प्रलयंकारी रौद्र रूप
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पर्वत की छाती को चीरा
परिणाम सामने आया है
प्रलयंकारी जलप्रवाह ने
रौद्र रूप दिखलाया है
कितना जनमानस बहा कहां
कितने मलवे में दबे कहीं
पत्थर चट्टानों से टकराकर
कितनों के जीवन शेष नहीं
जो बच गए उन्हें बचाने को
चल पड़े लाड़ले मातभूमि के
केशव ने जिन्हें जगाया है
प्रलयंकारी जलप्रवाह ने…
जान हथेली पर लेकर
हैं सैनिक–संघ बढ़े आगे
राहत सामग्री पहुंचाने को
देशभक्त जनसेवक जागे
दुर्गम पथ पर बढ़ते जाते
तूफानों से लड़ते जाते
सेवा कार्य निभाने को
आपदा ने उन्हें बुलाया है
प्रलयंकारी जलप्रवाह ने..
केदारनाथ का यह प्रकोप
या मानवता का कर्म पाप
परिवर्तन प्रकृति का विधान
या देवभूमि का है विलाप
भारी विपदाएं आती हैं
आकर पीड़ा दे जाती हैं
बचे हुओं में प्यार भरें फिर
जीवन जिनका बच पाया है
प्रलयंकारी जलप्रवाह ने…
वायु–थल सेना, संघ के देवदूत
दिन रात व्यस्त रह किया काम
अद्भुत कार्य की क्षमता वाले
तुमको प्रणाम, शत् शत् प्रणाम।
कन्हैयालाल खरे
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