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पिछले कुछ समय से मध्य पूर्व में आग लगी हुई है। जनता की बगावत ने वहां के शासकों की नींद हराम कर दी है। राजतंत्र में सांस लेने वाले अब महसूस करने लगे हैं कि सामान्य जनता के विद्रोह की लपटें उनके घरों तक पहुंच गई हैं। सऊदी अरब का शाही खानदान भी विद्रोही लपटों से घिर गया है। कहा जाता है कि यदि आंख फूटनी ही है तो वह घर के डंडे से भी फूट जाती है। किसी को पता नहीं था कि सुख-सुविधा में पले राजकुमार भी क्रांति की चिंगारी बन सकते हैं। सऊदी सरकार लगभग 75 वर्षों से इस्लाम के नाम पर अडिग रूप से टिकी हुई थी। लेकिन पिछले दिनों वहां के एक राजकुमार ने दुनिया के इस ठाटबाट वाले परिवार की नींद हराम कर दी है। यदि मध्य पूर्व की आम जनता अपने वहां के राजनीतिज्ञों से हिसाब मांग रही है तो सऊदी में खालिद बिन अलसऊदी नामक राजकुमार ने अपने परिवार की अय्याशियों में सेंध लगा दी है। एक राजकुमार के विद्रोह ने शाही परिवार के अन्य सदस्यों को इस बात पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि समय रहते उन्होंने सुध नहीं ली तो वे भी इस सुख समृद्धि के दुर्ग में जल कर भस्म हो जाएंगे। खालिद बिन अलसऊद ने एक वक्तव्य से सऊदी महलों की दीवारों में कम्पन पैदा कर दिया है। ईश्वर को धन्यवाद देते हुए इस राजकुमार ने कहा है कि मैं अपने निजी अनुभवों से इस बात को समझ रहा हूं कि सऊदी सरकार जिस रास्ते पर चल रही है आम जनता को उसका मूल्य चुकाना पड़ रहा है। इसलिए मैं अपने अनुभवों को देखते हुए अपने परिवार से अलग हो रहा हूं। अब मेरा शाही परिवार से कोई सम्बंध नहीं है। सऊदी शासकों ने सोचा था कि उनके फौलादी दुर्ग में यासमीन क्रांति घुसपैठ नहीं कर सकेगी लेकिन जब क्रांति होने वाली होती है तो वह अपना मार्ग स्वयं ढूंढ़ लेती है। सऊदी महल के सूत्रों का कहना है कि बाहर की दुनिया से सीख लेकर सऊदी राजा ने अपने परिवार में कुछ परिवर्तन प्रारंभ किये थे। लेकिन सऊदी जनता का इससे भला नहीं हो सका। कुछ समय पूर्व ही सऊदियों की बेकारी को दूर करने के लिए सऊदी शासकों ने नताका नामक कानून लागू किया था। जिसके अनुसार देश में काम कर रहे विदेशी नागरिकों की छुट्टी कर दी जाएगी और उनके स्थान पर सऊदी के आम आदमी को काम मिलने लगेगा। अकेले भारत से गए 20 लाख लोगों के सरों पर तलवार लटक रही है। अनुमान है कि सितम्बर मास की समाप्ति तक भारत के तीन लाख लोग सऊदी अरब से लौट आएंगे। अन्तरराष्ट्रीय दबाव के कारण भले ही सऊदी सरकार अपनी गति को धीमी कर दे लेकिन अब यह तय है कि विश्व के कोने-कोने से आए विदेशी नागरिकों की वहां से छुट्टी हो जाएगी। सऊदी अरब में पढ़ी-लिखी नस्ल को काम नहीं मिल रहा है। इसलिए क्रांति के स्वर को धीमा करने के लिए सरकार ने यह पहला कदम उठाया है। लेकिन खालिद बिन अलसऊद का कहना है कि सऊदी अरब की सत्ता में जब तक आमूलचूल परिवर्तन नहीं होता है तब तक सऊदी अरब के हालात नहीं सुधर सकते हैं। सऊदी खानदान के विद्रोही राजकुमार के अनुसार सऊदी शाही परिवार ने देश को अपनी जागीर समझ ली है। इस दिशा में सोच विचार तो बहुत दूर उल्टे सऊदी राजा के ईद गिर्द उनके परिवार की टोली ने अपने विरुद्ध उठ रही आवाज को दबाने का प्रयास किया है। विद्रोही राजकुमार का कहना है कि सऊदी खानदान ने ऐसे हालात पैदा कर दिये