तो प्रकोप होगा
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आवरण कथा 'जलप्रलय' के अन्तर्गत कई रपटें और लेख पढ़ने को मिले। इन सबका सार है कि यह प्रलय प्रकृति के अत्यधिक दोहन का परिणाम है। सम्पादकीय में
सही लिखा गया है कि नदियों को पूजने वाला समाज उनके पाट पर चढ़ बैठा। विविधतापूर्ण जैव जगत से गूंजती घाटियां, कम्पनी जगत की तिजोरियां भरने के लिए खंगाली, कंगाल की जाने लगीं। तीर्थाटन की पुण्य कमाई का संस्कार हमने 'पैकेज' और 'डील' में लुटा डाला। समय पर हम नहीं चेते और गलत राह पर अड़े रहे इसलिए प्रकृति ने हमें मर्मान्तक पीड़ा दी है।
–ब्रजेश कुमार
गली सं-5,आर्य समाज रोड मोतीहारी
जिला–पूर्वी चम्पारण (बिहार)
श्रीनगर के पास अलकनन्दा नदी पर हाइड्रोपावर परियोजना का काम चल रहा है। इस परियोजना के डूब क्षेत्र में प्रसिद्ध धारी माता मन्दिर आ रहा था। इसलिए 16 जून, 2013 को धारी माता की मूर्ति वहां से हटाकर दूसरी जगह स्थापित की गई थी। 17 जून को जलप्रलय हुई। आस्थावान लोगों का कहना है कि यह प्रलय देवी के रुष्ट होने से हुई। उल्लेखनीय है कि बहुत लोग और संगठन इस मन्दिर को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। फिर भी सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी और देवी का स्थान बदल दिया।
–उमेदुलाल
ग्राम–पटूडी धारमण्डल
पो.- धारकोट, जिला– टिहरी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)
उत्तराखण्ड में हजारों लोग मरे। कितने मरे इसकी निश्चित संख्या कभी कोई नहीं बता सकता है। किन्तु यह सत्य है कि मरने वालों में 99 प्रतिशत से भी अधिक लोग हिन्दू थे। शायद इसीलिए कथित सेकुलर राजनीतिक दलों के नेताओं ने इतनी बड़ी आपदा की उपेक्षा की। याद कीजिए कश्मीर घाटी में आए भूकम्प को। उसमें कुछ ही लोगों की जान गई थी। पर सारे सेकुलर नेताओं ने वहां हाजिरी लगाई थी। यह बताने की जरूरत नहीं है कि वहां कौन लोग मरे थे। उत्तराखण्ड की आपदा पर किसी ईसाई या मुस्लिम संगठन ने शोक भी नहीं जताया।
–प्रमोद प्रभाकर वालसंगकर
1-10-81,रोड न-8 बी, द्वारकापुरम, दिलसुख नगर
हैदराबाद-500060 (आं.प्र.)
प्रकृति के ताण्डव के समय भी हमारे नेता एकजुट नहीं हो पाए। आपदाग्रस्त क्षेत्रों में लोग कई-कई दिन तक तड़पते रहे,जान की भीख मांगते रहे पर हमारे नेता राजनीतिक रोटी सेंकते रहे। जबकि सबको एकजुट होकर यही कहना चाहिए था कि इस आपदा के समय पूरा देश एक है और सब मिलकर राहत सामग्री जुटाओ, लोगों की मदद करो।
–बी जे अग्रवाल
स्मृति, प्रथम तल, अग्रसेन रोड धर्मपेठ
नागपुर-440010 (महाराष्ट्र)
अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हमें महंगी पड़ने लगी है। पहाड़ों पर प्रदूषण फैलाना, उन्हें काट कर घर बनाना, पहाड़ों में ही नदियों को जोड़कर बिजली के लिए बांध बनाना नुकसानदायक है। पहाड का दुश्मन पानी है। जब पानी पहाड़ के अन्दर घुसता है तो वह उसे कितना घायल करता है यह समझने की जरूरत है। पर दुर्भाग्य से यह समझने की कोशिश ही नहीं की जाती है।
–वीरेन्द्र सिंह जरयाल
28-ए, शिवपुरी विस्तार
कृष्ण नगर, दिल्ली-110051
इस आपदा में किसी घर का चिराग बुझ गया,तो किसी ने आजीविका का साधन खोया। किन्तु इन लोगों की मदद के लिए वे लोग आगे नहीं आए, जिन्होंने पाकिस्तान में आई बाढ़ से पीड़ित लोगों के लिए भारत में चन्दा उगहाया था। क्या इनकी मानवता की परिभाषा में हिन्दू नहीं आते हैं? यदि आते तो ये लोग इस बार भी चन्दा इकट्ठा करते। पर ऐसा तो अब तक न कहीं पढ़ा है और न ही सुना है।
–सर्वज्ञ सिंह
तेघड़ा, बेगूसराय (बिहार)
उत्तराखण्ड की तबाही से देश हिल उठा। पर ऐसा लगता है कि सरकार इस तबाही से कुछ सीख लेने की जरूरत नहीं समझ रही है। केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कहते हैं कि जल्दी ही केदारनाथ से मलवा हटाया जाएगा, जबकि भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि बिना जांच-परख के मलवा हटाना खतरे से खाली नहीं है। इसलिए सरकार भू-वैज्ञानिकों से सलाह करके ही कोई कदम उठाए।
–राममोहन चन्द्रवंशी
अभिलाषा निवास, विट्ठल नगर टिमरनी, जिला–हरदा (म.प्र.)
