रिजर्व बैंक ने माता वैष्णो देवी पर जारी किया सिक्का
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विरोध में उतरे कट्टरवादी
श्रीमातावैष्णोदेवीश्राइनबोर्डके 25 वर्षपूरेहोनेपररिजर्वबैंकऑफइण्डियानेमातावैष्णोदेवीकेचित्रसेयुक्त 5 रु. कासिक्काजारीकिया।
मुस्लिमकट्टरवादीमुस्लिमोंसेकहरहेहैंइससिक्केकालेन–देनमतकरो, यहहमारीमजहबीआस्थाकेखिलाफहै।
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भारत में किस घटना पर मुस्लिमों को गुस्सा कब आ जाएगा, यह कह पाना बड़ा कठिन है। विरोध करने वाले व्यक्ति को कोई न कोई बहाना चाहिए। इसलिए छोटी सी बात को बड़ा बनाकर विरोध दर्ज करना मुसलमानों की आदत हो गई है। वैष्णव देवी जम्मू स्थित एक ऐसा तीर्थ स्थल है जिसके माध्यम से गरीब मुस्लिम अपने टट्टुओं का सहारा लेकर अपनी रोटी-रोटी कमाते हैं। वैष्णव देवी तीर्थ स्थल का जब कायाकल्प किया जा रहा था उस समय तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने यात्रियों की सुविधा के लिए हेलीकाप्टर सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा था। उसका विरोध तीर्थ स्थल के आसपास बसे हिन्दुओं ने डट कर किया था। उनका यह कहना था की तीर्थयात्रियों को तो यह सुविधा मिल जाएगी लेकिन जम्मू के आसपास रहने वाले गरीब मुस्लिमों की रोजी-रोटी चौपट हो जाएगी। इस विरोध के कारण हेलीकाप्टर सेवा को प्रारम्भ किए जाने में समय लगा। लेकिन अब इन्हीं दयालु हृदय वाले हिन्दुओं के तीर्थ पर रिजर्व बैंक ने पिछले दिनों पांच रुपए का सिक्का जारी किया तो कट्टरवादियों के पेट में मरोड़ होने लगी। उन्होंने रिजर्व बैंक द्वारा जारी इस सिक्के का घोर विरोध किया है। देश के अनेक नगरों से सिक्के का घोर विरोध करने के समाचार धड़ल्ले से मिल रहे हैं। उनका कहना है कि एक देवी वाले सिक्के को वे स्वीकार नहीं कर सकते। इस देश की पंथनिरपेक्षता को जबरदस्त खतरा है। इस तरह की बातें मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में जोरों से प्रचारित की जा रही हैं। जहां भी मुस्लिम एकत्रीकरण होता है वहां यह अपील की जाती है कि वैष्णव देवी वाले सिक्के को स्वीकार नहीं किया जाए।
देश के कायदे-कानून के अनुसार रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए इस सिक्के को स्वीकार नहीं करना एक बड़ा अपराध है। लेकिन मुस्लिम कट्टरवादी इस मुहिम के द्वारा सरकार को मजबूर करने का प्रयास कर रहे हैं। चुनाव सिर पर है इसलिए सरकार इस मांग के सम्मुख झुक जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। मुम्बई के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में व्यापार अथवा लेन-देन करने वाले इस सिक्के को लेने से इनकार कर देते हैं। उनका कहना है कि हम किसी देवी-देवता के चित्र वाले सिक्के को स्वीकार नहीं कर सकते। यह हमारी आस्था के विरुद्ध है। सरकार की मुद्रा को अस्वीकार करना अपने आप में देश के कानून को न मानने जैसी हरकत है। सामान्य व्यक्ति तो इस उलझन में नहीं पड़ता है लेकिन इस प्रकार के आन्दोलन चलाकर कट्टरवादी अपनी बात मनवाने में सफल हो जाते हैं। देश के अनेक नगरों में ऐसा हो रहा है इसलिए अब यह चर्चा का विषय बन गया है। समाचार जब गैर-मुस्लिमों में पहुंचता है तो उनमें आक्रोश पैदा होना एक स्वाभाविक बात है।
यह सिक्का श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण होने पर भारतीय रिजर्व बैंक ने जारी किया है। देवी के इस चित्र वाले सिक्के का 'मूवमेंट आफ वेलफेयर' के अध्यक्ष अजीमुद्दीन तथा जमातुल उलेमा ने विरोध शुरू किया है। यह समाचार उर्दू प्रेस में भी प्रकाशित हो चुका है। इसलिए देश के अनेक भागों में इसका विरोध जारी है। रिजर्व बैंक और भारत सरकार से यह मांग की गई है कि इसे तत्काल बंद कर दिया जाए, क्योंकि यह मुस्लिमों की आस्था के विरुद्ध है।