हैं जहां आम जनता का दर्द समझने वाला कोई नहीं है। सऊदी परिवार को अपने स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। यहां तक कि अब राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी उनका कोई ध्यान नहीं है। देश में बेरोजगारी, काम की तुलना में कम वेतन और जनता के बुनियादी सवालों की ओर उनका लेशमात्र भी ध्यान नहीं है। शाही खानदान अपनी सोच बदलने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। इसलिए राजकुमार खालिद बिन ने सऊदी के भविष्य की ओर जनता का ध्यान आकर्षित किया है। उनका आह्वान है कि जनता इस फौलादी ढांचे को तोड़े और देश की स्थिति पर विचार करे। परिवार के राजकुमार की इस आवाज पर सारी दुनिया आकर्षित हुई है। राज परिवार चिंतित ही नहीं भयभीत भी है, क्योंकि भूतकाल में जिस तरह से अपने बागी परिवार के विरुद्ध सऊदी राजा का फरमान सर्वोपरि हुआ करता था अब ऐसा नहीं है। इंटरनेट पर बहस जारी है। राजा के महल में लगता है क्रांतिकारी विचारों ने सेंध लगा दी है। इससे पहले सऊदी अखबारों में परिवार के भ्रष्टाचार और अय्याशियों की कहानियां प्रकाशित नहीं होती थीं। लेकिन पिछले कुछ समय से इस प्रकार की कहानियों की बाढ़ आ गई है। एक अन्य राजकुमार बंदर बिन सुल्तान, जो कि अमरीका में किसी समय राजदूत रह चुके हैं, शाही परिवार के विरुद्ध पिछले कुछ समय से आग उगल रहे हैं। जिसके नतीजे में उन्हें नजरबंद कर दिया गया है। इस्लामिक रिफार्म मूवमेंट के नेताओं के कथनानुसार सरकार ने अपने ही राजकुमार की इन गतिविधियों को बुरी तरह से कुचल दिया है। लेकिन स्वतंत्रता की आवाज और देश में राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक सुधार किये जाएं इसका स्वर दिन प्रति दिन बुलंद होता जा रहा है। मामला केवल देश के भीतर की नीतियों को लेकर ही नहीं है, बल्कि पड़ोसी देश ईरान के सम्बंध में भी है, जो वर्तमान शाही परिवार की नीतियां हैं उससे जनता का एक बड़ा भाग असंतुष्ट है। पाठकों को याद दिला दें कि शिया-सुन्नी विवाद वास्तव में तो पुराना अरब-अजम विवाद है। अरब लोग बहुत प्रारम्भ से ईरानियों को अशिक्षित, असंस्कारी और असभ्य मानते रहे हैं लेकिन ईरानियों ने ही उन्हें दुनिया के ज्ञान विज्ञान से परिचित कराया। बाद में यही विवाद शिया सुन्नी में बदल गया। ईरान में दुनिया की अकेली शिया सरकार है। जिसे सुन्नी देश हमेशा से तुच्छ निगाहों से देखते रहे हैं। संस्कृति एवं राजनीति में ईरानियों की जो देन है भला उससे कौन इनकार कर सकता है? आज भी यह विवाद ज्यों का त्यों है। लेकिन अब ईरान ने इतनी प्रगति कर ली है कि अरब जगत उससे भयभीत है। पूर्व राष्ट्रपति अहमदी निजाद ने अमरीका सहित सारी दुनिया से लोहा मनवा लिया है। सऊदी अरब के अब भी ईरान से अच्छे संबंध नहीं हैं। हज यात्रा के समय दोनों में टकराव की स्थिति बनी रहती है। आयतुल्ला खुमैनी की ताकत के बाद सऊदी अरब ईरान से अच्छे संबंध बनाने के मार्ग पर प्रशस्त हुआ है। लेकिन दोनों के बीच आज भी टकराव ज्यों का त्यों है। ईरान अब एटम बम की ताकत वाला देश है इसलिए अन्य सुन्नी देश अब उसके पीछे हैं। सऊदी को भय यह है कि उनका पड़ोसी देश जनता की बगावत सऊदी में न करवा दे। अमरीका की अर्थव्यवस्था का सबसे ताकतवर स्तम्भ सऊदी है। इसलिए वह उसके पीछे खड़ा है। लेकिन यासमीन क्रांति के बाद हर देश अपनी जनता से भयभीत है। इसलिए सऊदी का भी भयभीत होना स्वाभाविक बात है।
