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वैश्विक संदर्भ में

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Aug 3, 2013, 12:00 am IST
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श्रीमद्भगवद्गीता भारत का राष्ट्रीय ग्रन्थ घोषित हो

दिंनाक: 03 Aug 2013 15:12:41

 

श्रीमद्भगवद्गीता 700 श्लोकों का एक दिव्य ग्रन्थ है। यह एक अमूल्य चिन्तामणि रत्न, साहित्य सागर में अमृत कुम्भ और विचारों के उद्यान में कल्पतरू तथा सत्यपथ का एक अद्भुत ज्योतिस्तम्भ है। इसमें वेद का मर्म, उपनिषद का सार, महाभारत का नवनीत तथा सांख्य, पतञ्जलि और वेदान्त का समन्वय है। यह एक ऐसा दिव्य फल है जिसके चखने से जीवन मुक्त होता है। यह एक ऐसा दिव्य संगीत है, जिसकी स्वर लहरी से मानव में श्रेष्ठतम गुणों की अभिवृद्धि होती है। एक ऐसा आध्यात्मिक शास्त्र है जिसमें नर से नारायण बन सकता है। अत: यह एक शाश्वत ग्रन्थ, अमृत घटक तथा संजीवनी बूटी है जो श्री कृष्ण ने अपने शिष्य अर्जुन को दी। यह ग्रन्थ सहज भाव से ºÉiÉ+ÊSÉiÉ++ÉxÉxnù की अनुभूति तथा सत्यं शिवम् सुन्दरम् की अभिव्यक्ति करता है। श्रीमद्भगवद् गीता भारत राष्ट्र की आत्मा है। विश्व में भारत की पहचान है। यह ऐसा भारतीय तत्वज्ञान है जिसे विश्व को उस समय दिया गया जब न किसी को बाइबिल (ओल्ड अथवा न्यू) का ज्ञान था और न कुरान का।

यदि इस दिव्य ग्रन्थ को विश्व के सन्दर्भ में ले तो शायद ही कोई श्रेष्ठ दार्शनिक होगा जिसने इस ग्रन्थ का अवगाहन करके अपने व्यक्तिगत तथा समाज एवं राष्ट्र जीवन में चेतना न पैदा की हो। न केवल भारत, अपितु विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, विचारकों, चिंतकों तथा संतों ने इसकी मुक्तकंठ से स्तुति की, अभिनन्दन किया।

यूरोप को गीता का प्रथम परिचय ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक के आदेश से कम्पनी के एक कर्मचारी चार्ल्स विलिकन्स (1749-1836) ने 1776 में इसका अंग्रेजी में अनुवाद करके दिया। यह ग्रंथ यूरोप के 'तर्क युग' का प्रेरक बना। इसकी दिव्य ज्योति से समस्त यूरोप तथा अमरीका चकाचौंध हो गया। जिस भांति सर विलियम जोन्स (1746-1794) ने मनु स्मृति का अनुवाद कम्पनी की कानून-व्यवस्था को दृढ़ करवाने के लिए करवाया था, उसी भांति कम्पनी की प्रशासन व्यवस्था को मजबूत करने तथा भारत को समझने के लिए तत्कालीन अंग्रेज गर्वनर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने इस ग्रन्थ की भूमिका में लिखा, 'गीता का उपदेश किसी भी जाति को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने में अद्वितीय है।' साथ ही उन्होंने इसे 'मानवता की उन्नति' के लिए आवश्यक तथा 'एक महान मौलिक ग्रन्थ' बतलाया (देखें, बी.एन.पुरी 'एन्सेट' इंडियन हिस्ट्रोग्रेफी-ए.बाई सेन्चुरी स्टडी,' दिल्ली 1994 पृ. 41) फ्रेंच विद्वान डुपरो ने 1778 में इसका फ्रांसीसी में अनुवाद किया तथा इसे 'भोगवाद से पीड़ित पश्चिम की आत्मा को अत्यधिक शांति देने वाला' बताया। जर्मन के दार्शनिक श्लेगल ने आत्मविभोर होकर माना, 'यूरोप का सर्वोच्च दर्शन, उसका बौद्धिक अध्यात्मवाद जो यूनानी दार्शनिकों से प्रारम्भ हुआ, प्राच्य अध्यात्मवाद के अनन्त प्रकाश एवं प्रखर तेज के सम्मुख ऐसा प्रतीत होता है जैसे अध्यात्म के प्रखर सूर्य के दिव्य प्रकाश के भरपूर वेग के सम्मुख एक मंद-सी चिंगारी हो, जो धीरे-धीरे टिमटिमा रही है और किसी भी समय बुझ सकती है।' इटली का मैजिनी अत्यधिक प्रभावित हुआ, इंग्लैण्ड का संत कार्लायल स्तम्भित हुआ।