मुम्बई के एक दैनिक ने यह भी समाचार प्रकाशित किया है कि मुम्बई के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में इसका बहिष्कार किया जा रहा है। मुस्लिम दुकानदार इसे स्वीकार नहीं करते हैं। जब कोई ग्राहक विवाद करने लगता है तो वे सीधा कह देते हैं कि आप हम से अपनी चाही हुई चीज न खरीदें। ग्राहकों का कहना है कि बहुत समझाने और बहस करने के बावजूद वे टस से मस नहीं होते। कट्टरवादी मुसलमान भले ही इस पचड़े में पड़े हुए दिखाई पड़ते हैं। लेकिन समझदार और समझौतावादी मुस्लिम व्यापारी इसके प्रति कोई नाराजगी व्यक्त नहीं करते हैं। उनका कहना है कि रिजर्व बैंक ने इसे जारी किया है तो हमें स्वीकार करने में क्या हिचकिचाहट है? यदि कोई इसे मजहब से जोड़ता है तो यह उसकी संकुचित सोच है। भारत बहुधर्मी देश है। यहां के हर वर्ग को अपनी मान्यता और संस्कृति पर चलने और सोचने विचारने का अधिकार है। लेकिन इस प्रकार की सोच के मुट्ठीभर लोग हैं।
इस मामले में कुछ मुस्लिम व्यापारी अपना एक दूसरा तर्क भी प्रस्तुत करते हैं। उनका कहना है कि हम तो स्वीकार कर लेते हैं लेकिन जब हम यही रुपया अपने अन्य ग्राहकों को देते हैं तो वे इसे लेने से इंकार करत देते हैं। हमारी यह मजबूरी है। आप ही बताइए इसका क्या हल है? बेचारा ग्राहक इस तर्क के आगे कुछ भी नहीं बोल पाता है। उसे मां वैष्णोदेवी वाले सिक्के के स्थान पर अन्य नोट दिए जाने का धर्म निभाना ही पड़ता है। पुलिस और आम जनता को तो इस बारे में पता नहीं चलता है। जिन्हें यह खेल खेलने में सफलता मिल जाती है वे मन ही मन प्रसन्न होने लगते हैं। लेकिन रिजर्व बैंक ने पहली बार तो इस प्रकार के चित्र वाले सिक्के जारी नहीं किए हैं। इसके पहले भी अनेक सिक्के जिन पर देवी-देवता के साथ संत और महापुरुषों के चित्र थे उनकी याद में सिक्के जारी किए गए हैं। जब मदर टेरेसा के चित्र वाला सिक्का जारी किया गया था तो ऐसा तर्क कभी नहीं दिया गया। संत अलफोंसा के चित्र वाले सिक्के भी जारी किए गए और बाजार में चले। उस समय किसी ने ऐसा तर्क नहीं दिया कि सिक्के पर चित्र होने से उनकी आस्था खतरे में पड़ जाती है। ब्रिटिश काल में जॉर्ज पंचम और रानी विक्टोरिया की तस्वीर वाले सिक्के लोगों ने स्वीकार ही नहीं किए, बल्कि समय आने पर उसे तोहफों के रूप में भी पेश किए हैं। बड़ी दरगाहों की तिजोरियों में अपनी मन्नत उतारने के लिए वहां बिना हिचकिचाहट के उपयोग किया है। भारत में तो अनेक नायकों के चित्र नोटों पर छापे गए हैं। पाकिस्तान की करंसी पर मोहम्मद अली जिन्ना विराजमान हैं। विश्व में यह परम्परा रही है कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान के रूप में हर देश अन्य देशों के ऐतिहासिक स्थल और ऐतिहासिक पुरुष तथा इसी प्रकार की घटनाओं पर टिकट प्रकाशित करते रहते हैं। इसी कड़ी में एक बार सीता जी अशोक वाटिका में बैठी हैं यह चित्र सऊदी अरब ने छापा था। दूसरे महायुद्ध के समय भारतीय सेना की एक टुकड़ी जिनमें सभी मत-पंथ और जाति के लोग थे अंग्रेजों के पक्ष में लड़ने के लिए गई थी। युद्ध के मोर्चे पर जाते समय उन सिपाहियों से पूछा गया था कि आपकी आपके कुटुम्ब अथवा देश के लिए कोई अंतिम इच्छा हो तो बताइये उसे हम पूरा करने का प्रयास करेंगे। लीबिया जाने वाली टुकड़ी ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में यह बताया कि हमारे इस दल में भारत के सभी जाति, धर्म और समाज के लोग शामिल हैं। कोई हिन्दू है तो कोई मुसलमान और कोई सिख। मरणोपरांत हम सभी को एक सामूहिक कब्र में दफनाया जाए। इतना ही नहीं उस कब्र पर स्वस्तिक का एक बड़ा निशान खोदा जाए। इससे दुनिया पहचान जाएगी कि यहां सभी हिन्दुस्थानी दफन हैं। इन सैनिकों की वसीयत से यदि कट्टरवादी कुछ सीखें तो अवश्य ही उनके ज्ञान चक्षु खुल जाएंगे। मुम्बई से प्रकाशित होने वाले एक उर्दू दैनिक ने अपने बाज गश्त नामक स्तम्भ में चार नागरिकों के विचार इस समस्या पर प्रकाशित किए हैं। संयोग से चारों मुस्लिम बंधु हैं। एक महोदय का कहना है कि यदि किसी कारणवश देवी वाले सिक्के का अपमान हो गया तो यह ठीक नहीं होगा। दूसरे महानुभाव का कहना है कि मस्जिद में जाते हैं तो देवी की तस्वीर वाले सिक्के से उन्हें परेशानी होगी। यदि किसी गंदे स्थान पर सिक्का दिया तो बहुसंख्यक समाज के सदस्यों की भावना आहत होगी। तीसरे सज्जन की राय थी कि देवी के स्थान पर कोई ऐतिहासिक तस्वीर होती तो अच्छा था। देवी का यदि अपमान हुआ तो सम्प्रदायों के बीच तनाव भी पैदा हो सकता है। चौथे महानुभाव की टिप्पणी थी कि हमारा देश सेकुलर है। सरकार के इस निर्णय से ऐसा लगता है कि वे एक सम्प्रदाय के लोगों को खुश करना चाहती है। जफ्फर हुसैन
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