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बात कई साल पुरानी है। शर्मा जी के चालाक बेटे चिंटू ने उनसे पूछा – पिताजी, आप आंख बंद कर हस्ताक्षर कर सकते हैं ?
– हां, हां। क्यों नहीं ?
इस पर चिंटू ने एक कागज आगे बढ़ा दिया। शर्मा जी ने उस पर हस्ताक्षर कर दिये। कई दिन बाद उन्हें पता लगा कि वह चिंटू का रिपोर्ट कार्ड था। अधिकांश विषयों में फेल होने के कारण प्राचार्य जी ने उस पर पिताजी के हस्ताक्षर कराने को कहा था।
पिछले दिनों 'मैडम सरकार' के संचालक प्रख्यात (अन) अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह जी ने भी अपना रिपोर्ट कार्ड जारी किया। वहां उपस्थित लोगों ने अपने-अपनों को खूब रेवड़ी बांटी थी। सबके पेट और जेबें भरी थीं। उसकी सुगंध और मिठास से तर होकर 'पंडित सो जो गाल बजावा' की तर्ज पर सबने खूब गाल और हाथ बजाये।
आपने दायें से राम और बायें से रावण को दिखाने वाले द्विआयामी चित्र देखे ही होंगे। यह रिपोर्ट कार्ड भी ऐसा ही था। जनता को इसका एक ही पक्ष दिखाया गया, पर मीडिया की कृपा से जब दूसरा पक्ष सामने आया, तो शर्मा जी पैरों के नीचे से चप्पलें खिसक गयीं।
मनमोहन जी कहना है कि हमें खाली गिलास मिला था, जो हमने भर दिया है। ध्यान से देखा, तो वह गिलास जनता की आहों, कराहों और आंसुओं से भरा था। अगले कॉलम में घोटालों की कालिख पुती थी। गुलाम मंडल खेल, आदर्श सोसायटी, हैलिकॉप्टर, टाट्रा ट्रक, टू जी स्पैक्ट्रम, मनरेगा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य परियोजना, कोयला और रेल में भर्ती से लेकर आई.पी.एल. तक हर जगह वही हाथ फंसा है, जिसे हिलाते हुए मनमोहन सिंह और मैडम सत्ता में आये थे।
कानून-व्यवस्था यों तो राज्यों के अधीन है, पर दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे हर तीन घंटे में एक बलात्कार हो रहा है। किसी ने 'बलात्कार की राजधानी, कांग्रेस की मेहरबानी' ठीक ही कहा है। विदेशी आतंकवादी हों या घरेलू नक्सली, सब खुलेआम सुरक्षाबलों और नेताओं को मारकर टहलते हुए निकल जाते हैं।
महंगाई की चर्चा मानो जले पर नमक डालने जैसी है। रोटी, कपड़ा, और मकान मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। पिछले नौ साल में इनके दाम तीन गुने हो गये हैं। ऊपर से करेले पर नीम की तरह मनमोहन सिंह के प्रिय चिदम्बरम् जी फरमाते हैं कि तीन साल में विकास दर आठ प्रतिशत हो जाएगी। उन्हें पता है कि तीन साल क्या, एक साल बाद ही कोई उनसे पूछने नहीं आएगा, पर बातों की चाट बनाने में तो कुछ खर्च नहीं होता। इसलिए वही सही।
विदेशों में भारत की जैसी भद पिटी है, उसकी बात न ही करें, तो अच्छा है। चीन और पाकिस्तान को तो छोड़िये, बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका और वो मच्छर जैसा मालदीव तक हमें आंख दिखा रहे हैं।
लोग प्रधानमंत्री की कुर्सी को बड़ा सुखद मानते हैं, पर कोई इसकी कीलें नहीं गिनता। जैसे आजकल की बहुएं चाहती हैं कि सास जी मुंह बंद रखें और पर्स खुला। बस यही हाल मनमोहन जी और उनके गठबंधन सहयोगियों का है। सी.बी.आई. के सहारे जैसे-तैसे बात संभाल रखी है, वरना न जाने कब बाजी उलट जाए।
आप नौ साल में 90 घोटाले वाले रिपोर्ट कार्ड के लिए भले ही मनमोहन जी को दोष दें, पर मुझे उनसे पूरी सहानुभूति है। कहते हैं 'नौकरी के नौ काम, दसवां काम हां जी।' इस 'हां जी' के लिए उन्हें कभी मैडम, तो कभी राहुल बाबा और अहमद पटेल के पास जाना पड़ता है। बेचारी एक जान, क्या-क्या करे। आप ही सोचिये।
बात शर्मा जी से शुरू हुई थी, तो अब वर्मा जी का किस्सा भी सुन लें। कल अपने बेटे पिंटू को पीटते देख मैंने उन्हें टोक दिया।
– क्या हुआ वर्मा जी, बच्चे की जान लेंगे क्या?
– तुम बीच में मत बोलो। मैं आज दस दिन के लिए बाहर जा रहा हूं और कल इसका परीक्षाफल आने वाला है। मुझे पता है कि यह हर विषय में फेल होगा। आखिर बेटा तो मेरा ही है। कल जब यह नालायक अपना परीक्षाफल लेकर आयेगा, तब इसे कौन पीटेगा? इसलिए मैं यह जिम्मेदारी आज ही पूरी कर रहा हूं।
जहांतक 'मैडमसरकार' केसंचालकमनमोहनजीकेरिपोर्टकार्डकीबातहै, तोइसपरनिर्णयआपस्वयंहीकरें।आपचाहेशर्माजीकीतरहआंखबंदकरहस्ताक्षरकरदें, याफिरवर्माजीकीतरहअभीसेअपनीजिम्मेदारीनिभानाशुरूकरदें।
विजय कुमार
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