अमरीका के प्रसिद्ध दार्शनिक विल डयून्ट, हेनरी डेविड थोरो (1813-1862), इमर्सन से लेकर वैज्ञानिक राबर्ट ओपन हीमर तक सभी गीता ज्ञान से आलोकित हुए। थोरो स्वयं बोस्टन से 20 किलोमीटर दूर बीहड़ वन में, वाल्डेन में एक आश्रम में बैठकर गीता अध्ययन करते थे। इमर्सन एक पादरी थे, जो चर्च में बाइबिल का पाठ करते थे। परन्तु रविवार को उन्होंने चर्च में गीता का पाठ प्रारम्भ कर दिया था। अत्याधिक विरोध होने पर उन्होंने गीता को 'यूनिवर्सल बाइबिल' कहा था। उसने गीता का अनुवाद भी किया था। वैज्ञानिक राबर्ट ओपनहाबर ने 16 जुलाई, 1945 को अमरीका के न्यूमैक्सिको रेगिस्तान में जब अणु बम का प्रथम परीक्षण किया गया तो उसने विस्फोट से अनन्त सूर्य में अनेक ज्वालाओं को देखकर उसे गीता के विराट स्वरूप का दर्शन हुआ तथा वह त्यागपत्र देकर गीता भक्त बन गया था। इंग्लैण्ड में संत कार्लायल, टी.एम. इलियट तथा विश्वविख्यात इतिहासकार सर आरनोल्ड टायनवी जैसे विद्वान गीता से प्रभावित हुए। संत कार्लायल से अमरीकी विद्वान इमर्शन से अद्भुत भेंट थी। संत ने इमर्शन से पूछा कि वे अमरीका से भेंट स्वरूप क्या लाए। उत्तर में भावपूर्ण हो उसने गीता की एक प्रति भेंट की, जिसके उत्तर में कार्लायल ने भी गीता की एक प्रति भेंट दी। टी.एस. इलियट ने गीता को 'मानव वांग्मम की अमूल्य निधि' है बताया संसार की 28 सभ्यताओं के विशेषज्ञ टायनवी ने स्वीकार किया कि अणुबम से विध्वंस की ओर जाते पाश्चात्य जगत को पौर्वात्य, भारतीय तत्वज्ञान की ओर जाना पड़ेगा, जो सभी के अन्दर ईश्वर की मानता है। (विस्तार के लिए देखें, 'ए स्टडी ऑफ हिस्ट्री')।

मृत्यु शैय्या पर पड़े जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान शोपनहावर को गीता पढ़ने से जीवनदान मिला। उसने माना कि 'भारत मानव जाति की पितृभूमि है।' विश्व प्रसिद्ध जर्मन विद्वान कांट, जो भूगोल तथा नक्षत्र विधा का अध्यापक था, की गीता पढ़कर जीवन की दिशा बदल गई तथा वह दर्शन का पंडित बन गया। मैक्समूलर ने मुक्त कंठ से गीता की आराधना की। नोबुल पुरस्कार विजेता फ्रेंच विद्वान रोमां रोलां ने माना कि गीता ने यूरोप की अनेक आस्थाओं को धूल-धुसरित कर दिया तथा मानव को नवदृष्टि दी। स्वामी सुबोध गिरी ने गीता के विश्वव्यापी प्रभाव की महत्वपूर्ण विवेचना की (देखें, डा. हरवंश लाल ओबराय, समग्र गीता दर्शन की सार्वभौमिकता'-खण्ड पांच, बीकानेर, 2012)

भारतीय मनीषी तथा गीता

आदि शंकराचार्य से लेकर डा. राधाकृष्ण तक सभी संतों-विद्वानों के लिए गीता सदैव भारतीय जीवन दर्शन की पथ प्रदर्शिका रही है। अनेक आचार्यों, मध्यकालीन हिन्दू तथा मुसलमान भक्तों ने इस अमृत धारा से, अविरल गति से इसे प्रभावित रखा। वर्तमान युग में भी स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द, लोकमान्य तिलक, डा. राधाकृष्ण, महात्मा गांधी, विनोवा भावे, पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.सी. छागला तथा पूर्व राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम आदि इसके उदघोषक रहे। जम्भेश्वर महाराज ने कहा, 'गीता अनहद नाद है।' स्वामी विवेकानन्द ने गीता को उपनिषदों के उद्यान से निकले हुए सुन्दर सुंगधित पुष्पों का गुच्छा कहा। महर्षि अरविन्द ने इसे 'अक्षय मणियों की खान' बताया। एक आधुनिक विद्वान ने इसे भारत के पुरातन इतिहास का सच्चा ग्रंथ तथा 'भारतीय अध्यात्मवाद का सर्वश्रेष्ठ तथा 'विश्व साहित्य का बेजोड़ ग्रन्थ' बतलाया (देखेंे, सागरमल शर्मा', 'हिन्दू संस्कृति और सद्ग्रन्थ' पृ. 130-131)। आदि शंकराचार्य ने जहां इसके ज्ञान मार्ग पर, गुलाब राव महाराज ने इसके भक्ति मार्ग पर, वहीं लोकमान्य तिलक ने अपने 'गीता रहस्य' में इसके कर्मयोग पर बल दिया।

