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सार्थक मुद्दों के अभाव में भारतीय राजनीति में किस तरह राई का पहले पहाड़ बनाया जाता है और फिर किस तरह उस पहाड़ पर राजनीति होती है उसका ताजा उदाहरण है गुजरात के कच्छ इलाके में किसानों का वह मामला जो आज देश के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। चिंता की बात है कि देश के अल्पसंख्यक आयोग ने पूरे मामले की जांच किए बिना ही इसे ‘अल्पसंख्यकों के हितों पर कुठाराघात’ की संज्ञा दे दी और जड़ दिया गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सांप्रदायिकता का आरोप।
पंजाब की राजनीति में गुजरात के किसानों के काल्पनिक विस्थापन की गूंज सुनाई दे रही है जिसकी धमक अब प्रधानमंत्री दरबार तक भी पहुंच चुकी है। 1965 में भारत पाकिस्तान युद्घ के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने कच्छ के इलाके को आबाद करने की योजना बनाई ताकि यहां से दुश्मन की घुसपैठ से निपटा जा सके और कृषि उत्पादन को भी बढ़ाया जा सके। गुजरात का राजस्व रिकार्ड बताता है कि देश भर से लगभग 800 किसानों, जिनमें पंजाब के 30 किसान भी शामिल थे, ने वहां जमीनें खरीदीं और कृषि शुरू कर दी। स्थानीय किसानों ने जब इसका विरोध किया तो 4 अप्रैल, 1973 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री घनश्याम भाई ओझा ने परिपत्र जारी करके बाहरी किसानों के जमीन खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया। परिपत्र में यह व्यवस्था की गई कि अगर बाहरी राज्य का किसान कृषि के लिए जमीन खरीदेगा तो वह खेतीहर माना जाएगा और उन्हें स्थानीय किसानों को मिलने वाला लाभ नहीं मिलेगा। कच्छ इलाके के जिला प्रशासन ने इन 800 किसानों की जमीन संबंधी दस्तावेज तलब किए हैं ताकि इनके अतिरिक्त कोई व्यक्ति गुजरात में कृषि योग्य जमीन न खरीद सके। गुजरात सरकार इस संबंध में उच्च न्यायालय में मामला हार चुकी है और अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है, जिस पर 27 अगस्त को सुनवाई होनी है।
एक सामान्य प्रशासनिक कारवाई को अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य श्री अजायब सिंह की नादानी के चलते इसे अल्पसंख्यक दमन का मामला बना दिया गया है जिसे कांग्रेस पार्टी ने हाथों हाथ लिया है। कांग्रेस के पंजाब प्रांत के अध्यक्ष श्री प्रताप सिंह बाजवा के अनुसार, इस कदम से ‘नरेंद्र मोदी अल्पसंख्यक विरोधी’ दिखते है। श्री बाजवा पंजाब के सांसदों को लेकर पार्टी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह से मिल चुके हैं। प्रधानमंत्री ने कैबिनेट मंत्री श्री कपिल सिब्बल को निर्देश दिए हैं कि पीड़ित किसानों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध करवाई जाए। इससे पूर्व सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो की सदस्या श्रीमती वृंदा करात अपने चिरपरिचित अंदाज में इस मामले को अल्पसंख्यक दमन का विषय बता चुकी हैं और इसके लिए श्री मोदी को दोषी ठहरा चुकी है।
दूसरी ओर राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पूरे मामले को भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह व गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सम्मुख उठाने की बात कही है और पंजाब सरकार की ओर से किसानों के पक्ष में केस लड़ने की घोषणा की है। उपमुख्यमंत्री श्री सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि अकाली दल बादल किसानों का हितैषी रहा है और देश के किसी भी हिस्से में किसानों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के प्रांतीय अध्यक्ष श्री कमल शर्मा ने कहा है कि इसको लेकर उनकी गुजरात के मुख्यमंत्री से बात हो चुकी है और उन्होंने किसानों के विस्थापन की आशंका को निर्मूल बताया है। पूरे प्रकरण की जिम्मेवार स्वयं कांग्रेस पार्टी है क्योंकि श्री घनश्यामभाई ओझा के कार्यकाल में जारी हुए परिपत्र के अनुसार वर्तमान कारवाई हुई है। वास्तव में पूरा मामला गुजरात के बाहर से आए 800 के करीब किसानों से जुड़ा है, जिसमें 30 सिख किसान शामिल हैं। सिख किसानों को अल्पसंख्यक होने के कारण लक्ष्य नहीं बनाया जा रहा परंतु अल्पसंख्यक आयोग की नादानी व कांग्रेस पार्टी में मोदी से भय के चलते पूरे प्रकरण को और ही रंगत दे दी गई है।
ल्ल राकेश सैन
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