न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी
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न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी

by
Aug 17, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 Aug 2013 16:51:57

पता नहीं मेरे मित्र गुप्ताजी कहाँ से इतनी दूर की कौड़ी लाते हैं। आज चर्चा होने लगीभारतीय थल सेना में  पर्वतीय युद्घ के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित चौथी आक्रामक ‘कोर’ की स्थापना  वाली योजना की ़ अगले सात सालों में चौसठ हजार करोड़ रुपयों के खर्चे से बनी इस ‘कोर’ को चीन के साथ लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नियुक्त होना था। पर चीन के साथ सम्बन्ध और न बिगड़ जाएँ इस आशंका से बाद में सफाई दी गयी कि यह अन्यत्र नियुक्त होगी और इसका मुख्यालय बंगाल में पानागढ़ में होगा।
गुप्ताजी ने सदा की तरह इस खबर के पीछे की असलियत भी ढूंढ निकाली बताया कि इस नयी कोर के सैनिकों को हाथ पीठ पर पीछे बाँधकर युद्घ में जाने का विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा ़बोले ‘लद्दाख में चीनियों का सामना करने के लिए गठन होता तो मुख्यालय पश्चिम बंगाल में क्यूँ रखते? असल में पश्चिम बंगाल की पुलिस ,पीछे पीठ पर हाथ बांधकर कानून और व्यवस्था संभालती है चाहे मार्क्सवादी सरकार रहे चाहे तृणमूली। अत: बंगाल पुलिस के अधिकारी ही इस कोर का प्रशिक्षण करेंगे फिर इसे कश्मीर में इस नए ढंग की अहिंसात्मक लड़ाई के लिये भेजा जाएगा। मैंने कहा पर वहाँ के आतंकवादी ऐसी सेना देखकर किम्कर्तव्यविमूढ़ हो जायेंगे। कहीं वे इस सेना से भिड़े ही नहीं तो सारी ट्रेनिंग व्यर्थ जायेगी।’ वे बोले,‘तभी तो इनकी कश्मीर में नियुक्ति से पहले सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर ऐक्ट) हटाया जा चुकेगा ,ताकि आतंकवादियों को ऐसे बलि के बकरों को देखने की आदत पढ़ चुकी हो़,मैंने कहा ‘इससे कश्मीर से निर्वासित लाखों कश्मीरी पंडितों को बहुत दु:ख होगा’ वे बोले ‘तुमने कभी एक बलि के बकरे को अन्य बलि के बकरों के लिये मिमियाते सुना है?’ मैंने कहा ‘पर ऐसा करने से तो कश्मीर भारत से टूटकर अलग हो जाएगा। वे बोले ‘कश्मीर समस्या को सुलझाने का इससे अच्छा तरीका क्या  होगा? न रहेगा बांस ,न बजेगी बांसुरी!’
‘पर कश्मीर समस्या सुलझाने के बाद इन सैनिकों का क्या करेंगे? क्या इस कोर का विघटन कर दिया जाएगा?’ मैंने चिंतित होकर पूछा ग़ुप्ता जी मुस्करा कर बोले , ‘कैसी बातें करते हो ़ऐसा हुआ तो सरकार के पीछे सी ऐ जी नहीं पड जाएगा ़माना कि विनोद राय गए .अगला सी ऐ जी, जो रक्षा मंत्रालय का सचिव रह चुका है, चौसठ हजार करोड़ रूपये के खर्च से बनी इस कोर को विघटित (डिसबैंड)थोड़े ही होने देगा।
मैंने पूछा ‘फिर कहाँ भेजेंगे इन हाथ बंधुआ हथियार विहीन सैनिकों को ’ गुप्ता जी मुस्कराते हुए बोले ‘अरसे से नक्सलवादी और उनके हितचिन्तक मानवाधिकारी ऐसे ही सैनिकों को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भेजने की मांग कर रहे हैं ़सिर्फ उनसे ही नहीं,चीन,पाकिस्तान आदि जिन जिन विदेशी ताकतों से उन्हें ऐ के 56 से लेकर भयंकर बारूदी सुरंगें,हेलीकाप्टर मार गिराने में सक्षम रॉकेट और रॉकेटलौन्चर आदि मिलते हैं उन सब देशों से भी भारत के संबंधों में  अभूतपूर्व सुधार हो जाएगा
मैंने कहा ‘भारत के इतने बड़े भूभाग में माओवादियों की तूती पहले से ही बोल रही है आपका कयास सच निकला तो भारत का इतना बड़ा हिस्सा टूट कर अलग हो जाएगा।’
गुप्ता जी गद्गद् होकर बोले  अब जाकर समझे कि यहाँ भी वही फार्मूला फिट बैठेगा- न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ़यह भूभाग भी भारत से अलग कर दो फिर बाकियों के लिए तो अमन चौन ही बचेगा न ?़
मैंने पूछा  गुरुदेव! सारी समस्याएं  इसी तरह सुलझाने के बाद इतनी बड़ी ‘हाथबंधुआ’ सेना को बैठाकर खिलाने का आर्थिक बोझ सरकार कैसे उठायेगी? यदि उन्हें वापस घर भेजा गया तो पेंशन का बोझ भी कम नहीं होगा़
गुप्ता जी बोले ‘तुम भी पूरे चपरकनाती हो ़अरे फौजियों के पेंशन के मामले निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सब जगह हारते और अपील करते हुए सरकार बीसों साल तो चुटकियों में निकाल देती है। फिर पूरी पेंशन तो जीवित फौजी को मिलती है ़विधवा को तो आधी ही देनी पड़ेगी।’
मैं चकित था ़पूछा ‘इतने सारे सैनिक मर जायेंगे? केवल विधवाएं ही बचेंगी? वो कैसे?’
गुप्ता जी बोले अरे कश्मीर और नक्सल समस्या सुलझाने के बाद उन्हें स्कूलों में मध्यान्ह भोजन चखने की ड्यूटी पर लगा दिया जाएगा। एक बार फिर, न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी!  अरुणेन्द्र नाथ वर्मा

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