में कांग्रेस के प्रवक्ता बहुत स्पष्ट तो नहीं हैं , लेकिन मोटे तौर पर आतंकवादियों से मुठभेड़ की वही पुरानी कहानी दोहरा रहे हैं । इस बार केवल इतना हुआ है ही कि अब तो वंजारा ने भी मुठभेड़ की बात को मान लिया है। दरअसल सोनिया कांग्रेस पिछले दस साल से मोदी के त्यागपत्र की जिद पकड़े हुये है। इसके लिये वह दो बार गुजरात की जनता के दरबार में भी जा चुकी है, लेकिन जनता ने उसे घास नहीं डाली। मोदी के त्यागपत्र के लिये सोनिया कांग्रेस का दिल इतना बेताब है कि इसके लिये कुछ सांसद अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा तक से लिखत-पढ़त करने लगे। ओबामा मोदी का इस्तीफा तो नहीं दिलवा सकते थे, इसलिये उनसे दूसरी गुहार लगाई, कि मोदी को अपने यहां आने के लिये वीजा मत देना। लिखत-पढ़त करने वाले इतना नहीं जानते कि वीजा देने या न देने की नौबत तो तब आयेगी जब मोदी उसके लिये आवेदन करेंगे। अब सोनिया कांग्रेस क्या करे? समय मुट्ठी में बन्द रेत की तरह फिसलता जा रहा है। मोदी भारत की राजनीति में नयी आभा से चमक रहे हैं । पारखी लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि मोदी सचमुच राष्ट्रीय नेता बन कर उभरे हैं। सोनिया गान्धी अपने ईद गिर्द लिपटे रहस्य और संशय के कोहरे को हटा नहीं सकी हैं। यह कोहरा विदेशी मूल के किसी भी व्यक्ति के गिर्द गहरायेगा ही यदि वह किसी दूसरे देश के सत्ता सूत्रों को अपने हाथों में समेटता है। राहुल गान्धी, अपनी मां के तमाम प्रयासों के बावजूद राजनीति के मैदान में फिसड्डी ही साबित हो रहे हैं । उधर दामाद राबर्ट वढरा के कारनामे 10 जनपथ की बदनामी का कारण बन रहे हैं। लोकसभा के चुनाव निकट आ रहे हैं। कांग्रेसी परेशान हैं कि नरेन्द्र मोदी की आंधी को कैसे रोका जाये ?सलाह दरबारियों ने दी या फिर आपरेशन शुद्घ इटली की नाजी शैली में किया गया, यह तो सोनिया कांग्रेस के सिपहसालार ही जानते होंगे, लेकिन वंजारा की चिट्ठी को मैदान में उतारा गया, मोदी का त्यागपत्र लेने के लिये। वंजारा के पतंग रूपी त्यागपत्र पर स्टिंग आपरेशन का मांजा भी लगाया गया ताकि इस बार इसको कोई काट न सके और यह मोदी का इस्तीफा लेकर ही रहे। वंजारा की चिट्ठी की पतंग उड़ा कर सोनिया कांग्रेस की प्रधान खुद अमरीका चली गईं । वैसे दिल्ली दंगों के बावजूद अमरीका ने उन्हें वीजा दे दिया था। वंजारा के त्यागपत्र के इस अपनी किस्म के स्टिंग आपरेशन के बाद वे कुछ दिन और दिल्ली में रहतीं तो स्वयं देख पातीं कि वंजारा का यह त्यागपत्र अमदाबाद की बजाय दिल्ली को ज्यादा घायल कर रहा है ।वंजारा के त्यागपत्र का सार क्या है? वंजारा लिखते हैं, 'सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमने पूरी ईमानदारी और निष्ठा से , सभी प्रलोभनों को लात मारते हुये, पाकिस्तान द्वारा थोपे गये आतंकवादी युद्घ का मुकाबला किया। गोधरा में गाड़ी को आग लगाने के राक्षसी कृत्य और उसके उपरान्त हुये दंगों ने आई़एस़आई. की निगरानी में काम कर रहे लश्करे तोयबा, जैशे मुहम्मद और डी गैंग जैसे आतंकवादी गिरोह, विश्व भर में मुसलमानों की भावनाएं भड़काकर, गुजरात को भी दूसरा कश्मीर बनाने का प्रयास कर रहे थे।'इसी पृष्ठभूमि में गुजरात में अनेक आतंकवादी कांड हुये, मसलन रथयात्रा पर आक्रमण का असफल प्रयास, गोधरा, महलोल, पैरोल और लुनावाडा में बम विस्फोट, अमदाबाद नगर में छह बसों में बम विस्फोट, मैमको स्कूटर धमाका, नेहरुनगर साईिकल धमाका, वडोदरा में नीरज जैन, सूरत में लालीवाला, अमदाबाद में जयदीप पटेल, जगदीश तिवारी पर गोलीबारी, हरेन पंड्या की हत्या, गान्धीनगर के अक्षरधाम मंदिर पर फिदायीन हमला, एक के बाद एक ऐसे आतंकवादी हमले हुए, जिन्होंने आम गुजराती के मन में खौफ पैदा कर दिया था। दरअसल पाकिस्तान जिहाद को अब कश्मीर से निकाल कर सारे देश में फैला देना चाहता था। आई़एस़आई. ने आतंकवादी संगठनों को देश भर में फैलाना प्रारम्भ कर दिया था। वंजारा के ही शब्दों में, 'गुजरात में जिहादी आतंक जंगल की आग की तरह सभी दिशाओं में फैलने लगा था । उसके भयंकर परिणाम आने भी शुरू हो गये थे । पुलिस दिशाहीन थी। यह एक प्रकार से गुजरात में अराजकता का प्रारम्भ था। गुजरात की लम्बी सीमा जल मार्ग और थल मार्ग से पाकिस्तान के साथ लगती है। गुजरात दूसरा