वर्षा काल के पक्षी
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वर्षा काल के पक्षी

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Aug 24, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Aug 2013 16:24:34

बच्चो! बारिश के इस मौसम में कहीं आते-जाते आपको बहुत सारे पक्षी दिखते होंगे। आपके मन में उनके बारे में जानने की इच्छा भी होती होगी। आपकी उसी इच्छा को देखते हुए यहां कुछ पक्षियों का परिचय दिया जा रहा है।

बरसात का मौसम है। घने काले बादलों के गर्जन से आसमान गूंज रहा है। वर्षा के पानी से नदी, नाले, तालाब, झरने आदि लबालब भर गए हैं। पेड़-पौधे हरियाली से सजे हैं। इस मौसम में जलाशयों के किनारे नाना प्रकार के पक्षी कलरव करते देखे जा सकते हैं। इन पक्षियों में पहला नाम बगुले का है। बगुले को शांत भाव से बैठा देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पक्षियों में सबसे सीधा-सादा है। इसके अंदाज को देखकर ही ह्यबकोध्यानह्ण या ह्यबगुला भगतह्ण जैसे मुहावरे चल पड़े। पानी में रहने वाली मछलियां बगुले का ध्यान भंग करती हैं। बगुला मछलियों को देखते ही उन पर टूट पड़ता है और उन्हें खा जाता है, फिर भी बगुला पानी के अन्दर घुस कर मछली नहीं पकड़ता।
गहरे पानी में घुसकर मछली पकड़ने के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है पोलिकन पक्षी। इसे हिन्दी में हवालिस तथा बंगला में गगनभेरी के नाम से जानते हैं। हवालिस भारत का बारहमासी पक्षी नहीं है। ये पक्षी वर्षा काल में यहां के समुद्रतटीय राज्यों के जलाशयों को अपना अड्डा बनाते हैं। हवालिस एक साथ लाखों की संख्या में रहते हैं। ये जहां भी रहते हैं गांव बसा लेते हैं। इनका कद गीधों से बड़ा, लम्बी गर्दन तथा पैर छोटे-छोटे, जालीदार तथा मजबूत होते हैं। इनकी चोंच बहुत लम्बी, मोटी तथा चपटी सी होती है। बतखों की तरह कतार बांधकर आकाश में उड़ते हैं। ऊंचे वृक्ष पर घोसले बनाते हैं। अण्डों की संख्या दो या तीन होती है। हवालिस का मुख्य भोजन मछली है। ये बड़े झुंड में पानी के अन्दर डैनों की चोट देते हुए आगे बढ़ते हैं। मछलियों को गहरे जल से छिछले पानी की ओर जाने के लिए बाध्य करते हैं। और वहां एक साथ मिलकर सहभोज करते हैं। हवालिस की चर्बी से निकला हुआ तेल गठिया रोगी के लिए बड़ा गुणकारी माना जाता है।
भारत में बानवर एक ऐसा जलपक्षी है जो वर्षाकाल में दिखाई देता है। यह जलाशयों में रहता है। इसके सिर और गर्दन पर ह्यपरह्ण नहीं होते। रंग काला होता है। ये पानी के भीतर से अपनी लम्बी गर्दन निकालकर चारों ओर देखते हुए तैरते हैं। किसी आगन्तुक को देखकर लम्बी डुबकी लगा लेते हैं। ये मछलियां, सीप और घोंघे खाते हैं। ये दस-बारह के झुंड में रहते हैं। वर्षाकाल में जलाशयों के किनारे के वृक्षों पर घोंसले बनाते हैं। वहीं अंडे देते हैं।
जिस पक्षी को जल में डुबकियां लगाने में महाभारत हासिल है उसका नाम पनकौआ है। जल के भीतर मछलियों का पीछा करना और उन्हें पकड़कर खाना इनका प्रतिदिन का काम है। जलाशय ही इनका निवास स्थान है। शरीर का रंग चमकीला काला होता है। दुम लम्बी तथा चोंच कुछ टेढ़ी सी होती है। नर और मादा ह्यएकह्ण जैसा होते हैं।
हमारे धर्मग्रन्थों में जल-कुक्कुटों का नाम आता है। इनका आकार मुर्गों के समान होता है। ये जल और थल दोनों पर समान रूप से रह सकते हैं। किसी आगन्तुक को देखते ही ये जल में गहरी डुबकी लगा लेते हैं। जल कुक्कुट की जाति का एक अन्य पक्षी है जिसे मूरहेन कहते हैं। ये पक्षी छोटे ताल तलैयों के या सड़कों के किनारे के गड्ढों में रहते हैं। आमतौर पर इसे जलमुर्गी बोलते हैं। सिलही नामक बतख यहां का बारहमासी पक्षी है। ये पक्षी उन्हीं झीलों अथवा तालाबों में रहते हैं जो कमल कुमुदिनी, सिंघाड़ा या सेवार आदि पौधों से भरे होते हैं। वे साफ तालाब में नहीं रहते। एक बार में इनके पचासों जोड़े एक साथ जलविहार करते हुए नजर आएंगे। इनमें उड़ने की शक्ति नहीं होती। ये थोड़ा बहुत ही उड़ पाते हैं।
राजस्थान में भरतपुर झील के किनारे बबूल के वृक्षों पर वर्षाकाल में बड़ी संख्या में बरसाती पक्षी- घोंघिल, चमचबाज, लगलग, बगुले आदि एकत्र हो जाते हैं। वे वृक्षों के शीर्ष भाग पर घोंसले बनाकर अंडे देते हैं। तमिलनाडु में 50 मील में फैला हुआ है वेदांत ताल। वर्षाऋतु में यहां के सारे वृक्ष देशी-विदेशी पक्षियों से आच्छादित हो जाते हैं। वर्षाकाल में समुद्र के किनारे होने के कारण गुजरात राज्य में विदेशी पक्षियों का काफी जमाव हो जाता है। खासकर कच्छ की झीलों में फैली हुई दलदली भूमि में। यहां हजारों की तादाद में हंसावर पक्षी विदेशों से आते हैं। उनके आने पर कच्छ का मैदान ऐसा लगता है मानो हजारों तितली के फूल इसमें खिले हों।
सारस पक्षी विभिन्न देशों में पाया जाता है। यह जलाशयों के छिछले तट पर घूम-घम कर मछलियां, कछुए, मेढक और घोंघे को खाता है। यह जल के भीतर नहीं जाता। मादा पानी के बीच किसी टापू पर अंडे देती है। सारस स्वभाव से अंतरिक्ष विज्ञान का ज्ञाता है। बरसात कम होगी या ज्यादा इसका इसे पूर्वाभास मिल जाता है। मादा उसी के अनुसार अंडे देने की जगह चुनती है। पानी के बढ़ाव के साथ सारस अपने घोंसले को ऊंचा करता रहता है। इसका घोंसला लकड़ी के टुकड़ों घास-फूस आदि का ढेर होता है। इसके बीच में गहराई होती है। मादा इसी में अंडे देती है। अंडों की संख्या दो होती है।
वर्षाकाल के सभी पक्षी रंग-रूप में भिन्न होकर भी स्वभाव में अधिकांशत: एक से होते हैं। ये पक्षी गर्मी के दिनों में पहाड़ों की ऊंचाई पर अपना आश्रय बना लेते हैं। जल पक्षियों पर सबसे ज्यादा खतरा मनुष्यों से है जो इन्हें मारकर भोजन बना लेते हैं।            उमेश प्रसाद सिंह

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