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देश और प्रदेशों की सरकारों की यह जानी पहचानी आदत है कि देश के सर्वाेच्च न्यायालय और प्रांतों के उच्च न्यायालयों का जो निर्णय अपने अनुकूल रहता है उसकी दुहाई देकर ये सरकारें कितना भी जनता को कष्ट देने वाला कार्य हो, पूरा कर लेती हैं। पर जब वही निर्णय सरकार के हित में न हो अथवा समाज के जिस वर्ग के वोट पर इनकी विशेष नजर हो उनके हित के विरुद्घ कोई भी फैसला हो तो उसके लिए बहानेबाजी करती हैं। यथासंभव उस निर्णय को टलवाने के लिए अथवा आपराधिक विलंब करने के लिए कोई बहाना ढूंढती हैं। कानूनी दांव-पेंच लड़ाकर कार्य लंबित करने में अधिकतर सफल भी हो जाती हैं। दागी राजनेताओं को अथवा यूं कहिए जो किसी आपराधिक मामले में आरोपी हैं अथवा पुलिस की हिरासत में हैं, जेल की सजा काट रहे हैं उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का एक बड़ा ही ऐतिहासिक निर्णय देश की जनता को मिला। कहा यह भी जाने लगा कि संसद का निर्णय सर्वाेच्च है और सांसद ही देश के सर्वमान्य जनप्रतिनिधि हैं, चाहे वे संसद में आराजकता फैलाएं, कुर्सियां उठाकर एक-दूसरे पर मारें, घपले-घोटालों में फंस जाएं, पर उनकी सत्ता सर्वाेपरि है।
हाल में पंजाब के अमृतसर में एक सड़क चौड़ी करने के लिए सैकड़ों दुकानदार और परिवार उजाड़ दिए गए। पंजाब के सत्तापक्ष के सभी नेता और मंत्री एक ही दुहाई देते रहे कि दुकानदार सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा हार चुके हैं, निर्णय दुकानें, मकान गिराने के लिए सरकार के पक्ष में है, इसलिए कोई राहत जनता को नहीं दी जा सकती। यद्यपि देश के कानून में किराएदारों की सुरक्षा के लिए बड़े सख्त प्रावधान किए गए हैं, पर यहां यह भी कह दिया कि किराएदारों का कोई अधिकार नहीं। किराएदारों के अधिकारों पर, उनकी रोजी-रोटी पर, उनके घर-परिवार पर सरकारी आदेश से पुलिस की संगीनों के साये तले बुलडोजर चल गया। लोग चीखते-चिल्लाते रहे, पर उनकी तूती की आवाज सरकारी नक्कारखाने में दब गई। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद पूरे देश के साथ पंजाब में भी न तो लाल बत्ती पर नियंत्रण हो सका, न ही तथाकथित वीआईपी वाहनों से सायरन हटाए गए। कुछ दिन पूर्व ही सर्वोच्च न्यायालय ने लाल बत्ती और सायरन के दुरुपयोग पर गहरी नाराजगी जताई थी और केंद्र एवं राज्य सरकारों से दो टूक शब्दों में कहा कि इस बुराई को नियंत्रित करें। सुप्रीम कोर्ट ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही, वह यह थी कि पहले अपराधी रहे और अब राजनेता बने व्यक्तियों को जान का कोई भी खतरा नहीं है। आखिर उन्हें सुरक्षा क्यों दी गई? उनकी सुरक्षा को लेकर माननीय न्यायाधीश जी ने कड़ा ऐतराज व्यक्त किया। न्यायालय ने कहा कि सुरक्षा हैसियत का प्रतीक बन गई है, इसकी आवश्यकता तो सभी को नहीं होती। थोड़ा सा भी विश्लेषण किया जाए तो देश के सभी प्रांतों में ऐसे सैकड़ों तथाकथित नेता मिल जाएंगे जो कभी आतंकवादी थे, बड़े-बड़े अपराधों में संलिप्त थे और जब चुनाव जीतकर या सत्तापतियों की कृपा से नेता बन गए तो उनको वैसी सुरक्षा दी जाती है जो कभी उन आम आदमियों को नहीं मिली जो इन भूतपूर्व अपराधियों के हाथों सताए गए थे और आज भी इनसे त्रस्त हैं। पंजाब की जनता भली-भांति जानती है कि आज भी पंजाब सरकार में कुछ ऐसे व्यक्ति अति महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं जिन्हें कभी सुरक्षा बल दंड देने और सलाखों के पीछे बंद करने के लिए ढूंढते थे, आज वे उन्हीं सुरक्षा बलों से सैल्यूट लेते हैं।
आतंकवाद में लिप्त होकर निर्दाेषों की हत्या करने वाले दो चार लोग आज भी पंजाब में ऐसे हैं जिन्हें सर्वाेच्च न्यायालय ने फांसी की सजा दे रखी है, पर सरकारें उनको बचाने के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं। ऐसे प्रयास में उनको याद रखना चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के नाम पर निर्दाेष लोगों को तो उजाड़ दिया, पर दोषियों को दंड देने में इतना संकोच क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय के पिछले निर्णय के बाद सभी प्रांतीय सरकारों ने एक नोटिफिकेशन जारी करके यह तो बताया कि कौन-कौन अपनी गाड़ी पर लाल बत्ती लगा सकता है, पर अधिकतर प्रदेश सरकारों में इतनी हिम्मत नहीं कि पुलिस अथवा परिवहन अधिकारियों को यह आदेश दें कि इस निर्णय का उल्लंघन करने वालों के चालान किए जाएं। लक्ष्मीकांता चावला
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