प्राकृतिक आपदा के सामने किसी का कुछ नहीं चलता। विज्ञान भी यह पता नहीं कर सकता कि कब और कहां कोई आपदा आने वाली है। किन्तु इस तरह की आपदाओं से बचने की तैयारी तो पहले की ही जा सकती है। आपदा प्रबंधन को लेकर तब बात शुरू होती है जब कोई आपदा आ जाती है। कुछ दिन बाद वह बात भी खटाई में पड़ जाती है। देश में एक ऐसा विभाग हो जो किसी भी आपदा के समय दल-बल के साथ घटना स्थल पर पहुंच जाए।
–विकास कुमार
शिवाजी नगर, वडा, जिला–थाणे (महाराष्ट्र)
विकास के नाम पर हम पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। जंगलों को काट रहे हैं। नदियों को नाले में बदल रहे हैं। प्रकृति की गोद में हम अपने लिए घर बना रहे हैं। नदियों को बांध कर बिजली पैदा कर रहे हैं। माना कि यह सब भी जरूरी है। किन्तु हम यह क्यों भूल जाते हैं कि प्रकृति का संरक्षण भी उतना ही जरूरी है जितना कि लोगों के लिए घर। इसलिए जो कुछ भी हो उसमें प्रकृति का ख्याल सबसे पहले रखा जाए।
–हरिहर सिंह चौहान
जंवरीबाग नसिया, इन्दौर-452001 (म.प्र.)
अन्तरिक्ष और चांद पर कुलांचे भरने वाला मनुष्य प्रकृति के रहस्य और स्वरूप से अनजान और लापरवाह है। मूक आकाश, कांटे-छांटे जाने वाले विवश पहाड़ और नदियों के जल के साथ बदतमीजी में चलाई जाने वाली विद्युत परियोजनाओं और नदी की जमीन को रौंदने का दुस्साहस जलप्रलय के इस अंश ने एक झटके में ही उखाड़ फेंका। यदि प्रकृति सन्तुलन के साथ पहले से ही हम संवेदनशील होते तो मौतों का यह मंजर देखने को नहीं मिलता। आंखें मींचे आगे की परवाह किये बिना कंक्रीट के विकास में मदहोशी और पर्यटन के नाम पर प्रकृति की नीलामी बंद होनी चाहिए।
–हरिओम जोशी
चतुर्वेदी नगर, जिला–भिण्ड (म.प्र.)
भेदभाव करना कांग्रेस से सीखो
दिल्ली की कांग्रेस सरकार मन्दिरों और मस्जिदों को लेकर किस तरह का भेदभाव कर रही यह पाञ्चजन्य की रपट से पता चला। अवैध मस्जिदों को खुद दिल्ली की सरकार बचा रही है। किन्तु यही सरकार कथित अवैध मन्दिरों को तोड़ने के लिए तुरन्त सक्रिय हो जाती है। कांग्रेस का चरित्र ही ऐसा है। वह सत्ता के लिए इस देश को रसातल पर पहुंचा रही है। इस कांग्रेस ने सदैव मुसलमानों के लिए ही काम किया है। भेदभाव की भी कोई सीमा होती है।
–बी एल सचदेवा
263, आईएनए मार्केट, नई दिल्ली-110023
कांग्रेस तुष्टीकरण की नीति कभी नहीं छोड़ सकती है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ही बदल दिया था। कट्टरवादियों के सामने घुटने टेकना कांग्रेस की आदत है। कट्टरवादियों को बढ़ावा देना ही कांग्रेस की नजर में सेकुलरवाद है। हिन्दुओं से जुड़े किसी भी मुद्दे को कांग्रेस साम्प्रदायिक बताती है। यही दिल्ली में भी कर रही है।
–मनोहर 'मंजुल'
पिपल्या–बुजुर्ग
जिला–पश्चिम निमाड़ (म प्र)
सेकुलरवाद के नाम पर मुस्लिमों का तुष्टीकरण किया जा रहा है। क्या होगा हमारे देश का और हमारी आने वाली पीढ़ी का इस बारे में सोचना बहुत जरूरी हो गया है। इस गंभीर मसले पर सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए और सरकार को फटकार लगानी चाहिए। समस्त हिन्दू नेताओं और संगठनों को भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना चाहिए।
–प्रिंस वर्मा
म न-457, इन्दिरा कालोनी
मुजफ्फरनगर-251001 (उ.प्र.)
