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कांग्रेस के पूर्व मंत्री नवीन जिंदल के बहाने कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले का सच खुलने लगा है। सरकार के मंत्रियों के बीच करोड़ों की रिश्वत और अरबों के प्राकृतिक संसाधनों की लूट की कहानी जनता के सामने आ चुकी है। अब कोई संदेह नहीं कि जनमानस को भ्रमित करने का काम उसी 'चौकीदार' ने किया जिसके सामने देश की तिजोरी पर डाका डाला जा रहा था। जनता हतप्रभ है, क्या भारत को छलने का यह सारा काम सत्ता शीर्ष की रजामंदी से चल रहा था!!
आज पता चलता है कि गत वर्ष, स्वतंत्रता दिवस समारोह के 12 दिन बाद, साफ–सच्चे दिखने वाले प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र के मंदिर में खड़े होकर देश से कितना भारी झूठ बोला था।
तब कोयला खदान आवंटन में किसी भी गड़बड़ी की बात नकारने वाले और अपने मंत्रालय के हर फैसले की जिम्मेदारी लेने वाले प्रधानमंत्री अब जरूर चाहते होंगे कि उनका कहा लोगों को याद ना आए। परंतु उनके बयानों और तथ्यों का विरोधाभास समेटे यह ऐतिहासिक झूठ संसदीय अभिलेखों का हिस्सा बन चुका है।
प्रधानमंत्री, राज्यमंत्री और पूर्वमंत्री की इन जुड़ती कड़ियों में एक अन्य कांग्रेस शासित राज्य, राजस्थान का भी जिक्र जरूरी है जहां बाड़मेर जिले में जिंदल समूह की ही फर्म राजवेस्ट पावर प्रोजेक्ट और इसी समूह से जुड़ी साउथ वेस्ट माइनिंग की मिलीभगत से हजारों करोड़ रुपए के राजस्व नुकसान और एक अलग ही घोटाले की खबरें उठी हैं। राजस्थान विद्युत नियामक आयोग द्वारा साउथ वेस्ट के खनन ठेके निरस्त करने के आदेश को ठेंगा दिखाते इस समूह के संदिग्ध कामकाज पर जांच एजेंसी की निगाह जरूर गई होगी। जिंदल समूह को छोड़कर जांच एजेंसियों ने अब तक किसी बड़ी मछली पर हाथ नहीं डाला है। इस मामले में शामिल बाकी 'हस्तियों' पर कब ध्यान दिया जाएगा, यह देखने वाली बात है। क्या आवंटन प्रक्रिया में शामिल प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों से जांच एजेंसियां पूछताछ करेंगी? निष्पक्षता का तकाजा है कि जांच में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। वैसे, सीबीआई छापेमारी और जिंदल व दासारी नारायण राव पर खबरों की बमबारी के बीच प्रधानमंत्री बच नहीं सकते। आवंटन के एवज में जिंदल समूह द्वारा दी गई सवा दो करोड़ रुपए रिश्वत की कहानी खंगालने के दौरान यह चौंकाने वाला तथ्य भी सामने आता है कि 2004 से 2009 के दौरान जब–जब डॉ. मनमोहन सिंह ने कोयला मंत्रालय थामा, राज्यमंत्री यूपीए घटक दलों का नहीं, बल्कि उन्हीं की पार्टी का रहा!!
कांग्रेस 1.87 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन करने वाली 'कैग' रिपोर्ट को झूठा कहती रही, सरकार की वकालत करते मंत्री देश को 'जीरो लॉस' का सिद्धांत पढ़ाते रहे। मगर एक–एककर घोटाले की पर्तें उघड़नी शुरू हो गई हैं।
फिलहाल कांग्रेस की त्रासदी यह है कि वह अपनी ही सरकार के घोटालों के खुलासों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई बताकर कार्रवाई का श्रेय भी नहीं ले सकती।
भले ही संयोग कहें, लेकिन यह ध्यान देने वाली बात है कि वरिष्ठ नौकरशाहों के अंतरमंत्रालयी समूह ने कांग्रेस में खलबली मचाने वाली कार्यवाही उस वक्त पूरी की जब प्रधानमंत्री देश में नहीं थे। समूह ने 57 में से 53 आवंटित कोल ब्लॉक रद्द करने की सिफारिश रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया और रद्द किए गए आवंटनों की कीमत करीब 1.85 लाख करोड़ बैठती है। यह आंकड़ा 'कैग' की तथ्यात्मक दृढ़ता और सरकार का खोखलापन उजागर करने के लिए काफी है।
वन, पर्यावरण, नीति, नियम सब कुछ ताक पर रख किए गए देशव्यापी कोयला घोटाले में केन्द्रीय सत्ता की अर्थलोलुप, देशघाती कलंक कथा का अभी तो पहला ही पन्ना पलटा गया है, पूरी कहानी सामने आनी बाकी है।
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