भारत में रहने वाला हर मतावलम्बी हिन्दू
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देशभर के गांवों में पदयात्रा कर रहे संत का भीलवाड़ा में प्रवास
राष्टÑवादी बहुसंख्यक मुसलमानों को सामने आने का आह्वान
अंग्रेजी शिक्षा कुसंस्कृति की पोषक
समाज में हर जगह घुसने पर राजनीति ने किया बंटाधार
गाय को त्यागने वाला भी पाप का भागी
एक वर्ष पूर्व (9 अगस्त, 2012) कन्याकुमारी से प्रारंभ हुई सन्त सीताराम की ‘भारत परिक्रमा पदयात्रा’ इन दिनों राजस्थान में हो रही है। गत 9 अगस्त को भीलवाड़ा के बदनोर में देशभर में ग्राम स्वराज की स्थापना और भाईचारे का संदेश देने के उद्देश्य से गांव-गांव पद यात्रा कर रहे संत सीताराम ने कहा कि इस देश में रहने वाला हर व्यक्ति हिन्दू है। चाहे वह किसी भी मत या परम्परा को निभाने वाला हो। वह चाहे शिव की पूजा करता हो या मस्जिद में नमाज पढ़ता हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
बदनोर के आदर्श विद्या मंदिर उच्च माध्यमिक विद्यालय में ईद के शुभअवसर पर मुस्लिम मतावलम्बियों को संबोधित करते हुए संत सीताराम ने कहा कि जब कोई मुसलमान भाई मक्का मदीना जाता है तो उसे हिन्दू मुसलमान कहकर सम्बोधित किया जाता है। मक्का-मदीना में जो वेशभूषा पहनने के लिए दी जाती है वह भारत के दक्षिण के मंदिरों में यह परम्परा सदियों से प्रचलित है। जिस तरह से सजदा किया जाता है तमिलनाडु के मंदिरों में भी ऐसे ही पूजा की जाती है। कहीं कोई फर्क नहीं है। सबकुछ मिलता-जुलता है।
उन्होंने कहा कि इस्लाम का अर्थ ही शांति है। उन्होंने कहा कि वे केरल व अन्य कई राज्यों में मुसलमान भाइयों से मिले। सबने एकसुर में उग्रवाद की भर्त्सना की। उनका कहना था कि कुछ गिने-चुने लोग पूरी कौम को बदनाम करने में लगे हुए हैं। उन्होंने मुस्लिम भाइयों से अपील की कि वे सामने आकर इन गिने-चुने लोगों की कड़े शब्दों में भर्त्सना करें। जब अच्छे मुसलमान भाई एकसाथ खड़े होंगे तो ये कुछ लोग अपने आप ही पीछे हट जाएंगे। राष्टÑीय मुस्लिम मंच नाम से एक ऐसा ही संगठन है जो इस दिशा में कार्य कर रहा है। इसकी अब तक 25 राज्यों में कमेटियां स्थापित हो चुकी हैं।
अब तक केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्टÑ, गोवा, गुजरात राज्यों के अनेक गांवों की पैदल यात्रा करने के बाद 3 जुलाई को राजस्थान में प्रवेश करने वाले 64 वर्षीय संत सीताराम ने कहा कि जिस तरह प्रकृति में हर जीव, जन्तु, पत्थर, पानी, पेड़ आदि को अलग-अलग बनाया गया है। और वे सब मिल-जुलकर आनन्दमय होकर जीते हैं उसी तरह मानव मात्र को भी अपने बाह्य स्वरूप को ध्यान ना देते हुए सबके भीतर एक ही मालिक के ज्ञान को स्वीकार करते हुए शांतिमय जीवन जीना चाहिए।
