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चन्दनपुर जंगल का निवासी चंदू बन्दर बेरोजगार था। पढ़-लिख कर बेचारा खाली बैठा था। कोई नौकरी नहीं मिली। दुखी और परेशान चंदू बन्दर जंगल छोड़कर शहर चला गया। वहां पर उसने नौकरी ढूंढी लेकिन उसके हाथ निराशा ही लगी। भटकते-भटकते उसे एक मिठाई की दुकान में छोटी सी नौकरी मिल गई। मिठाई की दुकान में चंदू बन्दर लगन और मेहनत से कार्य करने लगा। धीरे-धीरे वह मिठाई बनाने की कारीगिरी सीख गया और उसमें दक्षता भी हासिल कर ली। इसके बाद कुछ पैसा इकट्ठा करके चंदू बन्दर जंगल वापस आ गया।
जंगल में चंदू ने मिठाई की एक छोटी सी अपनी दुकान खोली। स्वादिष्ट तथा आकर्षक मिठाइयों के कारण वह जल्द ही सारे जंगल में मशहूर हो गया। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि शुद्धता उसकी विशेष पहचान बन गई थी। उसकी शुद्ध और स्वादिष्ट मिठाइयों के सारे जंगलवासी दीवाने हो गए। अच्छी आमदनी के कारण चंदू बन्दर धनी बन गया। उसने मिठाई की छोटी सी दुकान को शानदार तथा बड़ी दुकान में बदल दिया।
शुद्ध मिठाइयों के कारण चंदू की अच्छी साख बन गई थी। अब उसका मिठाइयों का काम भी काफी बढ़ गया था। किसी भी पार्टी में अगर चंदू की मिठाइयां न हों तो वह पार्टी अधूरी ही मानी जाती। हर उत्सव हर कार्यक्रम में चंदू बन्दर की शुद्ध व स्वादिष्ट मिठाइयां शोभा बढ़ाती थीं। धीरे-धीरे चंदू के मन में लालच पनपने लगा। अधिक पैसा कमाने के लिए उसने मिठाइयों में मिलावट करना शुरू कर दिया। वह खराब दूध और नकली खोए का इस्तेमाल करने लगा। अनेक जंगलवासियों को मिठाइयों से नुकसान हुआ। स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ा लेकिन चंदू की मिठाइयों पर किसी को भी शक न हुआ। आखिर होता भी तो कैसे? वह सारे जंगल का विश्वास जीत चुका था।
चन्दनपुर जंगल के राजा वीरू शेर का इन्हीं दिनों नया राजमहल बनकर तैयार हुआ। राजमहल बड़ा ही सुन्दर और भव्य था। राजा शेर महल देखकर बहुत ही खुश हुआ। इस मौके पर वीरू शेर ने सारे जंगल को दावत दी। दावत में चंदू बन्दर की मिठाइयां विशेष पकवानों के रूप में थीं। चंदू की मिठाइयां देखकर सबके मुंह में पानी आ गया और सारे जंगलवासी मिठाइयों पर टूट पड़े। मजे की बात तो यह रही अन्य पकवानों को किसी ने हाथ भी न लगाया। सारे पकवान रखे रह गए। चंदू की तो पांचों अंगुलियां घी में थीं। राजा की तरफ से उसे खूब धन दिया गया था। चंदू फूला नहीं समा रहा था।
लेकिन समय का फेर किसी ने नहीं देखा। अगले दिन सारा जंगल बीमार पड़ गया। बात साफ थी चंदू की मिठाइयों को छोड़कर दावत में किसी ने कुछ भी नहीं खाया था। वीरू शेर ने विशेषज्ञों से चंदू की मिठाइयों की जांच करवाई। जांच के परिणाम हैरान करने वाले थे। सारी मिठाइयां नकली खोए और दूध की बनी थी। जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही नुकसानदायक थीं। वीरू शेर क्रोधित हो उठा। उसने चंदू बन्दर को शहर में किसी मदारी के पास छोड़ जाने की सजा सुनाई। चंदू को काटो तो खून नहीं। वह मदारी का नाम सुनकर कांप उठा क्योंकि वह मदारियों से बहुत डरता था।
चंदू वीरू के पैरों में गिर पड़ा और गिड़गिड़ाने लगा अपने किए पर पछताते हुए क्षमा मांगने लगा। वीरू को चंदू पर दया आ गई। उसने चंदू बन्दर की सजा कम करते हुए चंदू के अब तक कमाए धन से ही सारे जंगलवासियों का इलाज करवाया। चंदू का गलत तरीकों से कमाया हुआ धन जा चुका था। वह बहुत दु:खी था। उसने आगे से लालच न करने तथा नीति पूर्वक ही धन अर्जित करने का संकल्प लिया।
चंदू ने छोटी सी मिठाई की एक दुकान फिर खोली। वह सबसे कहता कि मैं अब शुद्ध मिठाई ही बेचता हूं। उसने एक बोर्ड भी लगाया जिसमें लिखा था शुद्ध मिठाइयों की दुकान लेकिन हैरानी की बात थी कि कोई उसकी दुकान पर नहीं जाता था। बना हुआ विश्वास एक बार टूट जाए तो दोबारा नहीं बनता।
आशीष शुक्ला
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