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आज उन सेकुलरों की जुबान बन्द है जिन्होंने 19 सितम्बर, 2008 को दिल्ली के जामिया नगर स्थित बटला हाउस में आतंकवादियों और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ को फर्जी बताने के लिए सारी हदें तोड़ दी थीं। ये ऐसे लोग हैं जब सच सामने आता है तो अपना मुंह बन्द कर लेते हैं और जब सच को दबाना होता है तो अपनी जुबान छुरी से भी तेज चलाते हैं। भले ही उनकी झूठी बातों से पुलिस का मनोबल गिरता हो या समाज में तनाव फैलता हो इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता है। उनका मतलब सिर्फ इस बात से होता है कि कैसे आतंकवादियों को कानून के फंदे से मुक्त कराया जाए। किन्तु दिल्ली के साकेत न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार शास्त्री ने अपने फैसले में इस मुठभेड़ को सही बताकर इन सेकुलरों की जुबान पर ताला जड़ दिया है।
कहां हैं जामिया नगर के विधायक आसिफ मोहम्मद जिन्होंने उप चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले मुठभेड़ में मारे गए दोनों आतंकवादियों को शहीद बताकर उनकी कब्र पर आंसू टपकाए थे? वकील प्रशान्त भूषण भी अब मुंह क्यों नहीं खोल रहे हैं, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में इस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग करने वाली एक याचिका पर बहस करते समय कहा था कि 'बटला हाउस मुठभेड़ फर्जी थी। बटला हाउस में दो युवकों के मारे जाने से पुलिस के प्रति अल्पसंख्यक समुदाय का विश्वास टूटा है।' उल्लेखनीय है कि यह याचिका कथित सामाजिक संस्था 'अनहद' ने दायर की थी। इस संस्था की अध्यक्ष वही शबनम हाशमी हैं, जिन्होंने तीस्ता सीतलवाड़ के साथ मिलकर गुजरात में फर्जी दंगों के मामले बनाए थे। कांग्रेस के बड़बोले महासचिव दिग्विजय सिंह भी इस मुठभेड़ को फर्जी बताने के लिए अपनी ही पार्टी की सरकार को कठघरे में खड़ा करते रहे। इतना ही नहीं वे इस मुठभेड़ में मारे गए दोनों युवकों के घर आजमगढ़ भी गए। किन्तु वे कभी इस मुठभेड़ में शहीद हुए पुलिस अधिकारी मोहनचन्द शर्मा के घर नहीं गए। सलमान खुर्शीद ने भी उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव के समय मुसलमानों को सम्बोधित करते हुए कहा था कि, 'बटला हाउस मुठभेड़ की तस्वीरें देखकर उनकी पार्टी की अध्यक्षा रो पड़ीं थीं।' क्या उनकी पार्टी की अध्यक्षा किसी सैनिक की शहादत पर रोती हैं? कहां हैं समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह, जिन्होंने पहले शहीद मोहनचन्द शर्मा के परिवार वालों को अपनी पार्टी की तरफ से आर्थिक सहयोग देने की घोषणा की। द्वारका स्थित उनके घर जाने के लिए उन्होंने तारीख भी तय कर दी थी पर वे गए नहीं। बाद में वे ऐसे पलटे कि उस मुठभेड़ को फर्जी बताने लगे और एक दिन बटला हाउस पहुंच कर मारे गए आतंकवादियों को शहीद बता आए।
न्यायालय ने इण्डियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादी शहजाद को पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चन्द शर्मा की हत्या का दोषी ठहराया है। इस फैसले पर इंस्पेक्टर मोहनचन्द शर्मा की पत्नी माया शर्मा ने कहा है कि न्यायालय के इस निर्णय से उन लोगों को जवाब मिल गया है जो इस मुठभेड़ को फर्जी बताकर मेरे पति की शहादत पर अंगुली उठाते थे।
उल्लेखनीय है कि 13 सितम्बर 2008 को दिल्ली के कई स्थानों पर बम विस्फोट हुए थे। इन विस्फोटों में 25 लोग मारे गए थे और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इन विस्फोटों की जांच करते समय पुलिस को कुछ ऐसे सबूत मिले थे जिनसे पता चला था कि बटला हाउस में कुछ संदिग्ध छुपे हुए हैं। इसके बाद 19 सितम्बर 2008 को पुलिस इंस्पेक्टर मोहनचन्द शर्मा के नेतृत्व में पुलिस की एक टुकड़ी बटला हाउस गई थी। वहां के एक फ्लैट एल-18 में पुलिस और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें पुलिस इंस्पेक्टर मोहनचन्द शर्मा को गोली लगी और इलाज के दौरान उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया था।
मुठभेड़ के बाद 1 अक्टूबर 2008 को दिल्ली पुलिस के तत्कालीन आयुक्त वाई एस डडवाल ने इसकी जांच का जिम्मा अपराध शाखा के एसीपी राजेन्द्र बख्शी को सौंपा था। इसी दौरान शहजाद को 1 जनवरी 2010 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से गिरफ्तार किया गया। पहले शहजाद यह कहता रहा कि घटना के वक्त वह बटला हाउस में नहीं था और न ही वह घटना के बाद दिल्ली गया था। किन्तु जांच में शहजाद के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिले। उसका पासपोर्ट बाटला हाउस के एल-18 से मिला। पुलिस ने शहजाद का वह रेल टिकट भी अदालत में प्रस्तुत किया जिसके आधार पर उसने 24 सितम्बर 2008 को पुरानी दिल्ली से आजमगढ़ तक कैफियत एक्सप्रेस से यात्रा की थी। पुलिस ने शहजाद द्वारा आरक्षण हेतु भरा गया फार्म भी अदालत में प्रस्तुत किया। इन सबको अदालत ने ठोस सबूत माना।
सोनिया से सवाल
सलमान खुर्शीद के अनुसार बटला की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी रोई थीं। इस फैसले के बाद अब सोनिया शहीद मोहन चंद शर्मा के परिवार वालों की मदद के लिए हाथ बढ़ाएंगी? क्योंकि अभी तक उनके परिवार वालों को घोषित मुआवजा नहीं मिला है।
इशरत जहां मामला गृह मंत्रालय, सीबीआई और आपसी खटपट
केन्द्रीय गृह मंत्रालय अपने द्वारा बुने जाल में खुद ही फंसता दिख रहा है। पहले इस मंत्रालय ने इशरत जहां मामले में देश की दो प्रमुख जांच एजेंसियों सीबीआई और आई बी को आपस में भिड़ाया। इन दोनों की आपसी रंजिश से जब गृह मंत्रालय की ही पोल खुलने लगी तो मंत्रालय सतर्क हुआ। अब वह इशरत जहां मामले की फाइल सीबीआई को देने से कतरा रहा है। उधर सीबीआई ने कहा है कि यदि इशरत की फाइल उसे नहीं दे गई तो इसकी शिकायत वह गुजरात उच्च न्यायालय से करेगी। सीबीआई का तर्क है कि इस मामले की जांच वह न्यायालय की निगरानी में कर रही है। फाइल न मिलने से उसकी जांच प्रभावित हो रही है। अरुण कुमार सिंह
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