|
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) पर विशेष
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जहां पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा है, वहीं कुछ सालों पहले ब्रिटेन से आकर भारत में बसे कुछ लोग भी हैं, जिन्होंने भारत में रहते हुए नाम कमाया। इनके दिल में तिरंगा बस गया है। अब भारत इनका और ये भारत के हो चुके हैं। ये रूप-रंग में आपको भले ही कुछ हटकर लगें-दिखें, पर ये अब सौ फीसदी भारतीय हैं। ब्रिटिश मूल का होने पर भी इन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया। भारतीय जीवन पद्घति को लगभग आत्मसात ही कर लिया।
ब्रिटिश काल के दौरान ब्रिटेन और यूरोप से तमाम लोग नौकरी या व्यापार करने के इरादे से भारत आते रहे। भारत को अंग्रेजी राज से मुक्ति मिली तो वे सामान बांध कर अपने वतन वापस जाने लगे। पर कई ऐसे भी थे जो यहां ही बस गए। उन्होंने जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई।
स्वाधीनता दिवस के पावन अवसर पर हमने बात की पांच ऐसे लोगों से जो हैं तो ब्रिटिश मूल के, लेकिन अब भारत उनको जान से प्यारा है। यहां हम उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश प्रकाशित कर रहे हैं। प्रस्तुति:- विवेक शुक्ला
हिन्दुस्थानियों की मेजबानी के क्या कहने
-रस्किन बांड
77, कहानीकार/लेखक
जब हिन्दुस्थानी पश्चिमी देशों और अमरीका में बस रहे थे तब आपने भारत को अपना घर बनाने का फैसला कैसे ले लिया?
मैंने कभी माना ही नहीं कि मैं हिन्दुस्थानी नहीं हूं। जब भारत आजाद हुआ तो यहां पर रहने वाले ब्रिटिश और यूरोप के नागरिकों ने इधर से जाना शुरू कर दिया। उस वक्त मेरी उम्र 12 साल थी । मैं भी अपनी मां के साथ इंग्लैंड लौट गया। लेकिन मेरे वहां पहुंचते ही मुझे देहरादून और मसूरी याद आने लगा। मेरे लिए ह्यहोम सिक्नेसह्ण वाली स्थिति पैदा हो गई। वहां मेरे लिए एक दिन भी रहना मुश्किल हो रहा था। खैर, कुछ साल बाद मेरी एक किताब को एक प्रकाशक ने छापा और मुझे 50 पाउंड दिए। मेरे लिए इतना पैसा काफी था वापस भारत आने के लिए। मैं समुद्री मार्ग से मुंबई के रास्ते भारत लौट आया।
आपको पिछले बीस सालों के दौरान भारत में किस तरह के बदलाव महसूस हुए?
बदलाव तो बहुत बड़े स्तर पर देखने में आ रहे हैं। साक्षरता साफतौर पर बढ़ी है। मध्यम वर्ग ने उन्नति की है। 1950 में मसूरी में गिनती की कारें थीं,अब पांच हजार से ज्यादा हैं। अब हिन्दुस्थानियों की अपेक्षाएं और आकांक्षाएं आसमान छू रही हैं।
भारतीय जीवन की कौन सी वे बातें थीं, जो आपको भारत से बाहर जाने के लिए रोकती रहीं?
यहां आपसी रिश्तों और एक दूसरे को लेकर स्नेह और सम्मान का जिस तरह का माहौल बनता है,उसे आप कहीं नहीं देखेंगे। हिन्दुस्थानी आपके मेजबान और मेहमान बनने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यह सब आपको पश्चिमी देशों में कतई नहीं मिलेगा।
भारत में अंग्रेजों का राज लंबे समय तक रहा। आपको क्या लगता है, ब्रिटिश राज का भारत में सबसे खास योगदान क्या रहा?
मैं मानता हूं कि अंग्रेजी शासन के चलते भारत में रेलवे नेटवर्क का ठीक-ठाक आधार तैयार हुआ। हालांकि उन्होंने रेलवे की स्थापना अपने हितों के लिए ही की थी।
आपने भारत में किसी तरह का भेदभाव महसूस किया?
