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आखिर मुजफ्फरनगर जिले और निकटवर्ती क्षेत्रों को साम्प्रदायिक हिंसा की आग में झोंककर ही सपा सरकार को सब्र हुआ। 27 अगस्त को कवाल ग्राम में दो हिन्दू बहनों की छेड़छाड़ से शुरू प्रकरण, जिसमें पहले एक छेड़छाड़ करने वाला युवक मारा गया, और फिर इन दो छात्राओं के दो भाई बेहद बेरहमी से कत्ल किये गये, अंतत: सपा सरकार द्वारा निर्देशित एक पंगु प्रशासन के अन्याय मूलक रवैये के चलते भीषण हिंसा की चपेट में आ गया। इसमें पांच दिन के भीतर लगभग 55 लोग मारे जा चुके हैं, और इससे अधिक अभी लापता बताये जा रहे हैं।कवाल छेड़छाड़ कांड ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि एक अक्षम प्रशासन, जिसे शासन की नीतियों ने पूरी तरह पंगु बना दिया हो, कैसे सामाजिक तनावों को हवा देकर हिंसा भड़काता है। जैसा पाञ्चजन्य के पिछले अंक में लिखा जा चुका है, तमाम झगड़े की जड़ में गौरव मलिक नामक तरुण के साथ अपने विद्यालय से लौट रही दो बहनों के साथ समुदाय विशेष के शोहदों द्वारा की गयी छेड़छाड़ है। यदि कवाल पुलिस चौकी पर तैनात यूपी पुलिस के सिपाही उसी समय समुचित कार्रवाई कर लेते, जब गौरव ने छेड़छाड़ की शिकायत उनसे की थी, तो मामला आगे बढ़ता ही नहीं। पर जैसा उत्तर प्रदेश में पुलिस का रवैया है, गौरव को पुलिस ने टरका दिया। इसके बाद का घटनाक्रम, जिसमें पहले शाहनवाज मारा गया और फिर गौरव और उसका ममेरा भाई सचिन पाशविक हिंसा का शिकार बने, पाठकों को विदित है। यहां इस तथ्य की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिस स्थान पर गौरव और सचिन को घेरकर 'अलाहो अकबर' के नारे लगाती भीड़ ने क्रूर हत्या की, वह कवाल पुलिस चौकी से सिर्फ 20 मीटर दूर है।शाहनवाज की हत्या में केवल गौरव तथा सचिन का हाथ था, पर जो प्राथमिकी पुलिस ने दर्ज की, उसमें इनके छह परिवारीजनों का नाम भी डाल दिया गया। यही नहीं, जहां गौरव-सचिन के हत्यारों को फरार हो जाने दिया गया, वहीं दूसरी ओर मलिकपुरा गांव, जहां के ये दोनों भाई थे, के लोगों को पुलिस आतंकित करने लगी। इस भेदभाव पूर्ण पुलिसिया व्यवहार ने आग भड़काई। इसके विरुद्ध 31 अगस्त को नंगला मंदौड़ नामक ग्राम में हुई विराट सभा ने पुलिस के सामने दो मांगें रखीं- एक, निर्दोष परिवारीजनों का नाम एफआईआर से निकाला जाये, तथा दो, गौरव-सचिन के हत्यारों को पकड़ा जाये। एक सप्ताह का समय इन बातों के लिए दिया गया। और यह पर्याप्त समय था। पर यूपी के निजाम ने इस बीच कुछ न किया। तब 7 सितम्बर को नंगला मंदौड़ में ही 'बेटी-बहू सम्मान बचाओ महापंचायत' बुलायी गयी। इसमें 36 बिरादरियों के 1.50 लाख लोग उमड़ पड़े।सुनियोजित हमलेएक ओर नंगला मंदौड़ में 7 सितम्बर को 36 बिरादरियों की महापंचायत चल रही थी, दूसरी ओर सम्प्रदाय विशेष के लोग हमलों की तैयारी कर रहे थे। पहले तो सुबह के समय नंगला मंदौड़ जाने वाले लोगों पर शाहपुर के सुन्नी-बहुल ग्राम बस्सी में हमला किया गया, जिसमें एक दर्जन लोग घायल हो गये। फिर शाम को महापंचायत से लौट रहे लोगों को कई जगह निशाना बनाया गया। मुझैड़ा में घात लगाकर हमला कर दो युवकों की हत्या व पांच को घायल किया गया। अलमासपुर, पुरबालियान और बसघाड़ा में भी पथराव हुए।