विदेशी भी सीख रहे हैं हिन्दी
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विदेशी भी सीख रहे हैं हिन्दी

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Sep 7, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Sep 2013 16:08:11

हिन्दी दिवस(14 सितम्बर)पर विशेष
हो सकता है कि आज युवाओं ने ह्यजुबान संभाल केह्ण धारावाहिक  के बारे में सुना ही न हो और जिन्होंने उसे देखा भी था, उनके जेहन में भी यह न रहा हो। इसमें पंकज कपूर ने हिन्दी शिक्षक  का किरदार बेहद स्वाभाविक अंदाज में निभाया था। वे देसी-विदेशी छात्रों को पढ़ाते हैं। इस धारावाहिक की कक्षा में जैसा माहौल होता था करीब-करीब वैसा ही माहौल आप दक्षिण दिल्ली में चल रही कक्षा में भी आप देख-महसूस कर सकते हैं। दीवारों पर हिन्दी अक्षर जैसे क,ख,ग,क्ष,ल वगैरह। कक्षा में सिर्फ विदेशी छात्र  बैठे हैं। जापान, फिनलैंड, पुर्तगाल, स्वीटजरलैंड वगैरह देशों के छात्र-छात्राएं पूरी तन्मयता से बोलचाल की हिन्दी सीख रहे हैं। आज मास्टर जी अपने शिष्यों को ह्यलगनाह्ण  शब्द का विभिन्न कोणों से प्रयोग समझा रहे हैं। उदाहरण के  रूप में भूख लगना,फिल्म अच्छी लगना,बोर्ड लगना वगैरह। तेतसु तनाशा(35)जापानी नागरिक हैं। भारत में मित्शुबिशी कम्पनी में वरिष्ठ अधिकारी हैं। वे हिन्दी गुरु की कक्षा  में 'लगना' के महत्व को समझने के बाद एक  खबरिया हिन्दी चैनल में आ रही खबरों को बड़े ही चाव से देख रहे हैं। कुछ नोट कर रहे हैं। तनाशा कहते हैं, मुझे और मेरी कंपनी को लगा कि मुझे जब इधर तीन-चार साल रहना है तो बेहतर रहेगा कि मैं हिन्दी बोलने-पढ़ने की आधारभूत जानकारी सीख लूं। ये सब तनाशा किसी तरह से हिन्दी में बताते हैं।
हिन्दी गुरु के निदेशक चन्द्र पांडे बताते हैं, हमारे पास आम तौर पर तीन तरह के लोग हिन्दी सीखने के लिए आते हैं। पहले,वे पर्यटक,जो भारत में दो-तीन महीने घूमने के इरादे से आते हैं। ये बहुत ही बुनियादी किस्म की हिन्दी सीखते हैं। जैसे किसी दूकान में जाकर तोल-मोल कैसे किया जाए, किसी अनजान इंसान से रास्ता कैसे पूछा जाए आदि। इन्हें छोटे-मोटे जरूरी शब्दों की भी जानकारी दे दी जाती है। दूसरे,वे जो भारत में तीन-चार साल की नियुक्ति पर आते हैं। इनमें अनेक दूतावासों,उच्चायुक्तों के राजनयिकों के अलावा जापान इंटरनेशनल कॉपरेशन सिस्टम(जिक्स),मित्शुबिशी,साब इंटरनेशनल एजेंसी वगैरह के कर्मचारी भी होते हैं। ये हमारे पास गुजारे लायक से एक कदम आगे की हिन्दी सीखने आते हैं। इनके लिए छह महीने की कक्षा चलती है। हर हफ्ते 20 घंटे पढ़ाया जाता है। इनके अलावा, किसी गैर सरकारी संस्था के माध्यम से भारत में किसी विषय पर गंभीर अध्ययन करने वाले लोग भी हिन्दी सीखने की चाहत रखते हैं, जिससे कि उनका  अध्ययन का काम बेहतर तरीके से हो सके। हर साल ह्यफुलब्राइट छात्रवृतिह्ण हासिल करने वाले बच्चे भी आते हैं।