मेरे से कहीं अधिक भेदभाव समाज के कई दूसरे तबके सहते हैं। इसलिए मेरे साथ भेदभाव की बात करना बेमानी ही होगा। मुझे याद नहीं पड़ता कि मेरे साथ कभी किसी स्तर पर भेदभाव हुआ हो।
भारतीय जीवन के किसी पहलू से कुंठा पैदा होती है?
सरकारी दफ्तरों में कामकाज की गति से बीच-बीच में कुंठा अवश्य होती है। बिजली विभाग और दूसरे सरकारी महकमों के कामकाज के नाकारा रवैये में सुधार हो सकता है। इस मोर्चे पर, हो सकता है कि यूरोप के देशों में हालात बेहतर हों। लेकिन ये इतनी बड़ी वजहें भी नहीं हैं, जिसके चलते आप पूरी तरह से कुंठित या निराश हो जाएं।
क्या आप पर कभी आपके ब्रिटेन में रहने वाले करीबियों ने वापस लौटने का दबाव बनाया?
पहले तो मेरे ऊपर दबाव रहता था कि मैं वापस आ जाऊं। तब मां भी वापस आने के लिए कहती थीं। फिर मां नहीं रहीं। उनके बाद तो मुझे वापस बुलाने की जिद्घ ठानने वाला भी कोई नहीं रहा।
भारतीय जीवन के और कौन से पहलू हैं, जो आपको बहुत प्रभावित करते हैं?
दरअसल बड़ा होने के चलते भारत में कुछ न कुछ रोचक घटनाक्रम चलता रहता है। किसी लेखक के लिए भारत जैसा शानदार देश आपको नहीं मिलेगा। यहां आपको नए-नए पात्र मिलते हैं। दरअसल वे कहानी और उपन्यास लिखने के लिए जरूरी पात्र होते हैं। मेरे जैसे लेखक के लिए यह बहुत ही सकारात्मक स्थिति है।
हिन्दी में पुल्लिंग-स्त्रीलिंग समझना मुश्किल है
-सर मार्क टुली
76, लेखक/पत्रकार
भारत को क्यों चुना बसने के लिए?
मैं मानता हूं कि मुझे भारत ने अपना बनाया। मैं इसे विधि का विधान ही मानता हूं। बीबीसी से मुझे भारत में क्या भेजा,मैं यहां का ही हो गया। बीबीसी से 1994 में रिटायर होने के बाद मैंने इधर ही रहने का निश्चय किया। दरअसल तब तक मेरे ऊपर भारत का रंग इतना चढ़ चुका था कि मेरे लिए इसे छोड़ना नामुमकिन था। इधर इतने दोस्त बन गए थे जिनके प्यार के चलते मेरे लिए वापस जाने का कोई मतलब ही नहीं रहा। अगर मैं चला भी जाता तो इनकी याद मुझे वापस यहां खींच लाती।
क्या ब्रिटिश राज से भारत को कुछ मिला?
भारत में नौकरशाही और न्यायतंत्र कमोबेश उसी तरह से चल रहा है,जैसे अंग्रेज छोड़कर गए थे। ये अहम पहलू थे ब्रिटिश राज के। रेलवे को भी कुछ लोग अंग्रेजी शासन के खास योगदान के रूप में देखते हैं। लेकिन, बड़ौदा में वहां के गायकवाड़ राज परिवार ने रेलवे नेटवर्क बिछा दिया था। इसलिए मैं मानता हूं कि ये सब भारतीय खुद भी कर सकते थे।
कितना बदला भारत बीते 15-20 वषोंर् के दौरान ?
अब मौसम का मिजाज बदल गया है। अगर आप दिल्ली की बात करें तो यहां का जाड़ा अब पहले की तरह से रूमानी नहीं रहा। गर्मी बहुत तीखी हो गई है। हर जगह भीड़ दिखती है। हां,नौकरी के अवसर बढ़े हैं।
ब्रिटिश राज के चलते हिन्दुस्थानी अंग्रेजी को बेहतर तरीके से जान सके। आपकी क्या राय है?
हो सकता है। लेकिन इस वजह से हिन्दुस्थानियों ने अपनी भाषाओं की अनदेखी की। हालांकि मैं यह भी मानता हूं कि आमतौर पर हिन्दुस्थानियों में विभिन्न भाषाओं को जानने की जबरदस्त क्षमता होती है। एक सामान्य हिन्दुस्थानी आराम से दो-तीन भाषाएं जानता ही है। यह कोई छोटी बात नहीं है।
आप हिन्दी मजे से बोल लेते हैं? क्या दिक्कत हुई थी हिन्दी सीखने में?
