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विहिप के संरक्षक श्री अशोक सिंहल ने कहा-धार्मिक-सांस्कृतिक स्वतंत्रता का यह आंदोलन और तेज होगा

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Aug 30, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 30 Aug 2013 16:13:36

84 कोसी परिक्रमा के निमित्त अयोध्या गए श्री अशोक सिंहल को गिरफ्तार किए जाने के कुछ घंटे बाद अदालत के आदेश से रिहा कर दिया गया। रिहा हाने के बाद उन्होंने पाञ्चजन्य से 84 कोसी परिक्रमा, रामजन्मभूमि आंदोलन और उ.प्र. की अखिलेश सरकार की दमनकारी नीतियों पर पाञ्चजन्य से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उसी वार्ता के संपादित अंश।
सेकुलर दलों आरोप है कि यह लोकसभा चुनाव-2014 के निमित्त 84 कोसी परिक्रमा के नाम पर ह्यवोट-परिक्रमाह्ण का आयोजन है।  आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
महर्षि अरविन्द ने 15 अगस्त, 1947 के दिन भारत को मिली आजादी पर कहा था कि अभी हमें मात्र राजनीतिक स्वतंत्रता मिली है और इसको पाने के लिए हमें बहुत संघर्ष करना पड़ा है। 1857 से,  कहा जा सकता है, यह संघर्ष अंग्रेजों के विरुद्घ शुरू हुआ। 1857 से लेकर 1947 तक संघर्ष के पीछे का मंत्र था- वन्देमातरम। जिस प्रकार 90 वर्ष के संघर्ष के उपरांत हमें राजनैतिक स्वतंत्रता मिली उसी प्रकार हमें अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये बहुत बड़ा आन्दोलन करना पड़ेगा। यही है यह राम-मन्दिर का आन्दोलन। लगभग 1950 से यह आन्दोलन चल रहा है। 60 वर्ष बाद मुकदमे का जो फैसला आया है उससे हम यह कह सकते हैं कि राम-मन्दिर का यह आन्दोलन हमारे देश की सांस्कृतिक आजादी का आन्दोलन है। धार्मिक स्वतंत्रता हमारा अधिकार है इसलिए हम सबको अपनी सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना चाहिए। महर्षि अरविन्द ने ठीक ही कहा था कि अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता हेतु हमें बहुत संघर्ष और बलिदान देने होंगे। लोग कहते हैं कि विहिप के रामजन्मभूमि-आन्दोलन से बड़ा उन्होंने अपने जीवन में कोई आन्दोलन नही देखा। अभी उससे भी बड़ा आन्दोलन होने जा रहा है जो हमें धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्रता देगा। रामजन्मभूमि आन्दोलन राम भक्तों का आन्दोलन है। यह आन्दोलन भगवान राम को तम्बू से हटाकर एक भव्य मन्दिर में विराजमान करने का है। यही बात हमारे पूज्य संतों ने भी कुंभ मे कही है कि यह काम संसद में कानून बनाकर ही होगा। भारत सरकार इसके लिये प्रतिबद्घ भी है क्योंकि 14 सितम्बर 1994 को भारत सरकार के महाधिवक्ता ने भारत सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में शपथपूर्वक सरकार की नीति को स्पष्ट करते हुए लिखित में बताया था कि यदि साबित होता है कि ढांचे के नीचे 1528 से पूर्व कोई हिन्दू मन्दिर था तो भारत सरकार की कार्यवाही हिन्दू भावनाओं के समर्थन में होगी।          
उस शपथ-पत्र की क्या पृष्ठभूमि थी?
7 जनवरी 1993 को भारत सरकार ने शांति व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर संसदीय कानून बनाकर ढांचे के चारों ओर की 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। इस अधिग्रहण में राम जन्मभूमि न्यास को उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा पट्टे पर दी गई 42 एकड़ भूमि भी थी, जबकि ढांचे वाले स्थान का क्षेत्रफल मात्र 12000 वर्गफीट ही है। अधिग्रहीत समस्त भूमि केवल हिन्दू समाज की है, जिसमें अनेक मन्दिर भी हैं। मुस्लिम समाज की लेशमात्र भूमि भी सरकार ने नहीं ली। सरकार ने अधिग्रहण का उद्देश्य घोषित करते हुए कहा कि इस भूमि में एक मन्दिर, एक मस्जिद तथा यात्रियों की सुविधाओं के स्थान निर्माण करेंगे। अधिग्रहण को मुस्लिम समाज ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, साथ ही 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा 143 ए के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय से एक प्रश्न किया कि क्या ढांचे वाले स्थान पर सन् 1528 के पहले कोई हिन्दू मन्दिर था? कालांतर में न्यायालय ने लंबी सुनवाई के बाद अक्तूबर 1994 में विवादित भूखंड का अधिग्रहण रद्द करके विवादित भूखंड से संबंधित सभी मुकदमों को अंतिम न्यायिक निपटारे के लिए पुनर्जीवित कर दिया तथा शेष भूमि का अधिग्रहण स्वीकार कर लिया एवं विवादित भूमि के स्वामित्व का  निपटारा व राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न के उत्तर का दायित्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय को सौंप दिया। परिणामत: रामजन्मभूमि-क्षेत्र में उत्खनन की प्रक्रिया शुरू हुई। राष्ट्रपति के प्रश्न पर और अधिक स्पष्टीकरण मांगने पर 14 सितम्बर 1994 को भारत सरकार द्वारा शपथ-पत्र दाखिल कर लिखित में जवाब दिया गया।
