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सर्वोच्च न्यायालय का ताजा निर्णय भले ही 10 जुलाई से प्रभावी हो लेकिन उससे अपराध प्रदेश कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश को इससे बड़ी राहत मिलने की उम्मीद की जा सकती है। अब तक विधानसभा के लिए चुने गए अपराधी भले अपने को खुशकिस्मत मान रहे हों, लेकिन उनको आदर्श मानकर बाहुबल के जरिये राजनीति में दाखिल होने वालों के लिए सदन का दरवाजा करीब-करीब बंद हो चुका है। पिछले दो दशक में मुलायम और मायावती छाप राजनीति के दिन अब लदते दिख रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय का ताजा फैसला उन सभी दलों और लोगों के लिए बुरी खबर की तरह है जो येन-केन प्रकारेण चुनाव जीतने की महारत हासिल कर चुके थे। वे भी इससे प्रभावित होंगे जो जेल में रहकर चुनाव लड़ते रहे और कभी-कभी जीतते भी रहे। उ.प्र. के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी, उसका खास विरोधी माफिया डॉन ब्रजेश सिंह, उसका साथी त्रिभुवन सिंह, कुख्यात बदमाश मुन्ना बजरंगी, भ्रष्टाचारी बाबू सिंह कुशवाहा, बादशाह सिंह, चंद्रदेव यादव, रंगनाथ मिश्र (सभी माया सरकार में मंत्री रहे) की राजनीति के रास्ते बंद हो सकते हैं। ये सभी कुख्यात लोग इस समय जेल में बंद हैं।
जातिवादी राजनीति के प्रभाव के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और मायावती ने राजनीति की अपराधीकरण को परवान पर चढ़ाया। पहले माया सरकार और अब मुलायम सिंह के मार्गदर्शन में चलने वाली उनके पुत्र अखिलेश यादव की सरकार में कई ऐसे मंत्री हैं जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। अब इनके चुनाव लड़ने पर रोक लग सकती है। न्यायालय ने कहा है कि जेल में रहकर अगर कोई वोट नहीं दे सकता है तो वह चुनाव भी नहीं लड़ सकता है। माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार के संगीन आरोप में फंसे माया सरकार के पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन, रामवीर उपाध्याय, अवधपाल सिंह यादव, रामअचल राजभर और अयोध्या प्रसाद पाल को भी जेल जाना पड़ सकता है। इसलिए इनका राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है। बाबू सिंह कुशवाहा जेल में रहकर गाजीपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे, अब वह नहीं लड़ सकेंगे। माफिया डॉन ब्रजेश सिंह पिछला लोकसभा चुनाव चंदौली से लड़ चुका है। वहां वह दूसरे नंबर पर था। पर इस बार उसका रास्ता बंद हो जाएगा। उसका साथी त्रिभुवन सिंह भी जेल में है। उसके रास्ते भी बंद हो जाएंगे। भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में जेल में बंद मुख्तार अंसारी जेल में रहकर आजमगढ़ की घोसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत गया। पिछले लोकसभा चुनाव में भी वह भाजपा के नेता डाक्टर मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ जेल में रहकर लड़ चुका है। कई हत्याओं के कारण जेल में बंद मुन्ना बजरंगी पिछला विधानसभा चुनाव जौनपुर की एक सीट से लड़कर हार चुका है। उसके भी रास्ते अब बंद हो गए। रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) समेत उ.प्र. के करीब आधे वर्तमान विधायक विभिन्न मामलों में दागी हैं। प्रतापगढ़ के बलीपुर गांव में पुलिस क्षेत्राधिकारी समेत तीन लोगों की हत्या के विवाद के चलते राजा भैया मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उ.प्र. की 403 सदस्यों की विधानसभा में करीब 200 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें सर्वाधिक विधायक सपा के ही हैं। उसके 224 विधायकों में 111 विधायक किसी न किसी आपराधिक मामले में संलिप्त हैं और न्यायालय में इन पर मुकदमा चल रहा है। उत्तर प्रदेश में दागी सांसदों की संख्या भी कम नहीं है। कई ऐसे हैं जो गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल रहे हैं। मिर्जापुर से सपा सांसद बाल कुमार पटेल कुख्यात डाकू ददुआ के भाई हैं। डकैती की वारदातों में इनकी भी भूमिका बताई जाती है। फूलपुर से बसपा सांसद कपिल मुनि करवरिया पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं। कैसरगंज से सपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह पर भी गंभीर आपराधिक आरोपों में कई मुकदमे दर्ज हैं। अंबेडकरनगर से बसपा सांसद राकेश पांडे भी गंभीर आरोपों में जेल जा चुके हैं। आर.के. सिंह पटेल (बांदा से सपा सांसद), धनंजय सिंह (जौनपुर से बसपा सांसद) समेत 29 दागी सांसद सिर्फ उ.प्र. के हैं।
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