कहानी : चूहा यूनियन की सभा
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कहानी : चूहा यूनियन की सभा

by
Sep 14, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 14 Sep 2013 15:01:54

प्रिय बच्चो!

इन दिनों आप लोग घर-बाहर यह जरूर सुनते होंगे कि महंगाई बड़ी है। इस महंगाई से चूहे भी अछूते नहीं हैं। इस कहानी में आप पढ़ें कि चूहे किस प्रकार अपने खाने का जुगाड़ करते हैं।नहीं… ऐसा नहीं होगा … हम ऐसा नहीं होने देंगे… कभी नहीं होने देंगे… सभी चूहे चीं-चीं-चीं… किट-किट-किट करते हुए उछल-कूद  करने लगे।अध्यक्ष महोदय उठे, सामने पड़ी चौकी पर जोर से तीन बार उछले, फिर जोर-जोर से चीं-चीं-चीं करते हुए कहने लगे-शांति… शांति… भाइयो, शांति रखो और बारी-बारी से अपनी बात कहो। जो भी बोलना चाहेगा या अपना कुछ सुझाव देना चाहेगा, उसे मौका दिया जाएगा। इस तरह शोर-शराबा करने से तो हम किसी भी बात तक नहीं पहुंच सकेंगे।सभा में शंाति हो गई। सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे कि कौन पहले बोले! फिर 'कीटू' नाम का एक दुबला-पतला चूहा उठा। धीरे-धीरे चलकर अध्यक्ष की चौकी के पास आया और अपनी बात कहने लगा।भाइयो, आप को पता ही है, हम घरेलू चूहों पर आजकल क्या बीत रही है? पहले घरों के भंडारों और रसोइयों में अनाज, दालें, चावल आदि खूब बिखरे पड़े रहते थे। जूठे बरतनों में भी रोटियों और पकवानों के टुकड़े काफी पड़े रहते थे। हमें खाने-पीने की कोई कमी न थी। अब तो यह महंगाई क्या हुई, गृहणियां इतनी सयानी हो गई हैं कि अन्न का एक दाना भी नहीं बिखरने देती हैं। जूठे बरतन ऐसे साफ पड़े रहते हैं, जैसे किसी ने धो-मांज कर रखे हों। क्या मजाल कि भंडार-गृहों में किसी कनस्तर या डिब्बे का ढक्कन भी खुला या ढीला रह जाए। ऐसे में आप ही बताइए, हम कहां जाएं? कैसे अपने आप को जिन्दा रखें? हमने यह यूनियन इसीलिए बनाई है कि कोई-न कोई तरकीब सोची जाए! भला ऐसे कब तक चलेगा?'इसके बाद एक उससे भी दुबला-मरियल सा बूढ़ा चूहा पीटू उठ कर आया और मरियल-सी आवाज में बोला-'आप देख रहे हैं, भाइयो, मेरी दुर्दशा! बोलने के लिए मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही है। एक ओर तो सेठों के गोदामों के वे थोड़े-से मोटे, पले हुए चूहे हैं जो रात-दिन खा-खा कर अपनी तोंद बढ़ाए जा रहे हैं और दूसरी ओर हम घरेलू चूृहे हैं, जिन्हें अपनी जान बचाना भी मुश्किल हो रहा है। हमारे कई भाई भूख से तड़प-तड़प कर प्राण दे चुके हैं। यदि ऐसी हालत रही तो जो बच रहे हैं, उनका भी बचना मुश्किल है। धीरे-धीरे हमारी जाति का ही नाश हो जाएगा।इसके आगे बोल गले में अटक गए और वह हांफता हुआ जाकर बैठ गया।इस बूढ़े मरियल चूहे की बातें सुन-सुन कर एक जवान चूहे 'टीटू' का खून खौल रहा था, सो उसके बैठते ही वह उछल कर चौकी के पास आ गया और जरा कड़क कर बोला-'अध्यक्ष जी, ऐसी रोनी बातों से कुछ न होगा, हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। मैं चाहता हूं, हमारी यूनियन के सदस्य मिल कर सेठों के गोदामों पर धावा बोल दें। वहां जो पहले से धनी चूहे हैं, उनके खाने से सेठों को कुछ फर्क नहीं पड़ता।' जब हम सब मिल कर गोदामों में घुस जाएंगे और ढेर की ढेर बोरियों को चारों ओर से कुतरना शुरू कर देंगे तो घबरा कर सेठ उन बोरियों को गोदामों से निकाल कर बेच देंगे। इस तरह एक बार यदि हमने हिम्मत करके गोदामों पर हमला कर दिया तो फिर हमारी रोज-रोज की समस्या हल हो जाएगी?''