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सितम्बर 2011 में जब भारत के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह बंगलादेश यात्रा पर गये थे तब वहां ढाका में प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजिद से भारत-बंगलादेश के बीच जमीन के कुछ हिस्सों को लेकर चले आ रहे विवाद पर 'बड़ा दिल' दिखा आये थे। उन्होंने बंगलादेश को एक करार के तहत भारत की बहुत सारी जमीन भेंट कर दी थी जिसमें असम, मेघालय और त्रिपुरा के सीमावर्ती इलाकों के कुछ हिस्सों के साथ ही तीन बीघा गलियारा भी था। भारत के नेताओं को लगता था कि बड़ा दिल दिखाने के बदले बंगलादेश की प्रधानमंत्री शायद अपनी धरती से भारत के विरुद्ध हिंसक और विद्रोही गतिविधियां चलाने वाले गुटों पर प्रभावी कदम उठाएंगी।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बंगलादेश भारत विरोधी विद्रोही गुटों की शरणस्थली बना रहा है। इसका सबूत पिछले दिनों देखने में आया है। सूत्रों से पता चला है कि हाल ही में उत्तर बंगाल के हिंसक अलगाववादी गुट कामतापुर लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (केएलओ) के लड़ाकों ने बंगलादेश में अपने छुपे ठिकानों से निकलकर फिर से सर उठाना शुरू कर दिया है। यह वही गुट है जो पिछले 20 साल से सुप्त पड़ा था, लेकिन अब हालात अपने अनुकूल पाकर इस गुट के नेता/लड़ाके फिर से एकजुट होने लगे हैं। पता चला है कि तामिर दास उर्फ जीवन सिंह की अध्यक्षता में 15 सदस्यीय केन्द्रीय समिति गठित की गयी है। इस गुट का उपाध्यक्ष बना है वह टॉम अधिकारी जिसे अभी हाल में पश्चिम बंगाल सरकार ने 'बंदी मुक्ति समिति' की सिफारिश पर जेल से आजाद किया था। पता यह भी चला है कि अपने 20 साल के अनुभवों के आधार पर इस गुट ने अपने में बड़े बदलाव किये हैं, अलग-अलग विभाग बनाये हैं और हर विभाग का एक कमांडर तय कर दिया है। इस नयी गठित समिति में नेपाली और असम के कोच-राजवंशी समुदाय के कई लोग, शामिल हैं। उदाहरण के लिए अध्यक्ष जीवन सिंह और उपाध्यक्ष टॉम अधिकारी के अलावा समिति में कैलाश कोच को महामंत्री, प्राण नारायण कोच को सहमहामंत्री, श्यामराय को मुख्य आयुक्त बनाया गया है। यह गुट दूसरे विद्रोही गुटों के साथ भी सलाह-मशविरा करता रहता है। प्राण नारायण का आरोप है कि 'राज्य सरकार राजवंशी-कामतापुरियों की आर्थिक-सामाजिक उन्नति के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। यह पिछली वाममोर्चा सरकार से कोई अलग व्यवहार नहीं कर रही है। ऐसी स्थिति में हमारे पास केएलओ को फिर से खड़ा करने के अलावा कोई चारा नहीं था।' पता यह भी चला है कि केएलओ की इस नई बनी समिति ने उल्फा, एनडीएफबी, माओवादी तथा अन्य विद्रोहियों से सूत्र जोड़ लिये हैं।
दिसम्बर 1993 में असम-भूटान सीमा पर जलपाईगुड़ी जिले के पुकुरी गांव में केएलओ की बुनियाद पड़ी थी। उस समय भी इसका अध्यक्ष था जीवन सिंह। इसका फिर से गठन पूर्वोत्तर भारत, नेपाल या म्यांमार के किसी गुप्त ठिकाने पर हुई बैठक में किया गया है। उल्लेखनीय है कि 2003-04 के दौरान भूटान में विद्रोही गुटों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई हुई थी, उस वक्त केएलओ को तगड़ा झटका लगा था। इसके कैडर हथियार डालने लगे थे। पिछली वाममोर्चा सरकार के शासन में हथियार डालने वाले केएलओ कैडरों के लिए 'मिशन नवदिशा' नाम से प्रकल्प शुरू किया था, लेकिन वह निष्प्रभावी ही रहा था। खबर है कि उत्तर बंगाल और असम के कई पढ़े-लिखे युवक केएलओ के झांसे में फंस रहे हैं। पिछले चार महीनों के दौरान पुलिस ने उत्तर बंगाल से कई हथियारबंद कैडरों को पकड़ा है। इस मामले पर जलपाईगुड़ी के जिला पुलिस अधीक्षक अमित जवलागी ने कहा कि 'केएलओ के फिर से सर उठाने के बारे में पुलिस पड़ताल कर रही है और हम इस तरफ से चौकन्ने हैं।' बासुदेव पाल
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