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चुनाव छोटा, चर्चा बड़ी

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Sep 7, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Sep 2013 15:35:32

गौरतलब है कि दोनों ही छात्र संगठनों की अपनी-अपनी विचारधाराएं हैं और दोनों के अपने-अपने लक्ष्य और मुद्दे। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव के लिए दोनों ही संगठन चुनावी बिसात पर अपने मोहरे स्थापित करने में लगे हुए हैं। एनएसएयूआई और एबीपीवी दोनों ही संगठन अपने वरिष्ठों के नेतृत्व में चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। कांग्र्रेस हाईकमान ने तो बाकायदा अपने विधायकों, पार्षदों और क्षेत्रीय कांग्रेस नेताओं को निर्देश दिए हैं कि वे एनएसयूआई के प्रत्याशियों की हर संभव मदद करें। विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस बार का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होने के चलते कांग्रेस हाईकमान ने एनएसएयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष रोहित चौधरी को स्पष्ट तौर पर निर्देश दिए हैं कि हर स्थिति में दिल्ली विश्वविद्यालय में एनएसयूआई के प्रत्याशियों को चुनाव जिताना है। एनएसयूआई के कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक एनएसयूआई के राष्ट्रीय सचिव भूषण पंचलवार को दिल्ली छात्रसंघ चुनाव का प्रभारी बनाया गया है। मूलत: महाराष्ट्र के रहने वाले भूषण का कहना है कि एनएसयूआई सिर्फ छात्रों के मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ रही है। दिल्ली विधानसभा चुनावों पर इसका क्या असर होगा। इस बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। उनका कार्यक्षेत्र सिर्फ दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में देखरेख करना और चुनाव की रणनीति बनाना है।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस हाईकमान की तरफ से दिल्ली में कांग्रेस के विधायकों व पार्षदों समेत कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं को भी विशेष निर्देश दिए गए हैं। चुनावों के दौरान उन्हें भी काम बांटा गया है। इन सभी को उनके इलाके में रहने वाले छात्रों की बैठक कराकर एनएसयूआई के प्रत्याशियों के  पक्ष में वोट डालने के लिए कहा गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनावों  के लिए   छात्रसंघ में पूर्व छात्र नेता रहे पुराने छात्रों को भी सक्रिय तौर पर चुनाव में काम करने के निर्देश दिए गए हैं। 
यदि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की बात करें तो  इस बार एबीवीपी क्षेत्रीय संगठन मंत्री सुनील बंसल व प्रदेश मंत्री रोहित चहल के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है। इसमें संदेह नहीं है कि छात्र राजनीति में हमेशा से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का ही बोलबाला रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय का  इतिहास उठाकर देखा जाए तो एनएसयूआई गाहे बगाहे ही एक-दो सीट पर चुनाव जीतती थी, हां ये बात और है पिछले कुछ वर्षों में एनएसयूआई ने तमाम हथकंडे अपनाकर अपनी स्थिति कुछ मजबूत की है। वैसे वामपंथी छात्र संगठन भी हर साल अपने प्रत्याशी मैदान में उतारते हैं, लेकिन वामपंथी संगठनों का दिल्ली विश्वविद्यालय में कभी दबदबा नहीं रहा है।
बहरहाल इस बार भी मुकाबला एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच में ही है। वर्षों से एबीवीपी का गढ़ माने जाने वाले श्यामलाल कॉलेज सांध्य में दो बार लगातार अध्यक्ष पद पर चुनाव जीतने वाले पूर्व छात्र नेता नितिन शर्मा का कहना है कि जहां तक दोनों संगठनों के काम करने की बात है तो एबीवीपी पूरे वर्ष विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में सक्रिय रहती है। राष्ट्रीय हित और छात्र हित से जुड़े मुद्दों को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र और पूर्णकालिक कार्यकर्ता वर्ष भर काम करते हैं। विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर वाद-विवाद और भाषण प्रतियोगिता जैसी चीजें भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ से कॉलेजों में  कराई जाती हैं। किसी भी बड़ी समस्या को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र और पूर्णकालिक आवाज उठाते हैं। फिर चाहे वह भारत में बंगलादेशियों की घुसपैठ से संबंधित मामला हो या फिर महिलाओं के साथ छेड़खानी का मामला हो। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। जब बाढ़ या भूकंप जैसी आपदाएं आई हैं तब विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्रों ने मौकों पर पहंुचकर लोगों की मदद की है।  जबकि एनएसयूआई ऐसा कुछ नहीं करती है। एनएसयूआई की तरफ से छात्र राजनीति करने वाले युवाओं का सीधा सा उद्देश्य सिर्फ आने वाले दिनों में चुनाव लड़ना होता है। छात्रसंघ चुनावों से कुछ दिन पहले एनएसयूआई कॉलेज और विश्वविद्यालय परिसर में सक्रिय होती है। वहां पर चुनाव में टिकट भी उन्हीं प्रत्याशियों को दिया जाता है जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीति से होती है। साथ ही वहां पर यह भी देखा जाता है कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी आर्थिक तौर पर कितना मजबूत है। एनएसयूआई की तरफ से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का सीधा सा उद्देश्य होता है किसी भी तरीके से चुनाव जीतना और कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ फोटो खिंचवाकर आगे मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने के लिए जमीन तैयार करना। इसलिए चुनावों से पहले कॉलेजों में 'फ्रेशर पार्टी' के नाम पर लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं। नए आने वाले छात्रों को किसी भी तरह लुभाने की कोशिश की जाती है, ताकि वे चुनाव वाले दिन आकर ज्यादा से ज्यादा वोट करें। इसके लिए बकायदा पार्टी हाईकमान की तरफ से पार्टी को चंदा देने वाले धनी व  नेता पैसा तक देते हैं, ताकि चुनावों के दौरान उसका इस्तेमाल किया जा सके। आदित्य भारद्वाज
राजनीति की पौधशाला
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तरफ से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ की उपाध्यक्ष रहीं कृति वढेरा का कहना है कि एनएसयूआई की तरफ से छात्र राजनीति करने वाले छात्रों का सीधा सा उद्देश्य छात्र जीवन पूरा करने के बाद सक्रिय राजनीति में आने का होता है। कांग्रेस की तरफ से उन्हें टिकट भी दिए जाते हैं। मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होना एनएसयूआई के ज्यादातर छात्र नेताओं का उद्देश्य होता है। जबकि विद्यार्थी परिषद की तरफ से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का उद्देश्य केवल मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने का नहीं होता। विद्यार्थी परिषद एक मात्र ऐसा छात्र संगठन है जो समर्पित भाव से छात्र हितों और राष्ट्र निर्माण का काम करता है। विद्यार्थी परिषद का किसी राजनैतिक पार्टी से कोई मतलब नहीं हैं। जैसे एनएसयूआई को स्पष्ट तौर पर कांग्रेस का छात्र संगठन है। वैसे विद्यार्थी परिषद नहीं है। विद्यार्थी परिषद से चुनाव लड़ने वाले छात्रों का सीधा सा उद्देश्य छात्र हितों के लिए काम करना होता है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि विद्यार्थी परिषद में काम करने वाले छात्र बाद में मुख्यधारा की राजनीति में नहीं आते हैं। यदि विद्यार्थी परिषद में काम करने व छात्र जीवन पूरा करने के बाद किसी को लगता है कि उसे मुख्य धारा की राजनीति में आना चाहिए तो वह आता है, लेकिन एबीवीपी में समर्पित भाव से काम करने वाले छात्रों और कार्यकर्ताओं का एक मात्र उद्देश्य मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होना नहीं होता। वर्ष 2003 से 04 तक  एनएसयूआई की तरफ से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के सह सचिव रह चुके पंकज कोछर का कहना है कि छात्र जीवन के दौरान चुनाव लड़ने वाले छात्र नेताओं का एक मात्र उद्देश्य छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए उनकी बातों को उठाना है।  इसके अलावा राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर भी एनएसयूआई बेबाकी से अपना पक्ष रखती है। छात्रों को राष्ट्र हित में होने वाली बातों के लिए अग्रसर भी करती है। छात्र जीवन पूरा करने के बाद जिन छात्रों को लगता है कि उन्हें समर्पित भाव से संगठन के लिए काम करना है वे करते हैं। इसके बाद यदि वे मुख्यधारा की राजनीति के तहत चुनाव लड़ना चाहते हैं तो वे कोशिश करते हैं। यदि संगठन को लगता है कि उन्हें टिकट देकर आगे बढ़ाया जाना चाहिए तो उन्हें बढ़ाया जाता है। बाकी बहुत से छात्र ऐसे होते जो तो एनएसयूआई के लिए काम करते हैं और पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी या फिर अपना व्यवसाय करने में जुट जाते हैं।
 

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