कैसे? कैसे?' एक साथ कई आवाजें बोल पड़ी।'अरे भाई तुम समझते क्यों नहीं? सीधी सी बात है।' टीटू बोला, 'जब अनाज छिपे गोदामों से निकल कर बाजार में आ जाएगा तो घरों में उसकी कमी नहीं रहेगी। राशन सस्ता हो जाएगा, तब गृहणियां इतनी कंजूसी से उसे खर्च थोड़े ही करेंगी? कहो, हमारी खाने-पीने की समस्या हल हो जाएगी कि नहीं?''ठीक है… ठीक है…' हम इसके लिए तैयार हैं। भले ही इसमें कुछ भाइयों की जानें चली जाएं! सब लोग भूखे मरने से तो बच जाएंगे।  हम तैयार हैं… हम तैयार हैं… बोलो कब चलना है?' और फिर एक साथ कई चूहों की चीं-चीं-चीं की आवाजें आने लगीं। खूब शोर मच गया, नौजवान चूहे जोश से उछल-कूद करने लगे।'ठहरो।… मेरी भी बात सुन लो जरा', एक समझदार से दीखने वाले चूहे 'नीटू' का गंभीर स्वर गूंज उठा। सभा में एक बार फिर सन्नाटा छा गया। नीटू अध्यक्ष की चौकी के पास आकर कहने लगा-'भाइयो, बड़ी हैरानी की बात है कि घरेलू चूहे होकर भी तुम घरों में क्या हो रहा है, इससे बेखबर हो। तुम बस जूठे बर्तन और दालों के डिब्बे ही टटोलते रहे और तुम्हें कुछ भी न दिखाई दिया? आम लोगों के घरों में आज क्या मिलेगा? अब जिन्हें अपने खाने के लिए ही पूरा नहीं पड़ता, वे चूहों के लिए थालियों में भला क्या छोड़ेंगे?''पर वे सेठों के गोदाम?' टीटू बोल पड़ा।'सेठों के बड़े गोदाम ही नहीं है, अमीर लोगों के घरों में भी कई छोटे-छोटे गोदाम छिपे पड़े हैं। ये लोग सोचते हैं, क्या पता, कल मिले न मिले। बस भर के रख लो। इस तरह बाहर अनाज की  कमी होती है और बाजार में कीमतें बढ़ जाती हैं। ''पर खेतों में तो कमी नहीं है। क्यों न हम उस तरफ जाएं?' टीटू फिर उछल कर बोला।'तुम्हारी बात ठीक है। पर खेतों पर हमला करने से तो उत्पादन ही कम हो जाएगा। फिर घरों की कमी कैसे पूरी होगी?' नीटू ने समझाया।'तो…?' टीटू ने ठिठक कर पूछा।'तुम लोग अगर घरों के इन छोटे गोदामों को ही खेाज निकालो तो तुम्हें खाने-पीने की कमी नहीं रहेगी। तुम केवल जूठे बर्तन ही न टटोल कर उन स्थानों पर भी हमला करो, जहां-जहां घरों में यह अनाज छिपा कर रखा गया है। फिर देखो, तुम्हारा काम बनता है कि नहीं? इस तरह घरों में जमा करके रखे गए अनाज का नुकसान होगा तो लोग उन्हें जरूरत से ज्यादा इकट्ठा करके रखना छोड़ देंगे और फिर पहले जैसी स्थिति आ जाएगी। तुम्हें उसकी तलाश के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। फिर वह पहले की तरह कुछ न कुछ बिखरा मिल ही जाया करेगा।''तो क्या खेतों की ओर जाना छोड़ दें?' 'जब भूखे  मरने की नौबत आएगी तो खेतों की ओर भी हम जाएंगे ही। पर खेती पर बड़े पैमाने का हमला करने का विचार छोड़ देना चाहिए। कभी-कभी मजबूरी की बात और है। अब भी हम में से अनेक हैं, जो खेतों पर ही रहना पसंद करते हैं, घरों में नहीं? उन्हें वहीं रहने दो। पर आप में से जो जवान और तगड़े चूहे हैं, वे बाहर जाकर गोदमों पर हमला करें। जो कमजोर, बूढ़े और बीमार चूहे हैं, वे घरों में छिपे इन छोटे-छोटे गोदामों को ढूंढ कर उन पर अपनी ताकत आजमाएं। इस तरह, तीन-तरफा हमला करने से हम अपने खाने-पीने की समस्या जल्दी हल कर लेंगे। इससे हमारा जीवन बचेगा और मनुष्यों का भी भला होगा। भले ही मनुष्य हमारे दुश्मन हों, पर हमारे लिए खाना तो आखिर वे ही जुटाते हैं न।'बात बहुत से चूहों की समझ में आ गई और यह प्रस्ताव पास करके सभा समाप्त हो गई।  आशा रानी व्होरा 

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