हिन्दी में स्त्रीलिंग-पुल्लिंग के भेद को समझना थोड़ा मुश्किल रहा। स्कूटर पुल्लिंग कैसे हो गया और मोटर साइकिल स्त्रीलिंग कैसे, यह अब भी समझ नहीं आया। लेकिन,मेरी हिन्दी सुनकर कोई हंसता नहीं है। इसलिए मैं कह सकता हूं कि मेरी हिन्दी बहुत खराब नहीं है। आपको बता दूं कि मैं हिन्दी का अखबार रोज पढ़ता हूं।
क्या आपने कभी भारत में भेदभाव,खासतौर पर रंगभेद को भी झेला?
कभी नहीं। मुझे यहां जिस तरह से लोगों ने अपने दिल में बिठाया-बसाया उससे मुझे लगता है कि मैं कोई खास इंसान हूं। जाहिर है, खास इंसान के साथ भेदभाव नहीं होता।
कभी ब्रिटेन लौटने का विचार आया?
ब्रिटेन वापसी का अब सवाल ही पैदा नहीं होता। वैसे, मेरी एक बहू और दामाद हिन्दुस्थानी ही हैं। इसलिए अब मुझे ब्रिटेन लौटने के लिए कौन कहेगा। हां, ब्रिटेन बीच-बीच में जाना रहता है।
भारत-इंगलैंड के बीच होने वाले क्रिकेट मैचों के दौरान आप किस पाले में होते हैं?
मैं तो टीम इंडिया के पाले में होता हूं।
किस भारतीय व्यक्तित्व ने आपको खासतौर पर प्रभावित किया?
निश्चित रूप से महात्मा गांधी ने। ऐसा अद्भुत व्यक्तित्व कुछ समय पहले तक मौजूद था, यह यकीन नहीं होता। गांधी जी को जितना पढ़ा, उनके प्रति मेरा सम्मान भाव उतना ही बढ़ता चला गया।
बतौर पत्रकार भारत में कौन-कौन सी घटनाएं आपके मन में जीवंत रहती हैं?
बहुत सी अहम घटनाओं को ह्यकवरह्ण करने का मौका मिला, जिन्होंने भारत को हमेशा के लिए बदला और झकझोरा। मुझे भोपाल गैस हादसा, आपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी हत्याकांड, उसके बाद दिल्ली में भड़के सिख विरोधी दंगे और बाबरी ढांचे के ढहने जैसी घटनाओं को ह्यकवरह्ण करने का मौका मिला।
भारत से जुड़ाव महसूस करता हूं
-जॉन शॉ
58, उपाध्यक्ष, बायोकान लिमिटेड
आप भारत में क्यों बस गए ?
बीस साल पहले मैं भारत अविवाहित आया था। इधर जीवनसाथी मिल गईं तो यहां का ही हो गया। अब मैं यहां खुश हूं। मेरे माता-पिता और दूसरे करीबी रिश्तेदार इधर आते रहते हैं। वे भी भारत से अब उसी तरह से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं,जैसा मैं करता हूं।
इस दौरान कितना बदला भारत?
आर्थिक उदारीकरण ने भारत को बदलना शुरू किया। उसके चलते विदेशियों के लिए भी यहां रहना आसान हो गया। अवसर बढ़ रहे हैं इसलिए विदेशी आ रहे हैं। मुझे खुद इधर आगे बढ़ने के तमाम मौके मिले। मैं तो मानता हूं कि अगर मैं ब्रिटेन में ही होता तो इतना कामयाब नहीं हो पाता।
ब्रिटिश राज से भारत को क्या मिला?
अंग्रेजी। मुझे लगता है कि ब्रिटिश राज से हिन्दुस्थानियों को अंग्रेजी सीखने का मौका मिल गया। इसके अलावा तो मैं यहां पर अंग्रेजी शासन का कोई खास योगदान नहीं देखता।
यहां पर कभी भेदभाव महसूस किया?
