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अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हजारों चीनी हैकरों की 'फौज' वर्षों से अमरीका, भारत और दूसरे पश्चिमी देशों की साइबर जासूसी करने में जुटी है। वह बड़े पैमाने पर प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों के खुफिया, सुरक्षा, कारोबारी और कूटनीतिक प्रतिष्ठानों पर साइबर हमले कर रही है। अमरीका जैसी विश्व-शक्ति तक उसकी कुदृष्टि से बच नहीं पाई है और भारत में तो प्रधानमंत्री कार्यालय तथा रक्षा मंत्रालय से लेकर विदेश मंत्रालय तक की बहुत-सी संवेदनशील जानकारियां चीनी हैकरों के हाथ लग चुकी हैं।
फिर भी इस विशाल समूह के लिए 'फौज' शब्द का प्रयोग अब तक अनौपचारिक रूप से ही, मुहावरे के तौर पर होता था क्योंकि दुनिया के विरोध को नजरंदाज करते हुए चीन हमेशा यही कहता रहा है कि अगर उसकी जमीन से कोई दूसरे राष्ट्रों के विरुद्ध साइबर हमले करता है तो वह चीन सरकार की जानकारी में नहीं है और उसे सरकारी समर्थन होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
बहरहाल, जून 2013 में हुए चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के युद्धाभ्यास ने सिद्ध कर दिया है कि असंख्य हैकरों की वह चीनी फौज गैर-सरकारी नहीं, बल्कि पूरी तरह सरकारी है। पीएलए ने पारंपरिक युद्ध कलाओं के साथ-साथ बाकायदा साइबर युद्ध का भी पूर्वाभ्यास किया है। वहां की स्वदेशी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार चीन के स्वायत्त मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र में चीनी सेना ने डिजिटल तकनीकी समेत नई तरह की युद्ध क्षमताओं का परीक्षण किया है और सूचना-युद्ध के संदर्भ में अपनी स्थिति का आकलन किया है।
स्पष्ट है कि अगर विश्व में कोई देश साइबर युद्ध को गंभीरता से ले रहा है तो वह चीन है। दो साल पहले चीन ने पहली बार माना था कि उसकी सेना में एक साइबर सिक्यूरिटी स्क्वॉड भी है। हालांकि उसका दावा है कि उसका साइबर सुरक्षा ढांचा पूरी तरह आत्मरक्षात्मक है और किसी भी देश के प्रति आक्रामक गतिविधियों को अंजाम नहीं देता। उल्टे वह अमरीका और भारत को साइबर हमलों के लिए दोषी ठहराता है।
निशाना पूरी दुनिया
जमीनी स्तर पर स्थिति चीनी दावों की पोल खोल देती है। शायद ही कोई सप्ताह किसी न किसी देश के संवेदनशील प्रतिष्ठान पर चीनी साइबर हमले की खबर के बिना बीतता हो। हाल ही में आस्ट्रेलियन टेलीविजन ने खबर दी थी कि चीनी हैकरों ने वहां की खुफिया एजेंसी के नए मुख्यालय के 'फ्लोर प्लान' चुरा लिए हैं। पिछले महीने अमरीकी रक्षा विभाग पेंटागन ने संसद को भेजी रपट में कहा था कि वहां के सरकारी प्रतिष्ठान बार-बार चीनी सरकार और सेना से जुड़े हैकरों के साइबर हमलों का शिकार हो रहे हैं जिनका लक्ष्य बेहद गोपनीय खुफिया सूचनाएं, सुरक्षा उपकरणों के डिजाइन, रक्षा प्रतिष्ठानों का आंतरिक ढांचा, संवेदनशील सरकारी दस्तावेज, बड़े कारोबारी संस्थान आदि होते हैं।
दो साल पहले भी पेंटागन ने कहा था कि चीन में हैकरों के 250 समूह मौजूद हैं जिनकी गतिविधियों को चीन सरकार अनदेखा कर रही है। यह उसकी अदृश्य सेना है जो कभी दलाई लामा के इमेल हैक करती है, तो कभी उइगुर आंदोलनकारियों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के इंटरनेट खातों पर कब्जा कर लेती है।
