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विश्व व्यापार संगठन के गठन के बाद, पिछले 18 वषोंर् से भी अधिक समय के अनुभव से अब स्पष्ट हो चुका है कि यह पूरे विश्व के लिए अमंगलकारी व्यवस्था है। विकासशील और विकसित, दोनों प्रकार के देशों की जनता की समस्याएं पहले से अधिक जटिल हुईं। स्वदेशी जागरण मंच की यह स्पष्ट मान्यता है कि विश्व व्यापार संगठन का जन्म बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभ के लिए निर्मित भूमंडलीकरण की नीति का एक हिस्सा ही था। इसी वृहत साजिश के तहत बहुराष्ट्रीय कपंनियों के हित साधन हेतु विकसित देशों के दबाव में भारत सहित दुनिया के अन्य विकासशील देशों में भी नई आर्थिक नीति के नाम पर नीतिगत परिवर्तन करवा कर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मार्ग को प्रशस्त किया गया।
आज भारत इस नीति के दुष्परिणामों को भुगत रहा है। रुपये और डॉलर की विनिमय दर 1990-91 में 16 रुपये से आज 65 रुपये प्रति डॉलर से भी अधिक तक पहुंच चुकी है। देश की जनता भयंकर बेरोजगारी, गरीबी, और महंगाई के दंश को झेल रही है। गलत आंकड़ों से बेरोजगारी और गरीबी को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है। बढ़ती कृषि लागतों और अपने उत्पाद का उचित मूल्य न मिलने के कारण हजारों किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। विदेशी कंपनियां भारत में खूब लाभ कमाकर अपने देशों को अंतरित कर रही हैं। बढ़ते आयात, गैरकानूनी अंतरणों और लाभों को अपने-अपने देशों को ले जाने की प्रवृत्ति से भारत को खतरनाक घाटे को ही सहना नहीं पड़ा रहा, देश भयंकर विदेशी कर्ज के जाल में फंस भी रहा है। गौरतलब है कि मात्र 4 वर्षों में भारत का विदेशी कर्ज 224 अरब डॉलर से बढ़कर 400 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है।
इस पृष्ठभूमि में दिसंबर 3-6, 2013 को बाली (इंडोनेशिया) में विश्व व्यापार संगठन का 9वां मंत्रीस्तरीय सम्मेलन प्रस्तावित है। उल्लेखनीय है कि दोहा मंत्रीस्तरीय सम्मेलन के बाद दोहा विकास वार्ताओं का दौर शुरू होना था, लेकिन पिछले 4 मंत्रीस्तरीय सम्मेलनों से विकसित देशों द्वारा अपनी कृषि सब्सिडी को नहीं घटाने की हठधर्मिता के कारण, विश्व व्यापार संगठन में वार्ताओं का क्रम ठप्प हो चुका है। अमरीका और यूरोप सहित विकसित देश अपनी आर्थिक ताकत के बलबूते पर अपने किसानों को भारी सब्सिडी देते हैं, जिसके कारण उनकी डेयरी और कृषि उत्पाद सस्ते होते हैं, जिनसे भारत के कृषि उत्पाद प्रतिस्पर्द्घा नहीं कर सकते। विश्व व्यापार संगठन के गठन के समय किए गए समझौतों में विकसित देशों ने अपनी कृषि सब्सिडी को समाप्त करने का वादा किया था, जिससे अब वे मुकर रहे हैं।
हाल ही के महीनों में अमरीका के दबाव में सरकार के उस संकल्प में ढिलाई आई है, जो देश के कृषि और डेयरी के लिए विनाशकारी तो है ही, देश के उद्योग और सेवा क्षेत्र के लिए भी अशुभकारी है। स्वदेशी जागरण मंच का निश्चित मत है कि अपना कार्यकाल पूरी कर चुकी सरकार को चुनाव से पूर्व किसी भी प्रकार का अंतरराष्ट्रीय समझौता करने का नैतिक अधिकार नहीं है। स्वदेशी जागरण मंच की कार्यसमिति सरकार को आगाह करती है कि विश्व व्यापार संगठन में देश के हितों के साथ समझौता न किया जाए और जब तक विकसित देश कृषि सब्सिडी समाप्त नहीं करते, तब तक किसी भी प्रकार के नए मुद्दों पर बातचीत न हो। प्रतिनिधि
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