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प्याज मूलत: भारतीय है या विदेशी, इस पर विद्वानों को खोपड़ी लड़ाने दीजिये, पर हम तो इतना जानते हैं कि प्याज के छिलकों की तरह इसकी कहानी में कई रंग और आकार की परतें हैं।
आयुर्वेद में प्याज को गुणों की खान कहा गया है। इसके बिना खाने में मजा ही नहीं आता। दाल और सब्जी चाहे जो भी हो, पर राजा की तरह प्याज का हर जगह विद्यमान रहना जरूरी है। किसी ने ठीक ही कहा है कि दाल और सब्जी की आत्मा वस्तुत: प्याज ही है।
कहते हैं कि अकबर के दरबार में मुल्ला दोप्याजा नामक एक जन्तु भी थे। वीरबल से उनकी बिल्कुल नहीं पटती थी। वे प्राय: वीरबल को नीचा दिखाने का प्रयास करते थे, पर हर बार मुंह की खानी पड़ती थी। उनकी एक आंख सकुशल थी,पर दूसरी न जाने कब और कैसे दिवंगत हो गयी थी। हां, उसकी जगह प्याज जैसा एक गड्ढा जरूर था। शायद इसी से उनका यह नाम पड़ा हो। कहते हैं कि ‘प्याज भी खाए और जूते भी’ वाली घटना उन्हीं से संबंधित है।
प्याज के कारण भोजन का स्वाद बनने या बिगड़ने और इस कारण बारात लौटने की बात भी हमने सुनी है, पर दिल्ली वालों से पूछो, तो वे प्याज और सत्ता की जुगलबंदी भी बता देंगे। 15 साल पहले दिल्ली में इसकी कृपा से ही कांग्रेस सत्ता में आई थी। यद्यपि भाजपा वाले बाद में चिल्लाते रहे कि कांग्रेसियों ने ही प्याज का कृत्रिम अभाव पैदा किया है, पर ‘मार पीछे की पुकार’ को कौन सुनता है?
इस बार फिर ऐसा ही माहौल है, तो कांग्रेस वाले भाजपा पर यही आरोप मढ़ रहे हैं। प्याज 70 रु़ किलो तक तो पहुंच गया है, अब उसके शतक की प्रतीक्षा है। सभी नेता अपने क्षेत्र में इन दिनों झूठे वादों के साथ सस्ते प्याज भी बेच रहे हैं। 15 साल पहले कुछ लोग आह प्याज, तो कुछ वाह प्याज करते मिले थे। इस बार भी आह और वाह तो होगी, पर पात्रों के बदलने की पूरी संभावना है।
प्याज की चर्चा ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ की तरह ही है। किसी ने संतों की महिमा बताते हुए लिखा है –
ज्यों केलन के पात में, पात पात में पात त्यों संतों की बात में, बात बात में बात।
जिस किसी ने यह दोहा लिखा है, वह निश्चित रूप से प्याज नहीं खाता होगा, अन्यथा वह कहीं-कहीं मिलने वाले केले के वृक्ष की बजाय हर रसोई में मिलने वाले प्याज का ही उदाहरण देता। प्याज भी सिद्घ संतों की तरह ऊपर से रूखा होता है, पर जैसे-जैसे उसकी परत उतारिये, वह क्रमश: मुलायम और मीठा होता जाएगा।
यह प्याज चिंतन चल ही रहा था कि शर्मा जी आ गये। उन्होंने इसमें हस्तक्षेप करते हुए एक पुरानी कहानी सुना दी।
एक राजा की बेटी को एक बार न जाने क्या हुआ कि वह रोना ही भूल गयी। जब देखो तब हंसी, ठहाके और खिल-खिलाहट। हंसना यों तो बहुत अच्छी बात है, पर बिना बात हर जगह हंसना भी ठीक नहीं। चिकित्सक कहते हैं कि कभी-कभी रोना भी जरूरी है।
अब बात राजा और राजकुमारी की थी, सो दूर-दूर से चिकित्सक बुलाए गये। मारपीट से लेकर भयानक दृश्य दिखाने जैसे भीषण प्रयोग भी किये गये, पर सब व्यर्थ। अंतत: राजा ने घोषणा कर दी कि बेटी को रुलाने वाले को आधा राज्य दहेज में देकर राजकुमारी से ही उसका विवाह कर दिया जाएगा।
कहते हैं कि एक सब्जी बेचने वाला एक किलो प्याज लेकर आया और राजकुमारी से उन्हें चाकू से काटने को कहा। राजकुमारी ने जैसे ही प्याज काटे, उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। वह अपने हाथ से जितना उन्हें पोंछती, आंसू उतने ही अधिक निकलते। राजकुमारी के रोते ही सब ओर खुशी छा गयी और उसी दिन सब्जी वाले से उसका विवाह कर दिया गया।
मैंने उन्हें टोका – शर्मा जी, आप इस कहानी में कुछ संशोधन कर लें। आज यदि ऐसी कोई घटना हो, तो आधे राज्य की बजाय आधी बोरी प्याज ही दहेज में देने से काम चल जाएगा। मैडम इटली और मनमोहन जी के राज में यों तो हर चीज के दाम आकाश छू रहे हैं, पर जहां तक प्याज की बात है, तो अब उसे काटने की जरूरत नहीं है। अब तो बाजार में उसके दाम सुनकर ही आंसू आ जाते हैं।
शर्मा जी का मुंह प्याज की तरह खुला का खुला रह गया।
विजय कुमार
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