कश्मीर में लश्कर का हमला
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जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में 24 जून को हुए आतंकी हमले से कश्मीर एक बार फिर दहल उठा। सेना के काफिले पर हुए हमले में आठ जवान शहीद हो गए और 19 घायल हो गए। घायलों में सेना के 13, सीआरपीएफ का एक और पुलिस का एक जवान है। गुप्तचर एजेंसियों को इस हमले में आतंकी संगठन लश्करे तोएबा का हाथ होने का शक है। हालांकि हमले के तुरन्त बाद हिजबुल मुजाहिद्दीन ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए आगे भी हमले जारी रखने की धमकी दी थी।
24 जून को घाटी में पहला हमला शाम करीब साढ़े चार बजे लालचौक से छह किलोमीटर दूर श्रीनगर-बारामूला राजमार्ग पर शाह अनवर कालोनी में एक अस्पताल के पास हुआ। पहले से ही घात लगाकर बैठे पांच आतंकियों ने सैन्य काफिले पर ग्रेनेड फेंका और अत्याधुनिक हथियारों से गोलीबारी की। इस हमले में एक सैन्य वाहन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और उसमें सवार दो जवान मौके पर ही शहीद हो गए, जबकि 16 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। हमला होते ही मुठभेड़ शुरू हो गई। आतंकियों को पकड़ने के लिए शाह अनवर कालोनी में घेराबंदी की गई, लेकिन आतंकी भाग निकले। सभी घायल सैनिकों का बादामी बाग स्थित सैन्य अस्पताल में उपचार चल रहा है। दूसरा आतंकी हमला बरजुला इलाके में सीआरपीएफ के बंकर पर हुआ। मोटरसाइकिल पर सवार आतंकियों ने बंकर पर ग्रेनेड फेंकने के साथ गोलियां भी चलाईं। इस हमले में सीआरपीएफ का एक सबइंस्पेक्टर और राज्य पुलिस का एक कर्मी घायल हो गया। सीआरपीएफ के अन्य जवान जब तक जवाबी कार्रवाई करते, आतंकी भगदड़ के बीच भाग निकले। प्रतिनिधि
अमरनाथ यात्रा पर जिहादी निगाहें
'पुलिसकर्मियों' ने किया यात्रा में तैनाती से इनकार
ऐतिहासिक परम्पराओं को दरकिनार करते हुए जम्मू-कश्मीर में पवित्र अमरनाथ यात्रा की शुरुआत ज्येष्ठ पूर्णिमा यानी 23 जून की बजाय इस बार 28 जून से तय की गई है। इसके पीछे सेकुलर सरकार के अपने तर्क हैं। 28 जून से आरम्भ होकर यह यात्रा अब 60 नहीं, 55 दिन की ही होगी, लेकिन सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि अमरनाथ यात्रा पर जिहादी के हमले का खतरा है।
हर साल ही मजहबी उन्मादी तत्व यात्रियों के कारण 'कश्मीर पर भारत के सांस्कृतिक आक्रमण' के राष्ट्रविरोधी जुमले उछालते हैं और राज्य की अब्दुल्ला सरकार कई मौकों पर उनके जाल में फंसती और उनकी भाषा बोलती दिखाई देती है। अब भी जब केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने खुफिया जानकारी के आधार पर अमरनाथ यात्रा पर जिहादी खतरे की चेतावनी दी, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसे हल्के में लेते हुए कहा कि यात्रा पर कोई नया खतरा पैदा नहीं हुआ है, सुरक्षा के उचित प्रबंध किए गए हैं।
जो उमर अब्दुल्ला इस बार यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद होने की बात कर रहे हैं, उन्हीं की पुलिस की एक बटालियन के 900 सिपाही अमरनाथ यात्रा में तैनाती से मुकर गए हैं। एक समुदाय विशेष के इन सिपाहियों ने तरह-तरह के बहाने बनाकर अपनी गैरहाजिरी पक्की कर ली है। कश्मीर घाटी में इनके प्रशिक्षण शिविर में भड़काऊ नारे लगाने, तोड़-फोड़ और उपद्रव के कई उदाहरण देखने में आए हैं। इतना ही नहीं, अमरनाथ यात्रा के वक्त तैनाती पर जाने के लिए इन्होंने अजीब सी शर्तें भी रख दी हैं, जो नियमों का सीधा-सीधा उल्लंघन है।
आखिर ये पुलिसकर्मी कौन हैं? बताया जाता है कि ये वे मुस्लिम नौजवान हैं जो करीब दो साल पहले देशद्रोही हरकतों में लिप्त थे और सुरक्षाकर्मियों पर पत्थर बरसाते थे। इन 'भटके' नौजवानों को राह पर लाने के लिए पुलिस नियमों की अनदेखी करते हुए करीब 2500 युवकों को पुलिस में भर्ती किया गया था। ये सब एक ही समुदाय के हैं। ऐसी पुलिस और राज्य सरकार में ऐसे नेतृत्व के चलते ऐतिहासिक अमरयात्रा यात्रा की सकुशलता को लेकर चिंताएं जगना स्वाभाविक ही है। जम्मू से विशेष प्रतिनिधि
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