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बोफर्स तोप सौदे में बिचौलिए की भूमिका निभाते हुए भारत की चंद बड़ी 'हस्तियों' को कथित दलाली खिलाने वाले इटली के कारोबारी 74 साल के ओतावियो क्वात्रोकी की 13 मई को इटली के मिलान शहर में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई। इटली में जन्मीं मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया माइनो गांधी के रास्ते पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अंतरंग मंडली में जगह बनाने वाले क्वात्रोकी ने बोफर्स तोपों की खरीद में कितनों के बारे न्यारे कराए, अब उनके जाने के बाद वे चेहरे कैसे और कब उजागर होंगे, इसको लेकर देश की जनता के मन में सवाल खड़ा हो गया है। आज की सरकार जिन सोनिया गांधी के इशारों पर चलती है उनके रहते उस मामले में देश की कोई जांच एजेंसी सच सामने लाएगी, इसमें संदेह है। क्योंकि घोटाला तो 1987 में ही सामने आ गया था पर तब सत्ता में राजीव गांधी थे, सो कोई रपट तक दायर नहीं की गई।
1990 में जनता दल सरकार ने स्विस सरकार को इस बाबत पहली चिट्ठी भेजी, लेकिन नवम्बर 1990 में कांग्रेस की बैसाखी पर टिकी चन्द्रशेखर सरकार के तहत सीबीआई ने अदालत में यह कहते हुए रपट को ही खारिज करने की अर्जी लगा दी कि इससे किसी जुर्म का खुलासा नहीं होता। बहरहाल 1993 में स्विस अधिकारियों ने ठोक-बजाकर बताया कि बोफर्स से दलाली खाने वालों में क्वात्रोकी का नाम भी है, लेकिन सीबीआई ने तब भी उनका पासपोर्ट जब्त नहीं किया, 72 घंटे इंतजार किया और क्वात्रोकी भारत से फुर्र हो गए। भारत से निकलने के बाद उन्हें फरार घोषित करके उनके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी कर दिया गया।
क्वात्रोकी को मुख्य आरोपी बनाने वाला बोफर्स आरोपपत्र 1999 में दर्ज किया गया था। मामले के दूसरे प्रमुख अभियुक्त, बोफर्स के मुखिया मार्टिन आर्डबो, एजेंट विन चड्ढा और पूर्व रक्षा सचिव एस. के. भटनागर पहले ही सिधार चुके हैं। इस मामले में कांग्रेस नीत सरकार का ऐसा जबरदस्त दबाव था कि 2009 में सीबीआई ने उनके खिलाफ तमाम मुकदमे बंद कर देने की अपील दायर की थी। सोनिया की दया से प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह ने 2009 में उन्हें क्लीन चिट देते हुए कहा था-क्वात्रोकी मामला भारत के लिए शर्मनाक है। यह भारत की न्यायिक व्यवस्था की अच्छी झलक पेश नहीं करता कि जब दुनिया यह कह रही हो कि (इसमें) कोई मामला नहीं बनता, तब हम लोगों को ऐसे सताएं।
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