अहिंसक भारत मांस से मुद्रा कमा रहा है
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अहिंसक भारत मांस से मुद्रा कमा रहा है

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Aug 24, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 24 Aug 2013 16:15:27

अपना देश भारत अहिंसा और शाकाहार का देश कहलाने पर गर्व करता है, लेकिन पिछले दिनों चौंका देने वाली जानकारी प्राप्त हुई है। इस जानकारी से लगता है भारत सरकार मात्र पशुओं के मांस और हड्डियों का ही व्यापार नहीं करती है, बल्कि एक पशु के जितने अंग होते हैं उन सभी का नीलाम करते हुए भी हिचकिचाती नहीं है। भारत सरकार येनकेन प्रकारेण अपनी विदेशी मुद्रा के भंडार को भरने के लिए-रात दिन प्रयास करती रहती है, जिस में वह यह भी भूल जाती है कि इस देश में कभी महावीर और बुद्ध जैसे अहिंसा और करुणा के उद्घोषक जन्मे थे जिन्होंने जियो और जीने दो के सिद्धांत को प्रतिपादित करके विश्व को एक नई रोशनी दी थी। भारत जिस तरह से मांस का निर्यात करता है और जानवरों को काटने के लिए जिस तेजी से कत्लखानों की स्थापना करता है उसे देखकर दुनिया दंग है।
आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2010 में कुल मांस उत्पादन 6.27 मीट्रिक टन था। उस समय की स्थिति के अनुसार भारत का नम्बर विश्व में पांचवां था। यदि आंकड़ों में कहना हो तो भारत का उत्पादन 22.1 प्रतिशत था। 2011-12 में मांस के निर्यात में जो वृद्धि हुई उसमें भैंस के मांस का योगदान प्रमुख रूप से था। भैंस के मांस के निर्यात से इस अवधि में 13725.23 करोड़ रुपए, भेड़ और बकरी के मांस से 255.22 करोड़ तथा मुर्गी पालन से 475.81 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे। अन्य दुधारू पशुओं से 289.36 करोड़, पशुओं के चमड़े से 27.5 करोड़, प्रसंस्करित मांस से 30.1 करोड़ एवं सुअर के मांस से 3.51 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई थी। इतना ही नहीं नैसर्गिक रूप से मधुमक्खी का पालन करके 321.24 करोड़ रुपए अर्जित किये गए थे। भारतीय भैंसों के मांस के सबसे बड़े बाजार विएतनाम, मलेशिया, अरब गणराज्य (मिस्र) सऊदी अरब और जोर्डन हैं। 2011-12 के आंकड़े बताते हैं कि भारत से निर्यात किये जाने वाले मांस में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसमें 80 प्रतिशत मांस भैंसों का था। सम्पूर्ण दुनिया में जितनी भैंसें हैं उनका 58 प्रतिशत भारत में है। भारत में दूध के लिए सबसे उत्तम पशु गाय को माना जाता है। लेकिन जब गाय का दूध नहीं मिलता है तो उसकी कमी भैंस, बकरी और भेड़ के दूध से पूरी की जाती है। गाय भारत का सबसे पवित्र पशु है इसलिए उसे हम मां की संज्ञा देते हैं। लेकिन अफसोस के साथ यह लिखना पड़ता है कि निर्यात किये जाने वाले मांस में चोरी-छिपे गाय का मांस भी भेजा जाता है। जिसके ऊंचे भाव मांस निर्यातक वसूल करते हैं। भारत सरकार बार-बार दोहराती है कि मांस निर्यात में गोमांस पर कड़े रूप से प्रतिबंध है। लेकिन तेज-तर्रार निगाह वाले सभी बातों पर पर्दा डालकर बड़ी बेशर्मी से यह व्यवसाय करते रहते हैं। भारत में बैल के काटे जाने पर प्रतिबंध नहीं है। बैल की परिभाषा के अंतर्गत बछड़ा नहीं काटा जा सकता है। इसके बावजूद बछड़ों की भी बड़ी निर्ममता से हत्या कर दी जाती है। भारत से चोरी-छिपे जाने वाले गाय और बैल के मांस को ह्यसफेदाह्ण के सांकेतिक शब्द से सम्बोधित किया जाता है। भैंस, गाय और बकरी तथा भेड़ जैसे दुधारू पशुओं की हत्या के कारण भारत के बाजार में दूध कितना महंगा बिकता है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। दूध के धंधे में मिलावट का जो गोरखधंधा चलता है उसके समाचार आएदिन अखबारों में प्रकाशित होते हैं। मांस के निर्यात से भारत सरकार जिस विदेशी मुद्रा के भंडार पर इतराती है उसका यथार्थ यह है कि इससे होने वाली आय को वह अनुदान (सब्सिडी) के रूप में इन्हीं व्यापारियों को वापस लौटा देती है। यानी एक हाथ से वह लेती है और दूसरे हाथ से इन मांस और खून के सौदागरों को वापस लौटा देती है। तब सवाल उठता है कि इस प्रकार के व्यवसाय से देश को क्या लाभ है? लाभ तो होता नहीं लेकिन कुछ लालची धन्ना सेठों को वह करोड़पति से अरबपति अवश्य बना देती है।