सऊदी सरकार अपने विद्रोही राजकुमार की ताकत को कम नहीं आंक रही है। इसलिए देश में रोजगार के साधन बढ़ाए जा रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में वहां की नई पीढ़ी विदेश में शिक्षित हुई है इसलिए सऊदी सरकार का चिंतित होना स्वभाविक है। विद्रोही राजकुमार का कहना है कि अब परिवार का राज नहीं चल सकता है। इसमें सामान्य सऊदी को भी शामिल किया जाना चाहिए। लेकिन कौन होगा जो अपनी सत्ता को छोड़ दे? इसलिए खालिद बिन के विरुद्ध घेरा तंग हो रहा है। उसे किसी भी क्षण गोली से उड़ाया जा सकता है। लेकिन सरकार को इस बात का अहसास है कि खालिद अकेला नहीं है उसके पीछे देशी और विदेशी ताकतें हैं। जो यासमीन क्रांति की तरह यहां भी लहर पैदा कर सकती हैं। सऊदी अरब के प्रेस में छप रहे समाचार बताते हैं कि फरवरी 2011 से सऊदी अरब में प्रदर्शन हो रहे हैं। अब जनता को दबाना इतना सरल नहीं है। सऊदी में जनता की सरकार स्थापित करने की मांग बढ़ रही है। आएदिन वहां साहित्य वितरित होता है। इसलिए सरकार हज यात्रा के दौरान इस प्रकार के तत्वों पर कड़ी नजर रखती है। सऊदी के क्रांतिकारियों का कहना है कि सऊदी राजा मजहब के नाम पर लोगों को बरगला रहे हैं? सरकार जिस तरह से मस्जिदों को और अन्य इस्लामी स्मारकों को तोड़ कर बड़े मॉल और शापिंग सेंटर बना रही है उससे उसे लगता है वह अपने विरुद्ध चल रहे आन्दोलन को रोक पाने में सफल हो जाएगी। किन्तु इसका प्रभाव उल्टा भी पड़ा है। सरकार जिस तरह से पैगम्बर के समय में बनी मस्जिदों को तोड़ रही है, इतना ही नहीं उनकी समाधि एवं अन्य खलीफाओं की यादगारों को भी मिटाने पर तुली हुई है। सऊदी सरकार जिस पंथ में विश्वास रखती है यह उसकी विचारधारा है लेकिन विश्व की मुस्लिम जनता इससे सहमत नहीं है। बल्कि उनका यह मानना है कि अपने पंथ की नादिरशाही को अपना कर वह मनमाने ढंग से इस्लाम के स्वरूप को बदल देना चाहती है जिससे सामान्य मुसलमान सहमत नहीं हो सकता है।
सऊदी अरब का प्रेस एवं वहां का बुद्धिजीवी वर्ग यह कह रहा है कि भूतकाल में भी सऊदी सरकार को ऐसे झटके लगे हैं लेकिन वे सरकार का कुछ भी नहीं बिगाड़ सके। लेकिन इस बार अरब देशों में जो क्रांति की हवा चली है वह रुक जाएगी, यह कह पाना कठिन है। मिस्र और लीबिया ने भी ऐसा ही दावा किया था, लेकिन वहां जो हालात सामने आए हैं उसने दुनिया को बता दिया कि अब मुस्लिम जगत में परिवर्तन की बयार को कोई नहीं रोक सकता है।
सऊदी सरकार के लिए एक और चिंता की बात है कि वहां का खनिज तेल समाप्ति पर है। सऊदी राजकुमार अल वलीद बिन तलाल का कहना है कि सऊदी सरकार का सिंहासन जिस पर टिका है वहीं अब डांवाडोल हो रहा है। इसलिए परिवर्तन तो निश्चित है। प्रिंस अलवलीद ने सऊदी अरब के पेट्रोलियम मंत्री वलीम अली अलनईम के नाम खुले पत्र में कहा है कि अब दुनिया में आ रही नई तकनीक ने दुनिया में तेल की खपत को कम कर दिया है। ओपेक में तेल की मांग कम हो रही है और उसकी गिरावट के रुकने के चिन्ह नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। इसलिए सऊदी सरकार की हठधर्मी उसे ले डूबेगी, यह स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है। मुजफ्फर हुसैन
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