कश्मीर बनने की राह पर चल पड़ा था। ऐसे संकट काल में गुजरात सरकार ने आतंकवाद को प्रत्येक स्तर पर समाप्त करने की सक्रिय नीति अपनाई। सरकार की इस नीति को गुजरात पुलिस, विशेषकर उसकी अपराध शाखा और आतंकवाद निरोधी दस्ते ने पूरी कर्तव्यपरायणता से क्रियान्वित किया। आतंकवाद से सम्बधित सभी अपराधों की पहचान कर ली गई । मुठभेड़ समेत, प्रान्त में सक्रिय अनेक आतंकवादी गिरोहों को ध्वस्त किया गया । राज्य, समाज और देश के हित में, गुजरात पुलिस की अपराध शाखा और आतंकवाद निरोधी दस्ते के अधिकारियों और जवानों द्वारा किया गया यह एक बेमिसाल संघर्ष था, जिसमें उन्होंने अपने स्वास्थ्य, परिवार और सुरक्षा की चिन्ता न करते हुये, उन गिरोहों के खिलाफ वषोंर् तक युद्घ लड़ा, जिन्होंने भारत के खिलाफ युद्घ छेड़ रखा था। मुझे इस बात का गर्व है कि मेरे अफसरों और जवानों ने सफलतापूर्वक गुजरात को दूसरा कश्मीर बनने से रोक दिया।' इसका अर्थ स्पष्ट है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गुजरात सरकार ने आतंकवाद को पैर पसारने का मौका नहीं दिया। राज्य में आतंकवाद से लड़ने के लिये वंजारा जैसे जांबाज अधिकारियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुये आतंकवादियों से लोहा लिया और गुजरात को आतंकी गिरोहों से मुक्त रखा। लेकिन आतंकवाद से लड़ने वाली सरकार और आतंकवादियों से लड़ने वाले वंजारा जैसे पुलिस अधिकारियों को अपराधी बता कर घेरने की कोशिश कौन कर रहा है? यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है। सभी जानते हैं कि ये सारे प्रयास केन्द्रीय सरकार, सोनिया कांग्रेस और सी़बी़आई. के ही हैं। सी़बी़आई. के बारे में तो उच्चतम न्यायालय तक कह चुका है कि यह 'केन्द्र सरकार का तोता' है । देश भर में , जिन पुलिस अधिकारियों ने आतंकवादियों से लोहा लिया,उन्हें केन्द्रीय जांच अभिकरणों ने अपराधी सिद्घ कर जेल के सीखचों में पहुंचाने के प्रयास किये । दिल्ली के बाटला हाउस कांड में तो पुलिस अधिकारी मोहन चंद्र शर्मा की आतंकवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी, लेकिन सोनिया कांग्रेस के महासचिव उस मुठभेड़ को अभी तक झूठा सिद्घ करने में लगे हुये हैं । कश्मीर को, जिसका वंजारा ने बार बार जिक्र किया है, पाकिस्तान समर्थक आतंकी संगठनों ने 'निजामे मुस्तफा' बनाने का ऐलान किया। कांग्रेस ने इस काम में उनकी, वहां के राज्यपाल जगमोहन को हटा कर, एक तरह से सीधे सीधे सहायता की । उसके बाद पाकिस्तान ने घाटी से लगभग पांच लाख हिन्दुओं को निकाल कर सचमुच घाटी को 'निजामे मुस्तफा' बना दिया। वंजारा का यही कहना है कि पाकिस्तान गुजरात में भी यही करना चाहता था, लेकिन गुजरात सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया। प्रश्न यह है कि सोनिया कांग्रेस और उसकी सरकार पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की नीति क्यों नहीं अपनाती? शायद कांग्रेस मुसलमानों के वोटों को एकमुश्त हथियाने के लिये आतंकवाद के प्रति ढुलमुल नीति अपना रही है । आतंकवाद से लोहा लेने वाले अधिकारियों को जेलों में बंद कर सम्प्रदाय विशेष को विशेष संदेश देना चाहती है। इससे देश संकट में पड़ जायेगा, पर इससे सोनिया गान्धी को क्या लेना देना? वंजारा और नरेन्द्र मोदी दोनों ही केन्द्र सरकार की इसी नीति का शिकार हो रहे हैं। वंजारा की चिट्ठी केन्द्र सरकार के मुंह पर तमाचा है । यह और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि सोनिया कांग्रेस वंजारा जैसे लोगों का प्रयोग अपने राजनैतिक षड्यंत्रों के लिये कर रही है। वंजारा के व्यंग्य को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा है कि यदि आतंकवाद को समाप्त करने के कारण पुलिस अधिकारियों की जगह जेल है, फिर तो गुजरात सरकार, जिस ने पाकिस्तान के आतंकवाद को समाप्त करने का निर्णय लिया था, उसे भी जेल में जाना चाहिये। वंजारा भी जानते हैं कि यही केन्द्र सरकार की नीति है। वह हुर्रियत कान्फ्रेंस के गिलानी के आगे तो गिड़गिड़ाती है लेकिन कैसे न कैसे मोदी को कठघरे में खड़ा करने के लिए पिछले दस साल से प्रयास कर रही है। डा कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
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