पर सबसे लोमहर्षक काण्ड जॉली गंग नहर पुल पर हुआ। यहां महापंचायत से लौट रहे काफिले पर घात लगाकर बैठे सैकड़ों हथियारबंद लोगों ने फायरिंग की। यहां पुलिस पीएसी की पिकेट तैनात थी, पर उसने कुछ नहीं किया। लोगों को जान बचाने के लिए नहर में कूदना पड़ा। आठ ट्रैक्टर ट्रॉली भी नहर में चले गये, जो दो दिन बाद निकाले गये। कई ट्रैक्टर और बाइक जलाये भी गये। यहां पर मृत और लापता लोगों की संख्या अभी तक अस्पष्ट है। सूत्र बताते हैं कि यहां हत्यारी भीड़ ने एके-47 का भी प्रयोग किया। यह तथ्य प्रशासन छिपा रहा है।नंगला मंदौड़ की 'बेटी-बहू सम्मान बचाओ महापंचायत' में आते और लौटते लोगों पर हुए पूर्व नियोजित हमले ही मुजफ्फरनगर और आसपास के क्षेत्र में हुए दंगे का तात्कालिक कारण हैं। जितनी बड़ी संख्या में आग्नेयास्त्रों का प्रयोग जॉली गंग नहर पुल पर हुआ है, वह चौंकाता है। प्रशासन द्वारा तत्काल सेना बुलाने का कारण यही समझ आता है कि हमलावरों के पास साधारण शस्त्रों की अपेक्षा अत्याधुनिक हथियार थे। सेना ने अपने तलाशी अभियान, जो अभी शहरी क्षेत्र तक ही सीमित है, में भारी मात्रा में असलाह बरामद किया है। यह भी कहा जाता है कि एक उपासनास्थान से भी हथियार निकले। पर अभी जॉली में हथियार बरामदगी का अभियान नहीं चलाया गया। ऐसा भी बताते हैं कि जब महापंचायत से लौट रहे लोगों पर यहां भयंकर हमला हुआ। कुछ सशस्त्र अजनबी भी हमलावरों के साथ थे।हिंसा गांव-गांव फैलीमहापंचायत से लौट रहे लोगों पर हुए हमले की प्रतिक्रियास्वरूप हिंसा गांव-गांव फैली है। कहा नहीं जा सकता, यह सिलसिला कितनी दूर जायेगा।हमारे हाथ बंधे हैंजनता में एक आम चर्चा है कि पुलिस को समुदाय विशेष के दंगाइयों के विरुद्ध कार्रवाई से दूर रहने को कहा गया है। इसकी पुष्टि जॉली गंग नहर पुल की घटना से जीवित लौट आये लोग भी करते हैं। जब सैकड़ों हमलावर आगजनी तथा फायरिंग कर रहे थे, तब ककराला ग्राम के सोहनवीर सिंह व रहमतपुर के मनोज वहीं थे। उन्होंने समीप खड़े छह पुलिसवालों से जवाबी फायरिंग की गुहार लगायी। उनका जवाब था- हमारे हाथ बंधे हैं, भाग जाओ यहां से। इन लोगों ने खेतों में छिपकर जान बचायी। 7 सितम्बर के बाद से यहां के हिन्दू निरंतर पलायन कर रहे हैं। पुलिस जान बचाकर भागीमुजफ्फरनगर का खालापार इलाका सम्प्रदाय-विशेष का गढ़ कहलाता है। यहां रविवार 8 सितम्बर की रात पुलिस गश्ती दल पर बलवाइयों ने घातक हमला किया। पुलिस वाले जान बचाकर भाग आये। प्रशासन घटना को ढक रहा है। इसके पहले यहां सिटी मजिस्ट्रेट और सीओ सिटी की जीप को भी पथराव द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। दोनों घटनाओं के बाद कोई मामला तक दर्ज नहीं किया गया। यह शासन की नीतियों का सीधा प्रतिफलन है। अजय मित्तल
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