84 कोसी परिक्रमा का आयोजन करने का हेतु क्या था? 
कुंभ में पूज्य संतों ने कहा था कि 480 वर्ष के संघर्ष के पश्चात वह ढांचा गिरा। उसके लिए 76 संघर्ष हुए जिसमें लाखों लोगों ने बलिदान दिया। साथ ही संतों ने यह भी कहा कि 84 कोसी परिक्रमा-क्षेत्र में हम कोई भी बाबरी-प्रतीक नहीं बनने देंगे। इसके लिए हम जन-जागरण करेंगे। इसलिए विहिप ने यह 84 कोसी परिक्रमा का अभियान लिया। अयोध्या की यह 84 कोसी परिक्रमा हमारा धार्मिक अधिकार भी है। 84 कोसी परिक्रमा सदियों से चली आ रही है। पूरी 84 कोसी परिक्रमा में कुछ ही संत चलेंगे। मैंने 5 अप्रैल 2010 को हरिद्वार में एक चिंता व्यक्त की थी कि राम-जन्मभूमि का विषय पिछले 18 वषोंर् सुप्त पड़ा है। आज के नव-तरुण एवं युवा पीढ़ी इससे परिचित ही नहीं है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही हमें आगामी जन-जागरण की योजनाएं बनानी होंगी। इसी को ध्यान में रखकर 25 अगस्त, 2013 से 13 सितम्बर, 2013 तक अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा की जन-जागरण-योजना बनाई गई।
मुलायम सरकार ने विहिप पर नया परिक्रमा मार्ग बनाने का आरोप लगाया है। इस पर आपका क्या कहना है?
इस समय सरयू का जलस्तर बढ़ जाने के कारण नाव से नदी पार करना संभव नही है। अत: बाराबंकी में टिकैतपुर गांव से लेकर गोंडा तक का हमने एक नया मार्ग बनाया था। 17 अगस्त,2013 को जब एक प्रतिनिधिमंडल मुलायम सिंह यादव से मिलने गया था तो इस नये मार्ग के विषय पर चंपतराय जी ने अखिलेश यादव से बात भी की थी। मैंने भी श्री मुलायम सिंह से कहा था कि इस नए मार्ग में हमारा कोई पड़ाव नहीं होगा। श्री मुलायम सिंह ने भी हमें यह आश्वासन दिया था कि इस विषय पर वे अधिकारियों से चर्चा करेंगे। परंतु परिक्रमा पर रोक लगाने जैसी तो कोई बात उन्होंने की ही नहीं थी।
जन-जागरण हेतु 18 अक्तूबर, 2013 को भी कोई कार्यक्रम तय है। उसके बारे में थोड़ा बतायें।
18 अक्तूबर, 2013 को तो बहुत बड़ा कार्यक्रम होगा। लगभग एक लाख गांवों में कार्यक्रम होंगे। ह्यसंसद के माध्यम से अयोध्या में राम-जन्मभूमि पर भगवान राम का भव्य मन्दिर निर्माण होह्ण तथा ह्यअयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा-क्षेत्र में बाबरी-प्रतीक नहीं बनने दिया जायेगाह्ण, लाखों गांवों के करोड़ों लोग यह संकल्प लेंगे। एक बड़ा कार्यक्रम अयोध्या के सरयू तट पर होगा। इस कार्यक्रम में भी लोग हाथों में जल लेकर संकल्प करेंगे।
अगर अखिलेश सरकार ने 84 कोसी परिक्रमा की तरह पुन: रोडा अटकाने की कोशिश की तो?
वह जो भी करेगी उसे उसका परिणाम भोगना पड़ेगा। संतों को जेल में डालेंगे, उन्हें कष्ट देंगे तो संत चुप नहीं बैठेंगे। संत फिर ऐसा महाजागरण करेंगे जो अभी तक नहीं हुआ। जागरण भी होगा और आन्दोलन भी होगा। यह भी संभव है कि 18 अक्तूबर के बाद कोई बड़ा आन्दोलन हो।
आपने जन-जागरण के निमित्त अयोध्या की 84 कोसी यात्रा का आयोजन किया, परंतु अखिलेश सरकार ने यात्रा का दमन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
स्वराज आन्दोलन का दमन करने में अंग्रेज सरकार ने भी कोई कसर नही छोड़ी थी। जैसे-जैसे अंग्रेज सरकार ने दमन करना शुरू किया स्वराज-आन्दोलन बढ़ता चला गया। उसी प्रकार धार्मिक-सांस्कृतिक आजादी के लिए राम-जन्मभूमि आन्दोलन का जितना दमन किया जायेगा उतना ही राम-जन्मभूमि आन्दोलन विकराल रूप धारण करता जाएगा। जिस प्रकार ह्यभारत छोड़ोह्ण का नारा देकर अंग्रेजों को भारत से निकाल दिया गया था उसी प्रकार हम भी तथाकथित सेकुलरों को बहिष्कृत कर देंगे।  प्रस्तुति: राजीव गुप्ता

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