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भारतवंशियों को मातृभूमि से जोड़ने वाली विभूति से साक्षात्कार
रा.स्व.संघ के संस्कारों में रचे-पगे, अपने जीवन के हर आयाम में एक संस्कारित स्वयंसेवक के गुणों को झलकाने वाले और अपने व्यवहार से अपने सम्पर्क में आने वाले हर एक को प्रभावित करने वाले श्री बालेश्वर अग्रवाल 23 मई, 2013 को नश्वर देह का त्याग कर गए थे। उनके मित्रों-बंधुओं ने पहले से ही तय किया हुआ था कि बालेश्वर जी के व्यक्तित्व और उन्होंने अपने तप से जो समाजहित के कार्य किए उन पर केन्द्रित करते हुए एक विशद ग्रन्थ इस वर्ष उनके जन्मदिवस 17 जुलाई, 2013 को उनको समर्पित करेंगे। लेकिन विधि का विधान कुछ और था। बालेश्वर जी उससे पूर्व ही संसार से विदा हो गए।
अब ग्रन्थ प्रकाशित होकर आया तो बालेश्वर जी के चुम्बकीय व्यक्तित्व का एक बार फिर स्मरण हो आया। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान संघ शाखा शुरू करना, हिन्दुस्थान समाचार में सम्पादक के नाते राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए समाचारों का संकलन- प्रसारण करना और अन्तरराष्ट्रीय सहसंयोग परिषद के संस्थापक के रूप में विदेशों में बसे भारतीय मूल के नागरिकों को उनकी जड़ों से जोड़े रखना, उन देशों और भारत के बीच एक प्रेम का, संस्कृति का और सहयोग का सेतु स्थापित करना। इस सबको एक पुस्तक में समाना दुष्कर कार्य था परन्तु सम्पादकद्वय, नारायण कुमार गोपाल और अरोड़ा ने प्रयासपूर्वक यह कर दिखाया।
‘कर्मयोगी बालेश्वर अग्रवाल : व्यक्ति और विचार’ सही मायनों में बालेश्वर जी के जीवन के विभिन्न पड़ावों के साथ-साथ उनके सम्पर्क में आए महानुभावों के अपने देखे अनुभवों सहित अन्तरराष्ट्रीय राजनय और भारत पर विस्तृत प्रकाश डालती है। अंग्रेजी और हिन्दी में प्रकाशित निबन्धों/आलेखों में गिरमिटिया मजदूर के रूप में मॉरीशस, फिजी, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, गुयाना, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में 2-3 पीढ़ी पहले गए भारतवंशियों के परिवारों को खोजकर उनसे सतत सम्पर्क रखने और उनको भारत से जोड़े रखने में बालेश्वर जी के अद्भुत कार्य का वर्णन मिलता है। उन्होंने उन-उन देशों के युवा छात्रों को भारत आकर यहां के प्रमुख स्थलों के दर्शन कराने का एक अनूठा क्रम चलाया था जो आज भी जारी है। श्रीलंका और नेपाल के साथ भारत के ऐतिहासिक सम्बंधों को मजबूती प्रदान करने में बालेश्वर जी के प्रयासों को कौन भूल सकता है। नई दिल्ली में बना प्रवासी भवन बालेश्वर जी के तप का ही परिणाम है।
बालेश्वर जी का अनेक देशों के शीर्ष नेताओं से निकट सम्बंध-सम्पर्क था और वे समय-समय पर भारत में अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद् के तत्वावधान में गोष्ठियां-सम्मेलन करके द्विपक्षीय सम्बंधों को मजबूती प्रदान करते थे। पुस्तक की भूमिका में पूर्व विदेश सचिव और अन्तरराष्ट्रीय सहयोग परिषद् के अध्यक्ष श्री शंशाक लिखते हैं, बालेश्वर जी ने भारत में भारतवंशियों के सरोकारों के प्रति ध्यान आकर्षित कराने में अद्भुत योगदान दिया था। उनके आदर्श और दृष्टि आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेगी। पुस्तक के प्राक्कथन में परिषद् के सचिव श्याम परांडे लिखते हैं, बालेश्वर जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और एक अनूठी विभूति थे। वे वसुधैव कुटुम्बकम के मूल मंत्र पर वृहत मानव समाज के हित के लिए विदेशों में बसे भारतवंशियों को अपनी मातृभूमि से जोड़े रखने के लिए प्रयत्नशील रहे। पुस्तक में बालेश्वर जी के कई संस्मरणात्मक चित्र उनकी उपलब्धियों की झलक देते हैं। आलोक गोस्वामी
पुस्तक का नाम -कर्मयोगी बालेश्वर अग्रवाल: व्यक्ति और विचार
सम्पादक – नारायण कुमार-गोपाल अरोड़ा
प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन,
4/19,आसफ अली रोड
नई दिल्ली-110002
पृष्ठ – 200, मूल्य -500 रु.
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