राष्ट्रीय आन्दोलन तथा गीता

भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में क्रांतिकारियों की प्रेरणा, चेतना तथा आत्मबलिदान का स्रोेत रहा। खुदीराम बोस तथा मदन लाल धींगरा गीता हाथ में लेकर देश के लिए बलिदान हो गए। महर्षि अरविन्द ने स्वयं गीता को भारत माता के चित्र सहित छपवाया। भारत में ब्रिटिश सरकार को इसके वर्णन में कहीं बम बनाने का फार्मूला होने का शक लगा। जांच अधिकारी नियुक्त किए गए। बम की तरीका तो नहीं निकला पर 'आत्मबल का बम अवश्य' प्रकट हुआ। संक्षेप में गीता ने जीवन के विभिन्न पक्षों की समस्याओं का निराकरण प्रस्तुत किया तथा देश की भक्ति, आत्मगौरव तथा आत्मसम्मान की भावना पैदा की।

भारतीय संविधान तथा गीता

अनेक भारतीयों को, विशेषकर देश की युवा पीढ़ी को यह ज्ञात नहीं होगा कि 1950 में जब भारत का संविधान बना तब इसमें भारतीय संस्कृति तथा दर्शन के 22 उद्बोधक चित्र भी थे। इसमें एक चित्र संविधान के नीति-निर्देशक तत्व में भगवान श्रीकृष्ण का गाण्डीवधारी अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए भी थी। यह सर्वविदित है कि देश के संविधान में राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, राष्ट्रभाषा, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र पशु तथा राष्ट्र पक्षी आदि के निश्चित किया गया। परन्तु भारत के राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ पर चिंतन नहीं हुआ। उल्लेखनीय है कि 10 सितम्बर, 2007 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय में भारत की केन्द्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 51 (क) के अर्न्तगत राष्ट्र के धर्मग्रन्थ को घोषित करने को कहा गया तथा इसके लिए भारतीय जीवन पद्धति तथा राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रेरणास्रोत 'गीता' को बतलाया। यह भी कहा कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह इस राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा करे और इसके आदर्शों के अनुकूल चले (देखें स्वामी सुबोध गिरि, पूर्व उद्धरित पृ. 157,158)

भारत का प्रत्येक विद्वान जानता है कि 'धर्म' और 'रिलीजन' अलग-अलग है। धर्म का पर्याय 'रिलीजन' या 'मजहब' नहीं है। माननीय उच्च न्यायालय ने इसे स्पष्ट करते हुए यह भी कहा कि इस देश में जो ईसाई, पारसी, मुस्लिम या यहूदी नहीं है, वे सब हिन्दू हैं। भारत में जन्मे सभी सम्प्रदाय-बौद्ध, जैन, सिख आदि हिन्दुत्व का अंग हैं। न्यायालय ने केन्द्र सरकार को यह भी ध्यान दिलाया कि गीता भारत की आत्मा है। गीता सभी सम्प्रदायों की मार्गदर्शक शक्ति है। गीता सनातन सत्य को उजागर करती है। इसलिए यह किसी सम्प्रदाय विशेष का ग्रन्थ न होकर, पूरी मानवता का ग्रंथ है। पूरे समाज को बांधने वाला ग्रन्थ है।

परन्तु विश्व गुरु कहलाने वाले भारत का दुर्भाग्य है कि उच्च न्यायालय की टिप्पणी को छोड़िए देश बड़बोले राजनीतिज्ञों ने अपनी पार्टी, अपने चुनाव बैंक तथा क्षुद्र राजनीतिकों हितों तथा स्वार्थों के लिए राष्ट्र हित तथा विश्व कल्याण को भुला दिया। 'सेकुलरवाद' की आड़ में भारत के तत्कालीन कानून मंत्री श्री हंसराज भारद्वाज ने कुरान तथा बाइबिल को भी धर्मशास्त्र बताया। सम्भवत: वे जानबूझकर भूल गए कि गीता किसी सम्प्रदाय का ग्रन्थ नहीं, यह विश्व का मानव ग्रन्थ है, विश्व का महानतम आध्यात्मिक ग्रन्थ है।

महात्मा गांधी का स्पष्ट मत था कि गीता सभी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ाई जानी चाहिए। क्या यह देश की प्रबुद्ध पीढ़ी को नहीं लगता कि भारतीय संविधान में शब्द ग्रन्थ के रूप में गीता को घषित किया जाना चाहिए तथा भारत के प्रत्येक शिक्षा संस्थान में यह पाठयक्रम का अनिवार्य भाग होनी चाहिए। डा. सतीश चन्द्र मित्तल

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