दरअसल ये भारत में किसी विषय पर गंभीर अध्ययन करने के लिए आते हैं। राजधानी दिल्ली और गुड़गांव में विदेशियों को हिन्दी बोलचाल और हिन्दी का सरल ज्ञान दिलाने के इरादे से कुछ संस्थान चल रहे हैं। गुड़गांव में हिन्दी गुरु सेंटर हर साल लगभग 100 विदेशियों को तीन दिन के पाठ्यक्रम  से लेकर  दो साल का पाठ्यक्रम  करवाता है। इसमें उन कंपनियों के कर्मचारी आते हैं, जिनके कार्यालय गुड़गांव में हैं। ड्रायलसिम (33) गुड़गांव के हिन्दी सेंटर में हैं। एक अन्तरराष्ट्रीय कंपनी के गुड़गांव दफ्तर में आईटी इंजीनियर हैं। वे करीब एक महीने से हिन्दी सीखने की कोशिश कर रहे हैं। वे बताते हैं, अगर मैं हिन्दी न भी सीखूं तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पर मैं चाहता हूं कि मैं भारत से हिन्दी को थोड़ा-बहुत तो सीख कर जाऊं ।
उधर, मुंबई में भी विदेशी हिन्दी सीख रहे हैं। हिन्दुस्तानी प्रचार सभा इस काम को अंजाम दे रही है। दस वषोंर् से हिन्दी पढ़ा रहीं डा़ सुशीला गुप्ता ने बताया कि विदेशियों का इरादा यह होता कि वे कम से कम काम चलाने लायक हिन्दी तो सीख ही लें। हमारे पास दक्षिण कोरिया, श्रीलंका जापान,न्यूजीलैंड और डेनमार्क के मुंबई स्थित दूतावास  से जुड़े राजनयिक आते हैं।
यहां हिन्दी सीख रहे श्रीलंका के हेरात डिसिल्वा ने शुक्रिया,नमस्ते,अच्छा,ठीक है और चलो जैसे शब्दों को सही जगहों पर प्रयोग करना सीख लिया है। हिन्दुस्तानी प्रचार सभा को गांधी जी की पहल पर 1942 में स्थापित किया गया था। डा. गुप्ता बताती हैं,  रूसी और स्पेन के छात्र काम-चलाऊ हिन्दी लिखने-बोलने में आगे रहते हैं। पर जापानी अपने अध्यापक का सम्मान करने में सबसे आगे रहते हैं। आई सोरेनसन(49) मूलत: डेनमार्क  से हैं। वे विवाह के बाद मुंबई में बस गई हैं। पति मुंबई के हैं। वे सरल हिन्दी  सीख रही हैं। उसके पूरा होने के बाद उन्होंने चार साल के एडवांस कोर्स में दाखिला ले लिया है।
फ्रांस की खुदरा कंपनी केयरफोर के व्यावसायिक निदेशक  एस. मोहन ने बताया कि उनके गुड़गांव स्थित कार्यालय  में बहुत सारे विदेशी काम करते हैं। ये अलग-अलग देशों से हैं। इन सबको कामकाज की हिन्दी सिखाने के लिए केयरफोर ने भी कुछ हिन्दी के अध्यापकों को रखा हुआ है। विदेशियों को हिन्दी सिखाने के  पीछे इरादा यह है कि वे यहां पर अपने ड्राइवर,घर में काम करने वाले कर्मियों और बाजार में खरीद-फरोख्त कर सकें।
हिन्दुस्तानी प्रचार सभा हिन्दी की कक्षाएं आयोजित करने के अलावा अपने छात्रों को भारतीय पवोंर् की जानकारी देने के लिए भी एक पाठ्यक्रम  चलाती है। इस पाठ्यक्रम से जुड़े छात्र  अपने पाठ्यक्रम   के अंतिम दिन कक्षा  के बाहर रंगोली बनाते हैं और सभी विदेशी छात्र उस दिन भारतीय वेश-भूषा पहनते हैं। और चलते-चलते वरिष्ठ लेखक और पत्रकार विजय किशोर मानव कहते हैं, वैसे तो यह अच्छी बात है कि विदेशी हिन्दी सीख रहे हैं, लेकिन हिन्दी को विश्व स्तर पर अंग्रेजी, फ्रेंच और अरबी भाषा के बराबर स्थान तब मिलेगा जब ये रोटी की जुबान बनेगी।
विदेशियों को हिन्दी सिखाने वाली संस्थाएं 
हिन्दुस्तानी प्रचार सभा,मुंबई
सरल हिन्दी पाठ्यक्रम , तीन वर्ष, शुल्क      500 रुपये
(पढ़ना, लिखना, बोलना)
कक्षाएं सिर्फ शनिवार को आयोजित होती हैं।
हिन्दी गुरु,दिल्ली व गुड़गांव
अल्पकालीन पाठ्यक्रम  (6 घंटे)     1,800 रुपये
सात दिन ( 21 घंटे)       6,300 रुपये
25 दिन ( 50 घंटे)      13,750 रुपये
दीर्घकालीन पाठ्यक्रम
50 दिन (200 घंटे)     55 हजार रुपये
( पढ़ना, बोलना, लिखना)
100 दिन (400 घंटे)     1 लाख 10 हजार रुपये
(पढ़ना, लिखना, बोलना और व्याकरण)

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