मैंने कभी भेदभाव महसूस नहीं किया।
हिन्दुस्थान के किस पहलू के आप प्रशंसक हैं?
हिन्दुस्थानियों की गर्मजोशी ने मुझे भारत का कायल बनाया। विपरीत हालातों में भी संघर्ष करने का हिन्दुस्थानियों का जज्बा गजब का है।
किस पहलू को देखकर आपको अच्छा नहीं लगता?
यहां के ह्यइन्फ्रास्ट्रक्चरह्ण को झेलना सच में किसी बाहरी व्यक्ति के लिए चुनौती होती है। हालांकि आर्थिक लचीलेपन के चलते हालात सुधरे हैं, पर सरकारी बाबू नहीं बदल रहे। इस कारण व्यापार करना भी चुनौती से कम नहीं है। भारत सरकार के लिए भी मैं यह कहना चाहता हूं कि उसमें इच्छाशक्ति की साफतौर पर कमी झलकती है।
जहां गया लोगों का प्यार और आदर मिला
-बैरी जॉन
67, रंगकर्मी/अभिनेता
भारत के क्यों हो गए आप?
दरअसल इसके पीछे एक बड़ी वजह मेरा भारतीय संस्कृति के प्रति झुकाव था। मुझे उपनिषद ने भी कहीं न कहीं अपनी तरफ खींचा था। पंडित रविशंकर के लंदन में 1966 में हुए कार्यक्रम को देखकर मैं भारत के और करीब आ गया। तब मैं भारत आने के बारे में गंभीरता से सोचने लगा था। ये 60 के दशक के बीच का दौर था। उन दिनों तक मैं अभिनय का ह्यकोर्सह्ण कर चुका था। संयोग से उसी दौरान मैंने ब्रिटेन के एक अखबार में छपा विज्ञापन पढ़ा। उसमें बेंगलुरू में चल रहे एक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने के लिए अध्यापक की मांग थी। मैंने भी अर्जी दी। मुझे नौकरी मिल गई। मैं बेंगलुरु आ गया। दो साल तक मैंने ह्यरीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंग्लिशह्ण में अध्यापन किया और आल इंडिया रेडियो के लिए प्रोग्राम किए। 1970 तक बेंगलुरु में रहा और फिर दिल्ली आ गया। दिल्ली आने के बाद अभिनय के कैरियर को नए सिरे से शुरू किया। दिल्ली में लंबी पारी खेलने के बाद बीते कुछ साल से मुंबई में हूं।
आपको भारत में चालीस साल से ज्यादा हो गए हैं। हाल के दौर में भारत कितना बदला?
पूरी दुनिया बदल गई है, तो भारत क्यों नहीं बदलता। भारत तो ज्यादा बदला है। यह आर्थिक शक्ति बन चुका है। लेकिन अभिनय और सिनेमा के लिहाज से कह सकता हूं कि अब पहले के मुकाबले सीखने के ज्यादा मौके हैं। नए-नए मिजाज की फिल्में बन रही हैं। सिनेमा का विस्तार हो रहा। टीवी ने उन तमाम लोगों को मौके भी खूब देने शुरू कर दिए हैं,जो अभिनय की दुनिया में कैरियर बनाना चाहते हैं ।
कभी कोई भेदभाव झेला?
बिल्कुल नहीं। मुझे लगता है कि औसत भारतीय बेहद दोस्ताना स्वभाव के होते हैं। उन्हें भी नए-नए दोस्त बनाना पसंद है। इसका फायदा मुझे भी खूब हुआ। मुझे भारत ने मेरी क्षमताओं से ज्यादा दिया। मैं जहां भी रहा,मुझे सब जगह लोगों का भरपूर प्रेम और आदर मिला।
कभी वापस ब्रिटेन लौटने का ख्याल आया?
अब वहां जाकर क्या करूंगा। सब कुछ तो यहां पर है। ब्रिटेन कहीं पीछे छूट गया है।
भारतीय जीवन की कौन सी बात सबसे ज्यादा पसंद है?
यहां विभिन्नता अद्भुत है। भारत जैसी अनेकता-विभिन्नता कहीं नहीं मिलेगी। आपको कुछ फासले में नए लोग, नई जुबान और नये व्यंजन मिलते हैं। आप लगातार सीखते हैं। मैं तो इसे देखकर न जाने कितनी बार अभिभूत हुआ हूं।
कौन सी बातें नापसंद हैं?
