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संस्थानों को पहले जानें, सुनें और फिर लें दाखिला

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Jun 22, 2013, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 22 Jun 2013 15:11:44

इस वर्ष मेघा को जन सम्पर्क (मास कम्युनिकेशन) के स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना है। अपने पाठ्यक्रम को लेकर उसके मन में कोई संदेह नहीं है लेकिन संस्थान के चयन में वह असमंजस की स्थिति में है। उसके सामने संस्थानों की लंबी सूची है। ऐसी स्थिति में किसी एक का चयन कर पाने में मेघा को दिक्कतें आ रही हैं। दरअसल, इस तरह की परेशानी से सिर्फ मेघा ही नहीं, बल्कि कई छात्र जूझ रहे होंगे।

अभी कुछ साल पहले तक परंपरागत, गैर परंपरागत, पेशेवर व रोजगारपरक पाठ्यक्रमों के लिए गिने-चुने संस्थान होते थे। छात्रों को इनके नाम जुबानी याद होते थे। लेकिन आज परिस्थिति पूरी तरह से बदली नजर आ रही है। चंद किलोमीटर के दायरे में ही छात्रों को किसी विशेष पाठ्यक्रम से संबंधित कई नामी-गिरामी संस्थान मिल जाएंगे। संसाधन, रोजगार देने के मामले में और शिक्षक आदि के मामले में सभी एक-दूसरे से अव्वल ही नजर आते हैं। इस मोड़ पर गेंद पूरी तरह से छात्रों के पाले में होती है कि वे किसको चुनें और किसे अस्वीकार कर दें। इस काम में उनकी मदद के लिए ढ़ेरों विकल्प भी मौजूद रहते हैं। विज्ञापन, वेबसाइट पर देखकर यदि वे तय नहीं कर पा रहे हैं तो वे इस मामले में किसी विशेषज्ञ की राय ले सकते हैं।

खुद का आकलन करें

छात्रों का स्वभाव महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति का होता है। वह दूसरों की सफलता व लोकलुभावने विज्ञापनों को देखकर अपना पैमाना तय करना चाहता है। अपनी क्षमता तथा पहुंच को दरकिनार करते हुए वह उस दिवास्वप्न में फंसता चला जाता है। बाद में उसे पछताने के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता। इसलिए छात्र सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास करें कि जिस संस्थान का वे चयन कर रहे हैं, वे खुद उसके अनुकूल हैं कि नहीं? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब पूरी ईमानदारी से दिया जाना चाहिए। किसी आवेग या किसी के बहकावे के चक्कर में पड़कर कभी फैसला न लें। जो संस्थान आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे, उसमें विशेषज्ञों की सलाह लेकर अपना दमखम दिखाएं।

विज्ञापनों से बचें

कार्य क्षमता के दौर में लगभग सभी संस्थानों में खुद को सर्वोपरि साबित करने की होड़ मची रहती है। पोस्टर-बैनर, अखबार-टीवी चैनलों व इंटरनेट आदि के जरिए वे छात्रों के अंदर कई तरह के भ्रम भी पैदा करते हैं। जबकि दाखिला लेने के नाम पर उनके पास कुछ नहीं होता। अक्सर उन्हीं भ्रामक विज्ञापनों के चक्कर में फंसकर छात्र गलत संस्थान का चयन कर बैठते हैं। इसलिए दाखिले से पूर्व छात्र उनकी मान्यता की परख अवश्य कर लें। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) सहित केंद्र व राज्य सरकार की कई ऐसी संस्थाएं हैं जो इन संस्थानों को मान्यता प्रदान करती हैं। उन संस्थाओं की वेबसाइट पर बाकायदा इनकी सूची होती है। छात्र वहां से जानकारी ले सकते हैं।

वरिष्ठों की मदद लें

देश के कोने-कोने में 'करियर काउंसलर्स' मौजूद हैं। इंटरनेट, फोन अथवा व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलकर छात्र अपनी जिज्ञासा शांत कर सकते हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था। आज यदि छात्र जरा भी जागरूक है तो पलक झपकते ही उसको संस्थानों के चयन संबंधी समस्याओं का हल मिल सकता है। छात्रों के वरिष्ठ भी उनके इस काम में सहायक साबित हो सकते हैं। जिस परिस्थिति से छात्र आज गुजर रहा है, ठीक वैसी ही परिस्थिति उसके वरिष्ठ के साथ भी रही होगी। इसलिए उनकी मदद लेने में जरा भी संकोच न करें। सब कुछ तय हो जाए तो एक बार खुद जाकर अपने स्तर से संस्थान के बारे में सारी बातें पता कर सकते हैं।

खर्च की जानकारी

कई बार योग्य होते हुए भी छात्र आर्थिक तंगी के चलते अपने मनपसंद संस्थान में दाखिला लेने से वंचित रह जाते हैं। उनकी यह बाधा शिक्षा ऋण  के जरिए दूर हो सकती है। संस्थान तय हो जाने के बाद पढ़ाई शुल्क, छात्रावास खर्च, प्रायोगिक शुल्क आदि की पूरी जानकारी अवश्य लें। यह भी पता करें कि शुल्क कितनी किस्तों में दे सकते हैं और उस पर कुल खर्च कितना आएगा। यदि कोई छिपा हुआ शुल्क है तो उसके बारे में भी खुलकर पूछ लें। संभव है कि उनके यहां निर्धन अथवा मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति का कोई प्रावधान हो। छात्रवृत्ति मिल जाने से उनकी राह और आसान हो जाएगी।

माता-पिता को भरोसे में लें

छात्र अपने लिए जो भी पाठ्यक्रम अथवा संस्थान का चयन कर रहे हैं, उस संदर्भ में अपने माता-पिता को जरूर अवगत कराएं। उनके मन में किसी तरह का भ्रम न डालें। संस्थान की जो भी फीस अथवा सुविधाएं हैं उसकी पूरी जानकारी माता-पिता को भी होनी चाहिए। यदि उनके कुछ सुझाव अथवा निर्देश हैं तो उन्हें अवश्य परखें। इससे माता-पिता को भी लगेगा कि उनका बच्चा उन्हें दरकिनार नहीं कर रहा है और वे दोगुने उत्साह के साथ मदद में लग जाएंगे। शुल्क का प्रबंध भी तो उन्हें ही करना है। यदि बच्चे माता-पिता के भरोसे पर खरे उतरें तो वे अपनी हैसियत से आगे जाकर शुल्क अथवा सुख-सुविधाओं का प्रबंध करेंगे।

इन<परÉदेंnध्यानÉकॉलेजäव कोर्सºकीEमान्यता,ÉफीसÒकीEसंरचनाxऔरèकिस्त,iसंसाधन,xÉरोजगारÉप्रदाताiव नियोक्ताHविवरण,hशिक्षक,Eपुस्तकालय,ªप्रयोगशाला,Éछात्रावास।ºÉप्रस्तुति:iवी.के.äगर्ग

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