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जब से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है, मुस्लिम आक्रामकता सीमाएं लांघ गयी है। हिन्दू लड़कियों से छेड़छाड़, उन्हें परेशान करना, अपहरण की कोशिशें और 'लव जिहाद' के तहत झांसा देने की घटनाओं में तो अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अखिलेश शासन में केवल मेरठ और सहारनपुर मंडल में कम से कम ऐसी डेढ़ दर्जन बड़ी वारदातें हुई हैं। ताजा घटना जिला मुजफ्फरनगर की जानसठ तहसील के कवाल ग्राम की है। यहां मुस्लिम लड़कों द्वारा हिन्दू लड़कियों के साथ दिन-दहाड़े छेड़छाड़ के चलते जहां एक आरोपी युवक मारा गया, वहीं अपनी बहनों से छेड़छाड़ का विरोध करने गए दो हिन्दू युवक बेहद बेरहमी से कत्ल कर दिये गये।
घटना 27 अगस्त की है। कवाल के निकटवर्ती ग्राम मजरा मलिकपुरा निवासी गौरव मलिक (आयु 17) नगले के एक इंटर कालेज से अपनी दो बहनों के साथ घर लौट रहा था। रास्ते में कवाल गांव में कुछ मुस्लिम लड़कों ने दोनों छात्राओं से छेड़खानी शुरू कर दी। गौरव ने इसका विरोध किया। लेकिन वे मुस्लिम लड़के नहीं माने। वह घर गया और कुछ देर बाद अपने ममेरे भाई सचिन मलिक (आयु 32) के साथ मोटरसाइकिल पर वापस आया। वह उन छेड़छाड़ करने वाले लड़कों से पूछताछ करने लगा। दोनों पक्षों में कहासुनी हुई और फिर मारपीट हो गयी। इस मारपीट में छेड़छाड़ करने वालों में से एक शाहनवाज (आयु 21) मारा गया। इसके कुछ ही देर बाद सम्प्रदाय-विशेष की भीड़ ने बीच चौराहे पर गौरव व सचिन को घेर लिया। उन्हें दौड़ा-दौड़ कर पीटा गया। उनकी गर्दनें चाकू से रेती गयीं, ईंट-पत्थरों से उन्हें लहूलुहान करके क्रूरतापूर्वक मौत के घाट उतारा गया। भीड़ 'अल्लाहो अकबर' के नारे लगा रही थी।
घटना के बाद स्थानीय हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में आमने-सामने आ गये। कुछ देर बाद जिले के डीएम व एसएसपी मौके पर बल के साथ पहुंचे। शाम को आईजी भवेश कुमार भी आये।
यदि प्रशासन तत्परता से काम लेता तो मुख्य आरोपी शीघ्रता से पकड़े जा सकते थे। पर ऐसा नहीं हुआ। इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त, घटना के आठ दिन बाद भी एक के अलावा बाकी तमाम आरोपी फरार हैं। पुलिस की निष्क्रियता और हिन्दू लड़कियों को सुरक्षा देने में उसकी अक्षमता एक बड़ा मुद्दा बन गयी है। इसके कारण उमड़े जनाक्रोश का प्रदर्शन 31 अगस्त को पास के नगला ग्राम स्थित एक मैदान पर देखने को मिला, जहां कम से कम पचास हजार की भीड़ ने सरकार विरोधी नारे लगाये। मुख्यत: भाजपा नेताओं ने उक्त मुद्दे पर सरकारी नीति, कानूनी कार्रवाई करने से परहेज और प्रशासन की सम्प्रदाय विशेष-सम्बंधी तुष्टीकरण की नीयत को कोसा। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस सभा को प्रशासन ने प्रतिबंधित कर दिया था और सभास्थल पर जाने वालों को रोकने के लिए खूब पुलिस बल लगाया था। फिर भी हिन्दू जनमानस के रोष का ज्वार तमाम सरकारी बाधाओं को पार करते हुए वहां उमड़ा।
समाचार लिखे जाते समय पूरे जिले और आसपास के क्षेत्रों में बेहद तनावपूर्ण स्थिति है। छिटपुट हिंसा की वारदातें जहां-तहां हो रही हैं। 3 सितम्बर को समीपवर्ती शामली, जो एक जिला केन्द्र है, धधक उठा। यहां एक सरकारी सफाई कर्मचारी की सम्प्रदाय-विशेष के लोगों द्वारा बेरहम पिटाई के विरोध में तोड़फोड़, आगजनी आदि हुई, जिसमें एक व्यक्ति मारा भी गया है। प्रदेश में सपा शासन सदा ही सामाजिक शांति को पलीता लगाने वाला सिद्ध होता आया है। इस बार भी वह क्रम बरकरार है। प्रदेश में प्रतिदिन तीन-चार साम्प्रदायिक घटनाएं घट रही हैं। अजय मित्तल
मुजफ्फरनगर में ऐतिहासिक बंद
कवाल हत्याकांड और उस पर सपा सरकार की निष्क्रियता के विरोध में भाजपा द्वारा 5 सितम्बर को मुजफ्फरनगर बंद का आह्वान किया गया था, जिसे प्रचंड सफलता मिली। बंद के लिए भाजपा कार्यकर्ता कहीं सड़कों पर नहीं उतरे, जबकि इसके उलट बंद असफल कराने के लिए जिलाधिकारी और एसएसपी से लेकर तमाम सरकारी अमला सड़कों पर जुट गया। वे पुलिस को साथ लेकर लोगों से दुकानें खोलने का आग्रह करते रहे, पर मुख्य बाजारों की तो छोडि़ये, गली-मोहल्लों की दुकानें भी पूरे दिन बंद रहीं। पान के खोखे भी बंद रहे। रोडवेज बस अड्डा और रेलवे स्टेशन भी सूने पड़े रहे। विद्यालयों और कार्यालयों में उपस्थिति नगण्य रही। ऐसा अभूतपूर्व बंद मुजफ्फरनगर के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। यही नहीं, जिले के तमाम कस्बों-तहसील केन्द्रों आदि पर भी स्वत:स्फूर्त पूर्ण बंदी रही। लोगों के भीतर सपा की तुष्टीकरण नीति को लेकर सुलग रहा आक्रोश इस बंद के रूप में व्यक्त होकर तमाम सेकुलर दलों के लिए खतरे की घंटी बजा गया है।
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