कमियां ढूंढने में मेरा यकीन नहीं है। इधर आया तो बसने का इरादा नहीं था। पर आने के बाद इससे दिल का रिश्ता हो गया। इसने भी भरपूर मोहब्बत दी। मेरा काम इसकी कमियां तलाशना नहीं है।
हिन्दी-उर्दू ने जोड़ा
भारत से
-गिलयिन राइट
56, हिन्दी/उर्दू अनुवादक
भारत से दिल कैसे मिल गया?
मैं हिन्दी और उर्दू की बदौलत भारत से जुड़ी। मेरी लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हिन्दी और उर्दू को लेकर दिलचस्पी पैदा हुई। इनका अध्ययन शुरू किया तो वह बदस्तूर जारी रहा। उसी दौरान मैंने महसूस किया भारत में रहकर ही इन दोनों जुबानों में बेहतर काम मुमकिन है। मैं 1977 में भारत आ गई। यहां पर राही मासूम रजा और श्रीलाल शुक्ल पर ठोस काम करना शुरू किया। इनके उपन्यास आधा गांव और राग दरबारी का अंग्रेजी में अनुवाद किया। बाद के वषोंर् में भीष्म साहनी की कहानियों का भी अनुवाद किया।
कितना बदला-बदला सा लगने लगा है भारत बीते कुछ दशकों में?
आधुनिकीकरण का नफा-नुकसान दिख रहा है। मैं जब दिल्ली आई थी तो सिर्फ साइकिल पर घूमती थी। सड़कों पर आराम से साइकिल चलाई जा सकती थी। अब वह बीते दौर की बातें हो गई हैं। दिल्ली में विकास ने हरियाली को रेगिस्तान में तब्दील कर दिया। परिंदे गायब हो रहे हैं। मुझे ऐसी बहुत सी चिडि़यां दिखाई नहीं देतीं, जो पहले दिखती थीं। परिंदों की बहुत सारी प्रजातियां ही खत्म हो गईं। यमुना किनारे जंगली खरगोश दिखते थे, वे अब नहीं दिखते। सकारात्मक स्तर से देखें तो अब पढ़ने और जानने की प्यास बढ़ी है। समाज का हर वर्ग अधिक से अधिक पढ़ने की चाहत रखने लगा है।
ब्रिटिश शासन से भारत को क्या खास मिला?
मुझे लगता है कि अंग्रेजी तो भारतीयों ने खूब मजे से सीख ली। उसका उन्हें फायदा भी हो रहा है। इसके अलावा अंग्रेजों से भारत को कुछ खास नहीं मिला।
क्या कभी आपको यहां भेदभाव का शिकार होना पड़ता है?
देखती हूं कि बहुत सारे एनआरआई जब किसी ऐतिहासिक स्मारक को देखने जाते हैं,तो उनसे उतने ही पैसे लिए जाते हैं, जितने हिन्दुस्थानियों से लिए जाते है। इसके विपरीत मुझे किसी विदेशी की तरह महंगा टिकट खरीदना पड़ता है, हालांकि मैं आयकर अदा करती हूं। मेरे बताने पर भी कि ह्यमैं हिन्दुस्थानी हूंह्ण,स्मारक में काम करने वाले मुझे महंगा टिकट ही थमाते हैं। आप चाहें तो इसे भेदभाव कह सकते हैं।
कभी ब्रिटेन लौटने का ख्याल आया?
शुरू में नहीं सोचा तो अब यहां इतना लंबा वक्त गुजारने के बाद वापस जाने का कोई मतलब ही नहीं है।
भारत के कौन से शहर आपको बहुत पसंद हैं?
मुझे तो अपनी दिल्ली बहुत अच्छी लगती है। बनारस के भी क्या कहने। इसके अलावा साहित्य,संस्कृति और सभी कुछ तो अच्छा है यहां का।
कोई पहलू जो आापको मायूस करता हो?
नदियों की बदहाली। यमुना को ही देख लीजिए। हमने इसका क्या हाल कर दिया है। मेरी तो इच्छा है कि यमुना और दूसरी नदियों को गंदगी से मुक्ति दिलाई जाए।
टिप्पणियाँ