जारी है चीनी घुसपैठ का सिलसिला
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–प्रमित पाल चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार, हिन्दुस्तान टाइम्स
चाहे भारत के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद बीजिंग हो आए हों या अभी रक्षा मंत्री ए. के. एंटोनी चीन के कामरेड नेतृत्व से मिल आए हों, चीनी भारत को लगातार परेशान करने की अपनी दंशभरी नीतियों में कतई ढील नहीं देना चाहते हैं। वे भारत पर लगातार दबाव बनाए रख कर 'सीमा विवाद' को अपने हक में सुलझाने के तमाम हथकंडे अपनाने की अपनी सोची-समझी योजना को अमली जामा पहनाने में जुटे हैं।
अप्रैल, 2013 में लद्दाख के दौलत बेग ओल्दी सेक्टर में सीमा के इस ओर आकर 20 दिनों तक जमे बैठे रहे 30 चीनी सैनिकों की वापसी तभी हुई थी जब भारत की मनमोहन सरकार वहां से भारतीय फौजी टुकड़ी को पीछे हटाने को राजी हो गई थी। चीनियों ने उस वक्त भी 'यह हमारी जमीन है, यहां से वापस जाओ' के बैनर लहराए थे। खुर्शीद ने मामले को 'समझदारी' से निपटाने की खूब कवायद की तो लगा जैसे उनकी बात मानकर चीनी आगे ऐसा नहीं करेंगे। लेकिन अभी जुलाई के पहले हफ्ते में कुछ चीनी सैनिक लेह से 300 किमी. दूर लद्दाख-हिमाचल सीमा पर स्थित चूमार में हमारी सरहद के काफी अंदर तक आ गए और भारतीय सेना ने 5 मई को ही वहां जो निगरानी कैमरे लगाए थे उनको तोड़-फोड़कर अपने साथ ले गए। भारत को चीन ने एक बार फिर घुड़की दिखाई थी। लेकिन सिवाय एक फ्लैग मीटिंग के हमारी सरकार ने कोई दमदार रुख नहीं दिखाया। अब इधर 16, 17 और 20 जुलाई को चीनियों ने एक बार फिर पूरी बेशरमी से बेशक, भारत के 'धीरज' को तोलने की गरज से घुसपैठ के इतिहास में पहली बार अपने 50 से ज्यादा घुड़सवार सैनिक हमारी सरहद में 2 किलोमीटर अंदर तक ठेल दिए। और इस बार भी उन्होंने वही बैनर लहराए कि 'यह हमारी जमीन है, यहां से चले जाओ'। यह अलग बात है कि हमारे सैनिकों के आंख से आंख मिलाने पर वे घुड़सवार वहां से लौट गए।
लेकिन, हो न हो, चीनी इन घटनाओं के जरिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में यह बात फैलाने पर आमादा हैं कि जैसे 'भारत ने उनकी जमीन कब्जाई हुई है, जिसे उसको खाली कर देना चाहिए।' अपनी सुविधा के लिए चुशूल संधि को भूल कर चीन दुनिया भर के मीडिया में यह बात फैला देना चाहता है कि भारत के साथ सटीं उसकी सीमाएं ठीक से रेखांकित नहीं हैं, लिहाजा सीमाओं का सही निर्धारण हुए बिना यह 'गफलत बनी रहेगी कि किसकी सरहद कहां तक' है। चीन ने अपनी ताकत भारत के मीडिया और बद्धिजीवियों को फुसलाने में भी झोंक रखी है। साल में तकरीबन 200 से ज्यादा बार भारत से सटी 4087 किमी. सरहद को लांघने वाले चीनी कामरेड भारत के चुनिंदा बुद्धिजीवियों को चीन न्योत कर उन पर भारी पैसा खर्च करके उन्हें रिझाने में जुटे हैं। इसके लिए उसका बड़ा सुघड़ और सोचा-समझा तरीका है। भारत के लोकतंत्र से चिढ़ने वाले चीनी कामरेडों ने इण्डोनेशिया के मीडिया को अपने पाले में मिलाने की गरज से झोंके 40 करोड़ डालर की तर्ज पर ही भारत के कुछ मीडिया वालों को अपनी नीतियों को भारत में प्रचारित कराने और हवा का रुख बीजिंग की तरफ रखने के लिए काफी पैसा लगाया हुआ है। नई दिल्ली में एक सेमिनार में हिन्दुस्तान टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार प्रमित पाल चौधरी ने चीन की भारतीय बुद्धिजीवियों में दखल की जानकारी देते हुए कहा कि चीन चाहता है कि भारत में उसकी नीतियों को लेकर एक माहौल बनाया जाए और ऐसा तभी हो सकता है जब यहां का सेकुलर बुद्धिजीवी वर्ग उसके प्रति आकर्षित हो। देखना है कि भारत का सत्ता अधिष्ठान चीन के इस पैतंरे को सब समझाता है।
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