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शोधपरक ऐतिहासिक ग्रंथ

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Aug 17, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 Aug 2013 16:40:40

 

सुपरिचित इतिहासकार कुंज बिहारी जालान अनेक शोधपरक महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना कर चुके हैं। अन्य इतिहासकारों से अलग कुंज बिहारी जी की एक बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने पौराणिक और मिथकीय चरित्रों पर आधारित कई ग्रंथों की रचना की है। इन ग्रंथों की भी उन्होंने केवल किंवदंती या सुनी-सुनाई बातों पर ही आधारित होकर रचना नहीं की बल्कि यथासंभव प्रमाण भी दिए हैं। इसी क्रम में कुछ समय पूर्व उनके द्वारा रचित नया शोधपरक ग्रंथ ‘कलिकालीन भारत' प्रकाशित होकर आया है। इस पुस्तक में महाभारत के बाद राजा परीक्षित से लेकर सम्राट हर्षवर्धन तक के इतिहास को अनेक उद्धरणों और प्रमाणों के आलोक में लिपिबद्ध किया गया है। पुस्तक के प्रथम अध्याय ‘ऋषियों का इतिहास’ में मत्स्य पुराण के उद्धरणों में ब्रह्मपुत्र ऋषि मृगु से प्रारंभ हुए विभिन्न ऋषि वंशों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
अगले अध्याय ‘अयोध्या का राज’ में लेखक ने तक्षक के पुत्र वृहद्वल की वंशावली का वर्णन भागवत पुराण और विष्णु पुराण के अनुसार किया है। हालांकि इस अध्याय में अन्य अध्यायों की तरह प्रत्येक व्यक्ति के बारे में विस्तार से नहीं बताया गया है। ‘हस्तिनापुर का राज्य’ शीर्षक अध्याय में राजा परीक्षित से लेकर राजा जनमेजय, नागवंश,शतानीक तक का वर्णन किया गया है । ‘इंद्रप्रस्थ के राजवंश’ शीर्षक अध्याय में यह बताया गया है कि युधिष्ठिर से लेकर क्षेमक तक 30 पीढ़ी के राजाओं ने इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) में 1770 वर्ष 11 महीने और 10 दिन तक राज्य किया। इसके प्रमाण के लिए लेखक ने डॉ. ‘विश्व सभ्यता का विकास भाग -1’ पुस्तक का संदर्भ लिया है। इसके बाद अनेक प्रमाणों के जरिए विश्रवा से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक वे इंद्रप्रस्थ पर राज्य किए जाने का वर्णन किया गया है। इस अध्याय के अंत में लेखक ने ब्रजकिशन चांदीवाला की पुस्तक ‘दिल्ली की खोज’ से यह भी उद्धृत किया है कि पृथ्वीराज के बाद कितने वर्षों तक मुस्लिम और अंग्रेजों का राज्य रहा। लेकिन इस पुस्तक और सत्यार्थ प्रकाश के प्रमाणों के बीच मौजूद असमानता के बारे में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार लेखक ने पाठक पर छोड़ दिया है।
इस पुस्तक का अठारहवां अध्याय ‘आठ यवन: 87 या 80 वर्ष’ में लेखक ने देशी विदेशी लेखकों के प्रमाणों के आधार पर यह दर्शाया है कि विदेशी आक्रमणकारी सिकंदर, चंद्रगुप्त मौर्य के शासन में आया ही नहीं था। बल्कि वह 1180 वर्ष बाद चंद्रगुप्त या चंद्रकेतु नामक राजा के समय आया। जो सिंधु के चारों ओर का राजा था, पाटलीपुत्र का नहीं। लेखक की यह मान्यता निश्चित ही नए तरीके से इतिहास के अध्याय को परखने को विवश करती है। पुस्तक के आरंभिक कुछ अध्यायों को छोड़ दिया जाए तो लेखक ने बाद के अध्यायों में सभी प्रमुख शासकों की राजव्यवस्था, सामाजिक स्थिति, दंड विधान, उपलब्धियों और विश्ोषताओं के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। लेखक ने कोई भी निष्कर्ष अपने मन से या बलपूर्वक थोपने का प्रयास नहीं किया है। उनके अधिकांश निष्कर्ष प्रमाणों पर आधारित हैं। अपनी हर बात को संदर्र्भ ग्रंथ के साथ लेखक ने प्रमाणित किया है। यह पुस्तक इतिहास के शोधार्थियों के लिए बहुत मूल्यवान हो सकती है।
पुस्तक का नाम – कलिकालीन भारत
लेखक – कुंज बिहारी जालान
प्रकाशक – आकांक्षा प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ठ – 400
मूल्य – 600 रु0 (सजिल्द) और    250 रु0 (पेपर बैक)

 

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