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वह गुफा के द्वार से ही लौट पड़ा। अभी वह थोड़ी ही दूर चला होगा कि उसे एक गीदड़ का बच्चा दिखाई दिया। शेर को दया आ गई। वह उसे जीवित ही गुफा में ले आया। शेर ने शेरनी से कहा, ह्यतू इसे खाकर अपना पेट भर ले। कल मैं बहुत सारा शिकार ले आऊंगा। शेरनी समझदार थी शेरनी ने शेर से कहा, स्वामी जब आपने इसे बालक समझ कर नहीं मारा तो मैं भी इसे नहीं मारूंगी। मैं इसे अपना तीसरा बेटा समझकर पाल लूंगी।ह्ण
इस प्रकार गीदड़ का बच्चा भी शेरनी का दूध पी-पी कर बड़ा हो गया। तीनों बच्चे साथ-साथ खाते, खेलते और शरारतें करते। शेर और शेरनी दोनों तीनों बच्चों को प्यार देते और उनकी रक्षा करते थे। धीरे-धीरे तीनों बड़े होते गए। उनमें अपने-अपने जातिगत गुण भी स्वत: प्रगट होने लगे। शेर के बच्चों में शेरों के और गीदड़ के बच्चे में गीदड़ों के गुण विकसित होने लगे।
अब शेर और शेरनी के शिकार की खोज में निकल जाने के बाद यह तीनों बच्चे भी बाहर आसपास निकल कर घूमने लगे। एक दिन इन्होंने दूर से मस्त हाथी को जाते हुए देखा। शेर के बच्चों में हाथी को देख कर उत्साह भर गया। वे गुर्राए और हाथी पर झपटने की चेष्टा करने लगे। गीदड़ का बच्चा बड़ा था। उसने दोनों शेर बच्चों को मना किया, रोका और कहा, ह्ययह हाथी हमारा कुल शत्रु है। यह बड़ा ताकतवर है। हमें इससे बचकर दूर ही रहना अच्छा है।ह्ण
इतना कह कर वह डर कर गुफा की ओर भागा। शेर के बच्चे भी मन मारकर, निराश से होकर उसके पीछे गुफा में आ गए। गुफा में पहुंच कर दोनों शेर बच्चों ने गीदड़ के बच्चे की शिकायत शाम को जंगल से लौटने पर मां से की। गीदड़ का बच्चा भी लाल लाल आंखें कर, ओंठ फड़-फड़ा कर शेर के बच्चों की हरकतें बताने लगा। वह दोनों शेर बच्चों को बुरा भला कहता रहा। उसे उनकी हरकतें तनिक भी अच्छी न लगीं। वह डरा हुआ सा दिखाई दे रहा था।
शेर और शेरनी दोनों उन तीनों की बातें सुन कर चिंता में पड़ गए। उन्होंने परस्पर कुछ सोच-विचार किया और निर्णय भी कर लिया। शेरनी ने अकेले में गीदड़ के बच्चे को बुलाकर कहा, ह्यबेटा, तू बड़ा है। तुझे भाइयों को इस प्रकार गुस्से में नहीं बोलना चाहिए। उनकी बातों और हरकातों पर भी तुझे ध्यान नहीं देना चाहिए।ह्ण
पर गीदड़ का बच्चा समझाने पर भी नहीं माना। वह बराबर क्रोध में अनाप-शनाप कहता ही रहा। उसने शेरनी से कहा, मैं बड़ा हूं। मुझमें समझदारी और जानकारी भी उनसे अधिक है। मैं बहादुरी में भी उनसे अधिक हूं फिर मैं चुप क्यों रहूं। आप उन्हें क्यों नहीं रोकतीं। आज यदि मैं न होता तो हाथी उन दोनों को जीवित नहीं छोड़ता। इस पर भी वे तुम्हारे सामने मेरी मजाक उड़ा रहे थे। आपने उनसे कुछ नहीं कहा। उन दोनों पर बड़ा गुस्सा आ रहा है। आप उन्हें समझा दें नहीं तो इसका नतीजा बुरा होगा।ह्ण
इतना कह गीदड़ का बच्चा क्रोध में भभक उठा। वह बराबर बके ही जा रहा था। यह देख शेरनी हंसने लगी, शेरनी ने उससे कहा, ह्यबेटा, देख तू बड़ा है। मेरा कहना मान और चुप हो जा। यह ठीक है कि तू सुन्दर है, बलवान है, बड़ा है और समझदार भी है। पर जिस वंश और जाति में तू जन्मा है, उसमें हाथियों का शिकार नहीं किया जाता। अब समय आ गया है। मैं तुझे तेरे बारे में सब कुछ सच-सच बता देती हूं।ह्ण
गीदड़ का बच्चा यह सुन चुप हो गया और कहने लगा, मां, आज तू बता, कि मैं कौन हूं? किश वंश का हूं? शेरनी बोली, ले तो सुन, तू सच में गीदड़ का बच्चा है। मेरा नहीं। मैंने दया के वश तुझे पाला अवश्य है। तूने मेरा दूध भी पिया है। पर कुल का प्रभाव कभी नहीं जाता। अत: अच्छा यही है कि अब तू अपने कुल में जाकर मिल जा। अन्यथा मेरे बच्चे मेरे लाख मना करने और बचाने पर भी किसी दिन चीर डालेंगे। वे शेर के बच्चे हैं। हाथियों को मारना और उनका शिकार करना उनका जन्मजात स्वभाव है।
गीदड़ का बच्चा यह सब सुनकर भयभीत हो उठा। शेरनी ने उसे गुफा के बाहर कर दिया। रात्रि में गीदड़ बोल रहे थे। वह भी उहें बोलते देखकर उनकी ही बोली बोलने लगा और अपनी जाति के लोगों में जाकर मिल गया। किसी ने सच ही तो कहा है- गीदड़, गीदड़ ही रहता है। वह शेर नहीं हो सकता। हरिशंकर काश्यप
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