मजहब के आधार पर राज्य द्वारा जनता के साथ भेदभाव करना संविधान को चुनौती देना है। अवैध मन्दिर को तोड़ना और अवैध मस्जिद को छोड़ना यह खालिस राजनीति है। देश में राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि राजनीतिज्ञों को केवल कुर्सी दिखती है। इसे देशतोड़क राजनीति कहते हैं।
–दयाशंकर मिश्र
लोनी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
राजनीति से ऊपर है राष्ट्र
'संघ और राजनीति' लेख अच्छा लगा। इसमें राष्ट्र को राजनीति से ऊपर बताया गया है और संघ का काम राष्ट्र निर्माण करना है। शिक्षा विशेष में जो भी लेख प्रकाशित किए गए वे युवाओं के लिए बड़े उपयोगी हैं। 'झांकी अनुपम जीवन की' पढ़कर हिन्दू युवकों में सर्वश्रेष्ठता का भाव और आत्मविश्वास जगेगा। इस आत्मविश्वास से वे अपने जीवन की समस्याओं का निदान कर सकते हैं।
–मयंक सिंह
बजलपुरा, तेघड़ा, बेगूसराय (बिहार)
तीर्थस्थलों को पर्यटनस्थल मत बनाओ
उत्तराखण्ड में जो हुआ उसको याद करते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कुछ मिनटों में ही हजारों लोग मारे गए, अनेक गांवों का नामोनिशान मिट गया और केदारनाथ जैसा तीर्थ मरघट में बदल गया। हमारे बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि आज से 30-40 वर्ष पूर्व उत्तराखण्ड के इन दुर्गम तीर्थस्थलों की यात्रा लोग जीवन के अन्तिम पड़ाव में करते थे। लोगों की धारणा यह थी कि पता नहीं वहां से लौट पाएंगे कि नहीं। इसलिए लोग इन स्थलों की यात्रा में जाने से पहले अपने सारे दायित्वों को पूरा कर लेते थे, अपने नाते-रिश्तेदारों के यहां जाते थे, उनसे शुभकामनाएं लेते थे और भगवान के नाम की माला जपते हुए तीर्थाटन पर निकल जाते थे। ऐसे लोग यह मानकर चलते थे कि यदि लौटे तो भगवान की मर्जी से और नहीं लौटे तो भी भगवान की मर्जी। सच में वे लोग तीर्थयात्री होते थे। किन्तु आज क्या हो रहा है? लोगों ने तीर्थयात्रा को पर्यटन बना दिया है। आने-जाने के साधन भी बढ़ गए हैं। इसलिए बच्चे, वृद्ध और नवविवाहित जोड़े भी इन तीर्थस्थलों पर पहुंचने लगे हैं। ये लोग अपने साथ वे चीजें भी ले जा रहे हैं जो प्रदूषण को बढ़ावा देती हैं। प्रतिदिन सैकड़ों गाड़ियां पहुंच रही हैं, लोग अपने साथ पानी की बोतलें भी ले जाते हैं और उन्हें वहीं फेंक देते हैं। ऐसी रपटें हर साल आती हैं कि लोग गंगोत्री में भी गन्दगी फैला रहे हैं। इन सबको रोकना होगा। प्रकृति का सम्मान होगा तो हमारा जीवन भी सुखमय होगा।
–उदय कमल मिश्र
गांधी विद्यालय के समीप
सीधी-486661 (म.प्र.)
तार इतिहास गढ़ गया
सुख–दुख से जो था जुड़ा, वही हो गया शांत
यही जगत की रीत है, फिर भी मन है क्लांत।
फिर भी मन है क्लांत, कभी भय उपजाता था
और कभी पाकर इसको मन हर्षाता था।
कह 'प्रशांत' इतना आगे विज्ञान बढ़ गया
छोटा सा वह तार मगर इतिहास गढ़ गया।।
-प्रशांत
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