संत सीताराम ने बाद में विद्यालय परिसर में ही पत्रकारों के सवालों का जवाब देते कहा कि आर्थिक मंदी को भुगतने के बाद दुनिया के आर्थिक विशेषज्ञ अब मान रहे हैं कि भारत की वस्तु विनिमय आधारित प्राचीन अर्थव्यवस्था ही दुनिया को मंदी से उबार सकती है साथ ही ऐसे झटके भविष्य में ना लगें इसका उपाय भी कर सकती है।
ग्राम स्वावलम्बन ही उपाय
उन्होंने कहा कि गांवों के स्वावलंबी बनने में ही देश का भला है। उन्होंने कहा कि पहले गांव में ही स्वरोजगार के सारे माध्यम उपलब्ध होते थे। लुहार, बढ़ई, नाई, सुथार, सुनार, कुम्हार, किसान, शिक्षक, वैद्य सब अपना-अपना कार्य करते थे। और एक-दूसरे का सहयोग करते थे। किसी को शहर की ओर पलायन की जरूरत ही नहीं होती थी। लेकिन इस अंग्रेजी शिक्षा पद्घति ने स्वावलम्बन की प्रक्रिया का नाश कर हमें गुलामी की ओर धकेल दिया है।
अंग्रेजी शिक्षा पद्घति विनाशकारी
पूर्व में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक रहे संत सीताराम ने कहा कि अंग्रेजी शिक्षा पद्घति ने देश का बहुत बड़ा नुकसान किया है। अंग्रेजी शिक्षा पद्घति व्यक्ति को मानव नहीं बल्कि दूसरे व्यक्ति का शोषण करने वाला बनाती है। वह व्यक्ति को पैसा बनाने वाली मशीन के रूप में तैयार करती है। और बताती है कि वह दुनिया में पैसे से हर चीज को खरीद सकता है। उन्होंने कहा कि अंग्रेज तो चले गए लेकिन हमने अंग्रेजों को नहीं छोड़ा। अंग्रेजों की भाषा, पहनावा और व्यवहार ही हमारा विनाश का कारण बन रहा है।
जिसने गाय को त्याजा वो भी हत्यारा
संत सीताराम ने कहा कि गाय की सबसे पहले हत्या वो करता है जो उसका त्याग करता है। उसे सड़कों पर मरने के लिए छोड़ देता है। उन्होंने कहा कि लोग गऊ माता का त्याग नहीं करेंगे, तो अपने आप ही गायों का संरक्षण हो जाएगा।
राजनीति ने किया बंटाधार
संत सीताराम ने कहा कि समाज के हर क्षेत्र में राजनीति के घुस आने से पूरे तंत्र का बंटाधार हो गया है। यही समाज के पतन का मूल कारण है।
तड़के 2़.30 बजे – उठना।
तड़के 2.30 – 3.30 बजे तक दैनिक क्रियाओं से निवृत्ति एवं स्नान।
सुबह 3.30 -5.30 बजे तक व्यायाम, प्रणायाम और ध्यान।
सुबह 5.30 – 5.45 बजे तक एकात्मता स्त्रोत,एकता मंत्र और प्रार्थना।
सुबह 5.45 – 6.00 बजे तक गौपूजा।
सुबह 6.00 – 9.00 बजे तक दूध का सेवन करने के बाद अगले गांव तक पैदल यात्रा।
सुबह 9.00 – दोपहर 1.00 बजे तक गांव प्रवास के दौरान पूर्व सैनिकों से मुलाकात, पौधारोपण, स्कूली बच्चों को पर्यावरण, जैविक कृषि, गौरक्षा, एकता आदि का संदेश देना।
दोपहर 1.00 – 3.00 बजे तक भिक्षा मांगकर अन्न ग्रहण करना और अल्प विश्राम।
अपराह्न 3.00 – 5.00 बजे तक गांव के परम्परागत पेशे से जुड़े लोगों से मिलना। रोगियों की सेवा करना।
शाम 5.00 – 7.00 बजे तक गांव के सभी वर्गों के साथ मिलकर सभा करना।
रात 9 बजे सोने के लिए चले जाना।
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