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सावन मास शुरू होते ही कांवड़ मेला शुरू हो जाता है। इन दिनों हरिद्वार में कांवड़ मेले की रौनक हैं। लाखों कांवड़िये हर दिन हरिद्वार पहुंच रहे है। कांवड़ियों की बढ़ती तादाद को देखकर शहर को यातायात की दृष्टि से अनेक हिस्सों में बांटा गया है। कोई दुर्घटना न हो और मेले को सकुशल संपन्न कराने के लिए आईटीबीपी और आरपीएफ के जवानों को तैनात किया गया है। इस बार कांवड़ मेले में आने वाले शिव भक्तों के लिए अपना पंजीकरण करवाना जरूरी कर दिया गया है। प्रशासन द्वारा यह कदम हाल ही में उत्तराखंड में आई आपदा और इसमें मारे गए लोगों की संख्या के हजारों में पहुंचने के बाद उठाया गया है।
हरिद्वार और उसमें भी हर की पैड़ी कांवड़ मेले का मुख्य आकर्षण है। हरिद्वार से कांवड़ यात्रा शुरू होती है। प्रशासनिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले हफ्ते तक 75 लाख से अधिक कांवड़िये गंगा जल लेकर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। कांवड़ मेले से हरिद्वार की अनेक धार्मिक मान्यताएं एवं परम्पराएं जुड़ी हैं। कांवड़ के निर्माण में लगे ज्वालापुर के अनके परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी कांवड़ बनाते आ रहे हैं। शिव के प्रति उनकी आस्था उनके जुनून को देखकर ही पता चलती है। आश्चर्य की बात यह है कि कांवड़ की साज-सज्जा एवं डिजाइन का कार्य यहां मुस्लिम परिवार के लोग करते हैं। लगभग तीन पीढ़ियों से कांवड़ बनाने का कार्य कर रहे एक परिवार के मुखिया ज्वालापुर निवासी फिरोज भाई बताते हैं कि 'हमारा परिवार तीन पीढ़ियों से कांवड़ बनाने का कार्य कर रहा है। क्या बूढ़े, क्या बच्चे, सभी उत्साह से इस कार्य को कर रहे हैं।' उन्हांेने बताया कि 'हमारी तो आजीविका का साधन कांवड़ मेला ही है।'
चूंकि कांवड़ियों का पंजीकरण पहली बार हो रहा है, इसलिए कांवड़ियों से कहा गया है कि वे घर से चलते वक्त एक कागज पर अपना नाम, पता और मोबाइल नम्बर लिख कर रखें और उत्तराखण्ड में प्रवेश करते वक्त वे इस पर्ची को वहां तैनात पुलिस कर्मियों को दे दें ताकि उनका पंजीकरण किया जा सके। साथ ही कोई शिवभक्त कावड़िया किस साधन से आ रहा है यह भी बताया जाए, ताकि कांवड़ियों को बेहतर यातायात, सुरक्षा और सुविधाएं प्रदान की जा सकें। कांवड़ मेले को लेकर सीसीआर टावर में हुई समन्वय बैठक में आये मुरादाबाद मंडल के आयुक्त शिवशंकर सिंह ने कांवड़ मेले को शांतिपूर्वक संपन्न करवाने में पूर्ण सहयोग करने का आश्वासन दिया। बैठक में यह भी तय किया गया कि किसी भी कांवड़िये को जोर-जोर से गीत बजाने के यंत्र लाने की अनुमति नहीं होगी और सभी प्रवेश द्वारों पर वाहनों पर लगे ऐसे यंत्र उतरवा कर ही उन्हें आगे जाने दिया जायेगा। कांवड़ियों की बढ़ती तादाद को देखते हुए हरिद्वार प्रशासन ने राष्ट्रीय राजमार्ग को कांवड़ियों के लिए खोल दिया है।
शंभु और श्रद्धालु
इस पवित्र माह में शिवालयों, काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, नीलकंठ महादेव, महाकालेश्वर समेत सभी प्रमुख ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व होता है। शिव को जल अर्पित करने के लिए हजारों की संख्या में कांवड़िए इन धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। सावन मास में विशेष तौर पर भगवान शिव की पूजा की जाती है। पूर्णिमा के दिन श्रावण नक्षत्र होने के कारण ही यह श्रावण या सावन का महीना कहलाता है। इस दौरान श्रद्धालु प्रात: स्नान-ध्यान के बाद गंगाजल, दूध, दही, बेलपत्र, धतूरा, शहद, घी, जनेऊ, चंदन, रोली, धूप, दीप आदि से बाबा भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं। कहा जाता है कि महादेव कालजयी हैं और सावन में उनकी स्तुति से संकट टल जाता है। श्रद्धालु कांवड़ में पवित्र नदी का जल लाकर भगवान शिव को अर्पित करते है। वैसे तो पूरे सावन महीने में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन सोमवार का विशेष महत्व होता है। इस सावन में तीन सोमवार आएंगे। पहला सोमवार 5 अगस्त को, दूसरा 12 अगस्त को और तीसरा 19 अगस्त है।
बेलपत्र–शमीपत्र
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त बेलपत्र और शमीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने से होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक शमीपत्र का महत्व होता है।
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