इस मामले का एक दूसरा पक्ष यह है कि मांस निर्यात में वृद्धि का मूल कारण कत्लखानों की संख्या बढ़ते रहना है। एक समय था कि देश में केवल 400 बूचड़खाने थे। यद्यपि 25000 छोटे-बड़े अवैध बूचड़खानों की मशीनें भी धमधमाती रहती हैं। इस समय विश्व में 64 देशों को भारत अपने मांस का निर्यात करता है। जो आधुनिक कत्लखाने हैं उनके लाभ में चलने का मुख्य कारण मांस का बड़े प्रमाण में निर्यात किया जाना है। भारत सरकार के नीति निर्देशक मांस निर्यात में लगातार होने वाली वृद्धि का प्रमुख कारण आधुनिक कत्लखानों को ही मानते हैं। उनका कहना है कि इससे पशु के हर अंग का उपयोग होता है। जो कत्लखाना आधुनिक नहीं है उससे बहुत सारा मांस बिगड़ जाता है जिसके कारण निर्यात की गुणवत्ता घट जाती है। यह सारी स्थिति सामाजिक और आर्थिक खुशहाली पर निर्भर है। महंगे कत्लखानों में जो करोड़ों की मशीनें लगती हैं उन्हें खरीदना हर किसी के बस में नहीं है। किन्तु मांस के निर्यात से भारत सरकार को जितनी आय होती है उसकी तुलना में आठ से दस गुना भारत सरकार खो देती है। क्योंकि इन पशुओं के मलमूत्र से बनने वाली खाद और कुदरती मौत के पश्चात उनके काम आने वाले अवयव कितने कीमती हैं इसका ब्योरा प्राप्त कर लेने के पश्चात ही इस प्रकार का वक्तव्य दिया जाना आवश्यक है।
पशु के मांस और हड्डियों के अतिरिक्त चमड़ा, आंत, उससे प्राप्त होने वाली चर्बी और उसके सींग तथा खुर, बाल और किडनी की झिल्ली का उपयोग इन दिनों मेडिकल साइंस में तेजी से बढ़ रहा है जिसका मूल्य अरबों खरबों है। अब यदि कोई लालची सरकार और उसके व्यापारी सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को काटकर एक साथ सारा सोना प्राप्त कर लेना चाहते हैं तो उसे मूर्खता के अतिरिक्त और क्या कहा जाएगा?
मांस के निर्यात के संबंध में भारत सरकार हर समय चुपचाप निर्णय कर लेती है। मांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में अनेक बार आन्दोलन होते रहे हैं। जब कभी सरकारी नीति इस मामले में घोषित होती है उस समय भी जागरूक जनता इस बारे में अपना विरोध प्रकट करती रहती है। इसी कड़ी में पिछले दिनों प्रसिद्ध जैन मुनि विजय रत्न सुंदर सुरी जी महाराज एवं नागपुर के प्रसिद्ध सुक्रुत निर्माण चेरीटेबल ट्रस्ट के अग्रणी कनुभाई सावदिया ने जी तोड़ प्रयास किया। फलस्वरूप राज्यसभा ने मांस के निर्यात संबंधी जो नीतियां बनाई हैं उस पर विचार करने हेतु उनसे भेंट करके वस्तुस्थिति को जानने का प्रयास किया है। यह प्रथम अवसर था जब राज्यसभा की एक समिति राज्यसभा सांसद भगत सिंह कोश्यारी की अध्यक्षता में महाराज से भेंट करने के लिए रायपुर पहुंची। इसी विषय को लेकर कनुभाई सावदिया एक ज्ञापन लेकर कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोती लाल वोरा से भेंट करने के लिए दिल्ली जा पहुंचे। उन्होंने सरकार से सीधे-सीधे यह मांग की कि इस दूषण को सदा-सर्वदा के लिए समाप्त कर देने हेतु मांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। यद्यपि इस प्रकार का विरोध पहली बार नहीं हुआ है। लेकिन इस बार मांस निर्यात को लेकर जो कड़े तेवर थे उससे इस बात का आभास सरकार को अवश्य हो गया है कि यदि इस मामले में गंभीरता से विचार नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में कोई बहुत बड़ा आन्दोलन प्रारंभ  हो सकता है। सरकार कानूनी रूप से भले ही इस मामले में सक्षम हो लेकिन उसे इस बात का भी आभास हो गया है कि यदि समय रहते इस पर विचार नहीं हुआ तो निश्चित ही साधु-संतों और देश के बुद्धिजीवियों का एक बहुत बड़ा आन्दोलन प्रारंभ हो जाएगा। मुजफ्फर हुसैन
ह्ण     हर साल होता है 18 हजार करोड़ रु. कीमत का 8 लाख टन मांस निर्यात।
ह्ण     इस समय विश्व के 64 देशों को भारत से मांस भेजा जा रहा है।
ह्ण     मांस निर्यात में दुनिया में भारत का 5वां स्थान है।
ह्ण     2011-2012 में भैंस के मांस निर्यात से 13725.23 करोड़ रुपए।
ह्ण     2011-2012 में मांस निर्यात में 60 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
ह्ण     अत्याधुनिक कत्लखानों की स्थापना के लिए सरकार ही मांस निर्यातकों को सब्सिडी देती है
ह्ण     देश के अनेक सन्त और समाजसेवी मांस निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं।
ह्ण    गाय और बैल के मांस को ह्यसफेदाह्ण के सांकेतिक शब्द से सम्बोधित किया जाता है।

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