चीनी साइबर हमलों की समस्या इतनी गंभीर है कि पिछले दिनों चीनी राष्ट्रपति झी जिनपिंग की अमरीका यात्रा के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने खुद यह मुद्दा उठाया था। इससे पहले मार्च में श्री जिनपिंग के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद बधाई के लिए किए गए फोन कॉल के दौरान भी ओबामा ने इस मुद्दे पर उनका ध्यान खींचा था।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय के अनुसार चीनी साइबर जासूस दर्जनों सरकारों के कंप्यूटर तंत्रों में घुसपैठ कर चुके हैं। वे कई राष्ट्राध्यक्षों, शासनाध्यक्षों, संसदों, खुफिया एजेंसियों तक के कंप्यूटर तंत्रों में अपने बोटनेट (सूचनाएं चुराने वाले सॉफ्टवेयर) तैनात कर चुके हैं। सन 2002 में 'ऑपरेशन टाइटन रेन' नामक साइबर हमले में चीनी हैकरों ने अमरीकी रक्षा विभाग का इतना डेटा चुरा लिया था, कि यदि इसे प्रकाशित किया जाए, तो अमरीकी वायुसेना के मेजर जनरल विलियम लार्ड के शब्दों में 'कांग्रेस की पूरी लाइब्रेरी भर जाए।'
बात सिर्फ गोपनीय एवं सामरिक सूचनाएं चुराने तक सीमित नहीं है। ये हैकर जरूरत पड़ने पर सरकारी व्यवस्थाओं और सेवाओं को ठप करने में भी सक्षम हैं। सितम्बर 2007 में चीनी हैकिंग के कारण करीब एक सप्ताह तक पेंटागन का नेटवर्क बंद रहा। ब्रिटेन में आशंका है कि चीनी हैकर चाहें तो तीन घंटे के भीतर वहां का सारा तंत्र लकवाग्रस्त कर सकते हैं।
जुलाई 2010 में भारतीय उपग्रह इनसैट 4बी पर 'स्टक्सनेट' वायरस के हमले ने भारत सरकार को जैसे सोते में जगाया था। चीनियों ने भारतीय उपग्रह में यह खतरनाक वायरस पहुंचा दिया था। मकसद यह था कि उसके जरिए प्रसारण करने वाले भारतीय टेलीविजन चैनलों की प्रसारण व्यवस्था गड़बड़ा जाए और तब भारत किसी चीनी उपग्रह की शरण में चला जाए। हालांकि भारत किसी तरह इस अनहोनी से बचने में सफल हो गया।
बार–बार मिले हैं सबूत
चीन हर आरोप का बदस्तूर खंडन करता रहा है। उसका दावा है कि उसका साइबर सुरक्षा कार्यक्रम विशुद्ध आत्मरक्षात्मक कार्यक्रम है। बहरहाल, कुछ महीने पहले चीन के दावों का उसी के सरकारी टेलीविजन पर पर्दाफाश हो गया था जब एक कार्यक्रम में गलती से चीनी सेना की देखरेख में होने वाली हैकिंग की कार्रवाइयों की एक झलक दिखा दी गई थी। बाद में यह वीडियो तुरत-फुरत हटा दिया गया।
हैकिंग के मामलों की जांच करने वाले अनेक विशेषज्ञों ने पाया है कि सरकारों को निशाना बनाने वाले वायरसों और इंटरनेट हमलों का कोड चीनी भाषा में लिखा गया है। हमला करने वाले कंप्यूटरों के आईपी एड्रेस (इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों की पहचान बताने वाला एक नंबर) भी चीन से जुड़े थे। और फिर जिन देशों को निशाना बनाया गया, वे वही थे जिनके प्रति चीन का रवैया शत्रुतापूर्ण है, जैसे भारत, अमरीका, जापान, वियतनाम आदि। इसी तरह, ऐसी कई इंटरनेट कंपनियों पर भी साइबर हमले हुए हैं, जिनके साथ चीन सरकार का छत्तीस का आंकड़ा रहा है, जैसे- गूगल और याहू। अनेक मौकों पर हमलावरों के 'आईपी एड्रेस' की पहचान चीनी शहरों में हुई है।
साइबर हमलों की निगरानी रखने वाले टोरंटो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पता लगाया था कि पिछले साल भारतीय ठिकानों पर हुए साइबर हमले चीन के चेंगदू शहर से किए गए थे। और इस साल अगस्त में मैकेफी ने भारत तथा 72 दूसरे ठिकानों की हैकिंग के बारे में जो रपट पेश की है वह भी चीन को ही हमलावर करार देती है। रपट के अनुसार इसके पीछे कम से कम एक सरकारी संगठन की भी भूमिका है।
जाहिर है, चीन की धरती से होने वाले साइबर हमले सुसंगठित और सुनियोजित अंदाज में किए जा रहे हैं। ताइवान के राष्ट्रीय सुरक्षा ब्यूरो ने हाल ही में रहस्योद्घाटन किया था कि चीन में एक लाख लोगों की साइबर सेना मौजूद है। ऐसे में चीनी चुनौती को गंभीरता से लिया जाना जरूरी है क्योंकि इंटरनेट युग में युद्ध हथियारों से नहीं, बल्कि संचार तंत्र के जरिए लड़ा जाएगा। ऐसी जंग में प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों के सुरक्षा, संचार, ऊर्जा, बैंकिंग, कारोबारी तथा प्रशासनिक ढांचे को पंगु बनाने के लिए इंटरनेट और संचार नेटवर्क शत्रु देशों के निशाने पर रहने वाले हैं। बालेन्दु शर्मा दाधीच
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