कर्मयोगी दीपक बरठाकुर सम्मानित
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रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने अर्पित किया विवेकानन्द कर्मयोगी पुरस्कार
अलगाववादियों और उग्रवादियों की चुनौतियों का डटकर सामना किया तो रास्ता बनता गया। -दीपक बरठाकुर
पराएपन का भाव छोड़ें, सबको साथ लेकर चलें
-मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
आज राष्टÑ के अनेक क्षेत्र उपेक्षा से आहत हैं। यह उपेक्षा ही हमारी राह की बाधा है। उत्तर-पूर्व और शेष भारत के लोगों के बीच जिस तरह की दूरी बनाई गई है, उस को हमारे द्वारा ही दूर किया जा सकता है। यह कहना था रा.स्व.संघ. के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत का। वे गत 1 सितम्बर को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (नई दिल्ली) में ‘माई होम इंडिया’ के तत्वावधान में आयोजित पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे थे।
इस समारोह में ‘माई होम इंडिया’ द्वारा पूर्वोत्तर के समाजसेवी श्री दीपक बरठाकुर को विवेकानन्द कर्मयोगी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अपने संबोधन में श्री भागवत ने आगे कहा कि हम अपनी उपेक्षा के कारण अपनों को भूल गए,अपने परिवार तथा समाज को भूल गए। एक-दूसरे को पराया मानने लगे। बिना सोचे-समझे निर्णय लेने से ही आज उत्तर-पूर्व अपने को अलग-थलग मानने लगा है। कोई शेष भारत से उत्तर-पूर्व के लोगों को जोड़ने का काम करे या न करे, हमें आगे बढ़कर इसे खुद करना है। उन्होंने कहा कि सब तरह की मिथ्या बातों से दूर रहते हुए हमें अपने कर्तव्यपथ पर चलना होगा।
‘माई होम इंडिया’ द्वारा कर्मयोगी पुरस्कार से सम्मानित श्री दीपक बरठाकुर ने कहा कि बेरोजगारी के चलते उग्रवादियों और अलगावादियों ने उत्तर-पूर्व के युवाओं को फुसलाना आरंभ किया। ऐसे समय में वहां काम करना और डट कर खड़े रहना बड़ी समस्या थी, परंतु इस चुनौती का हर तरह से सामना किया तो काम बढ़ता गया। उन्होंने कहा कि आज भी वहां अलगाववादी पंथ की आड़ में विभिन्न प्रकार के षड््यंत्र कर रहे हैं। फिर भी वे अपने 34 संगठनों के जरिये अलगाववादियों की चुनौती को परास्त कर रहे हैं। आज विद्या भारती के 550विद्यालय वहां बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक स्वर्गीय सुदर्शन जी तथा एकनाथ रानाडे जी का उन्हें काफी मार्गदर्शन मिला था।
‘माई होम इंडिया’ के संस्थापक सुनील देवधर ने इस मौके पर अपने विचार रखते हुए कहा कि उत्तर पूर्व के लोग चाहते हैं कि शेष देश के लोग भी वहां के बारे में अच्छी तरह जानें। ‘माई होम इंडिया’ ने इसी दृष्टि से अनेक कार्यक्रम किए हैं। इस अवसर पर राष्टÑीय सुरक्षा परामर्श बोर्ड के सदस्य और सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक श्री प्रकाश सिंह ने कहा कि वे पहली बार 1965 में पुलिस अधिकारी के रूप में नागालैंड गए थे, तब वहां उन्हें बहुत कुछ सीखने-समझने को मिला। मिशनरियों के दुष्प्रचार के कारण वहां की जनता में शेष देश के प्रति गलत सोच पैदा हुई। हमारी सोच और आपसी सामंजस्य की कमी के कारण ही नागालैंड में काफी समय से अलगाववादियों की एक समानांतर सरकार चल रही है। कार्यक्रम में अनेक समाजसेवी, पत्रकार व गणमान्यजन उपस्थित थे।
ुावेकानंद कर्मयोगी पुरस्कार से सम्मानित श्री दीपक बरठाकुर ने पाञ्चजन्य को बताया कि एक समय था जब पूर्वोत्तर भारत के बारे में शेष भारत में अज्ञानता का बोलबाला था। परिणामत: पूर्वोत्तर के लोग अपने आपको उपेक्षित समझने लगे थे। दिल्ली में बनने वाली हर नीति में पूर्वोत्तर भारत की उपेक्षा की जाती थी। लेकिन बोमडिला, काजीरंगा, चेरापूंजी, तवांग जैसे सैकड़ों पर्यटन-स्थल पूर्वोत्तर भारत में हैं। आज भी पूर्वोत्तर भारत पर्यटन की दृष्टि से अव्वल नंबर पर है। लेकिन आज भी वहां एक जिले से दूसरे जिले में जाने के लिए सड़कें नहीं हैं। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने जो रेल-लाईन बिछाई थी आज भी वही रेल-लाईन है, वह एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी।
ऐसी विषम परिस्थितियों के बीच श्री दीपक बरठाकुर ने जब सामाजिक क्षेत्र में काम करने का निश्चय किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। मात्र चार दशक में ही पूर्वोत्तर भारत के हजारों नौजवानों को रोजगार के अवसर प्रदान कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ दिया। अहर्निश मेहनत कर तेल,चाय इत्यादि कृषि आधारित व्यवसाय को आज भारत की पहचान बना दिया। तिनसुकिया, डेरगांव में संतरों के बागान व चीनी मिल लगाकर तथा बोरभोटा में चायपत्ती के बागान लगाकर भारी मात्रा में चाय उत्पादन शुरू किया। इतना ही नहीं, दवा-क्षेत्र और बैंकिंग क्षेत्र में अपनी अद्म्य मेधा का परिचय दिया। परिणामत: भारतीय रिजर्व बैंक ने उनके सहकारी बैंक को ए-श्रेणी में शामिल किया है।
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