आपातकालीन काव्य: एक अनुशीलन’ का लोकार्पण
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‘आपातकाल की टीस
का रोचक प्रस्तुतिकरण
्रगत दिनों दिल्ली में इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती, दिल्ली के तत्त्वाधान में डॉ. अरुण कुमार भगत की हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘आपातकालीन काव्य: एक अनुशीलन’ का लोकार्पण हुआ। पुस्तक लोकार्पित की वरिष्ठ भाजपा नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने। उपस्थित साहित्य प्रेमियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोकतंत्र का अस्तित्व गत 60 वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। हमारा लोकतंत्र सजीव है। भारतीय संविधान में हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, किन्तु आपातकाल के दौरान 19 महीनों तक इस पर सेंसरशिप लगी रही। लोकतंत्र समाप्ति के कगार पर पहुंच गया था। श्री आडवाणी ने कहा कि आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में आम जनता ने सूझबूझ का परिचय दिया और कांग्रेस को सबक सिखाया। अब आगे कोई भी सरकार आपातकाल लगाने की भूल नहीं करेगी।
मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री मो. आरिफ बेग ने कहा कि हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा आपातकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। आपातकाल ने भारतीय समाज को समरस होने का अवसर उपलब्ध कराया था।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.के. कुठियाला ने समारोह की अध्यक्षता की। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि आपातकाल के दौरान पूरा समाज उठ खड़ा हुआ था। जेलों में बंद लोकतंत्र समर्थक सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच संवाद स्थापित हुआ जिससे समाज में उबाल उत्पन्न हुआ। भूमिगत आंदोलन में भी गुप्त रूप से निकलने वाली पत्र-पत्रिकाओं ने संवाद स्थापित किया। इसका परिणाम 1977 के चुनाव में सामने आया।
मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल ने आपातकाल में कम्युनिस्टों की भूमिका की आलोचना की। इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. देवेन्द्र आर्य ने कहा कि आपातकाल के सुधी अध्येता डॉ. अरुण कुमार भगत ने अपनी पुस्तक में तत्कालीन समस्त विद्रोहात्मक भावों को बहुत ही करीने से प्रस्तुत किया है।
इस अवसर पर पुस्तक के लेखक डॉ. भगत ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र के स्वर्णिम इतिहास में आपातकाल को काले अध्याय के रूप में देखा जा रहा है। उसमें सक्रिय अनेक साहित्यकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से आपातकालीन साहित्य की सर्जना की है। आपातकाल की पीड़ा, आतंक और टीस का आक्षरिक साक्ष्य इस पुस्तक के माध्यम से सर्वसुलभ हो गया है। प्रतिनिधि
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